राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने अपने अखब़ार ‘यंग इंडिया’ में 29 मई 1920 में लिखा है, “मेरे दिल में दयानंद सरस्वती के लिए भारी सम्मान है ! मुझे ऐसा लगता है कि उन्होंने हिन्दू समाज की बहुत भारी सेवा की है लेकिन उन्होंने धर्म को बेहद तंग बना दिया है !
जब मैं यरवदा जेल में आराम फरमा रहा था तब मैंने आर्य समाजियों की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा ! मैंने इतने बड़े रिफार्मर की इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी ! इसमें स्वामी जी ने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है !
जिसको इन धर्मो का ज़रा सा भी ज्ञान है वह समझ जायेगा कि क्या हकीक़त है ! स्वामी जी ने धर्म को बेहद तंग बना दिया ! शायेद यही वजह है कि विरोधाभास के चलते ही आर्य समाजी विघटित हो रहे हैं एवं आपस में ख़ूब लड़ रहे हैं !” तो ये था भारत देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का नज़रिया ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के बारे में !
महात्मा गाँधी जी का स्वामी जी से कांग्रेस द्वारा दलित समाज का उद्धार और हिन्दू संगठन विषय को लेकर मतभेद था ! महात्मा गाँधी ने आर्यसमाज, स्वामी दयानंद और सत्यार्थ प्रकाश के विरुद्ध उक्त लेख में “हिन्दू मुस्लिम वैमनस्य, उसका कारण और उसकी चिकित्सा”के नाम से लिखा था। इस लेख में भारत भर में हो रहे हिन्दू-मुस्लिम दंगो का कारण आर्य समाज को बताया गया था।