एक ही पवित्र नगरी के यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म के आपसी जंग का इतिहास : Yogesh Mishra

येरूशलम यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म, तीनों की पवित्र नगरी है ! इतिहास गवाह है कि येरुशलम प्राचीन यहूदी राज्य का केन्द्र और राजधानी रहा है ! जहाँ से यह तीनों धर्म निकले और विस्तार लिये हैं ! यहीं पर कभी यहूदियों का परम पवित्र “सोलोमन मन्दिर” हुआ करता था ! जिसे रोमनों ने नष्ट कर दिया था ! यह शहर ईसा मसीह की भी कर्मभूमि रहा है और यहीं से हज़रत मुहम्मद साहब स्वर्ग गये थे !

येरूशलम इज़्रायल देश की राजधानी राजधानी होने के अलावा आज भी यह एक महत्‍वपूर्ण पर्यटन स्‍थल भी है ! इस शहर में 158 गिरिजाघर तथा 73 मस्जिदें स्थित हैं ! इन गिरिजाघरों और मस्जिदों के अलावा भी यहाँ देखने लायक बहुत कुछ है ! द इजरायल म्‍यूजियम, याद भसीम, नोबेल अभ्‍यारण, अल अक्‍सा मस्जिद, कुव्‍वत अल सकारा, मुसाला मरवान, सोलोमन टेंपल, वेस्‍टर्न वॉल, डेबिडस गुम्‍बद आदि आदि !

यहूदी और मुस्लिम धर्म में 99 प्रतिशत समानता है ! फिर भी यहूदी और मुसलमान दोनों ही धर्म के लोग एक-दूसरे की जान के दुश्मन क्यों हैं ? ईसाई धर्म की उत्पत्ति भी यहूदी धर्म से हुई है, लेकिन दुनिया अब ईसाई और मुसलमानों के बीच जारी जंग से तंग आ चुकी है ! तीनों ही धर्म एक दूसरे के खिलाफ क्यों हैं, जबकि तीनों ही धर्म मूल रूप में एक समान ही है ! आओ जानते हैं इस जंग के इतिहास का संक्षिप्त !

613 में हजरत मुहम्मद ने उपदेश देना शुरू किया था ! तब मक्का, मदिना सहित पूरे अरब में यहू‍दी धर्म, पेगन (मुशरिक) और ईसाई थे ! लोगों ने इस उपदेश का विरोध किया ! विरोध करने वालों में यहूदी सबसे आगे थे ! यहूदी नहीं चाहते थे कि हमारे धर्म को बिगाड़ा जाये जबकि मुहम्मद साहब धर्म को सुधार रहे थे ! बस यही से फसाद और युद्ध की शुरुआत हुई !

अंत में यहूदियों से परेशान होकर सन् 622 में हजरत अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना के लिये कूच कर गये ! इसे ‘हिजरत’ कहा जाता है ! मदीना में हजरत साहब ने अपने लोगों की रक्षा के लिये लोगों को इक्ट्ठा करके एक इस्लामिक फौज तैयार की और फिर शुरू हुआ जंग का सफर ! खंदक, खैबर, बदर और ‍फिर मक्का को फतह कर लिया गया ! सन् 630 में पैगंबर साहब ने अपने अनुयायियों के साथ कुफ्फार-ए-मक्का के साथ जंग की ! इस जंग में इस्लाम के मानने वालों की फतह हुई ! इस जंग को जंग-ए-बदर कहते हैं !

632 ईसवी में हजरत मुहम्मद साहब ने दुनिया से पर्दा कर लिया ! उनकी वफात के बाद तक लगभग पूरा अरब इस्लाम के सूत्र में बंध चुका था ! इसके बाद इस्लाम ने यहूदियों को अरब से बाहर खदेड़ना शुरू कर दिया ! तब यहूदी मात्र इसराइल और मिस्र में सिमट कर रह गये !

फिर 1096-99 में ईसाई फौज ने यरुशलम को तबाह करके वहां ईसाई साम्राज्य की स्थापना कर दी ! जबकि यरुशलम में मुसलमान और यहूदी अपने-अपने इलाकों में रहते थे ! पर ईसाईयों के इस कत्लेआम ने मुसलमानों को पुनः युद्ध के लिये सोचने पर मजबूर कर दिया !

तब जैंगी के नेतृत्व में मुसलमान दमिश्क में फिर एकजुट हुये और तब पहली दफा अरबी भाषा के शब्द ‘जिहाद’ का इस्तेमाल किया गया ! जबकि उस दौर में इसका अर्थ बस सिर्फ अपने अस्तित्व रक्षा के लिये संघर्ष हुआ करता था ! इस्लाम के लिये संघर्ष नहीं ! लेकिन बाद में इस शब्द को इस्लाम के लिये संघर्ष का पर्याय बना दिया गया !

वर्ष 1144 में ईसाईयों का दूसरा युद्ध फ्रांस के राजा लुई और जैंगी के गुलाम नूरुद्‍दीन के बीच हुआ ! इसमें ईसाइयों को पराजय का सामना करना पड़ा ! 1191 में तीसरे युद्ध की कमान उस काल के पोप ने इंग्लैड के राजा रिचर्ड प्रथम को सौंप दी थी जबकि यरुशलम पर सलाउद्दीन ने कब्जा कर रखा था ! इस युद्ध में भी ईसाइयों को बुरे दिन देखना पड़े ! इन युद्धों ने जहां यहूदियों को दर-बदर भटकने को मजबूर कर दिया ! वहीं यरुशलम में ईसाइयों के लिये भी कोई जगह नहीं छोड़ी !

लेकिन इस जंग में एक बात की समानता हमेशा बनी रही कि यहूदियों को अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिये अपने देश को छोड़कर लगातार दरबदर रहना पड़ा ! जब उनका साथ देने के लिये कोई दूसरा नहीं था ! वह या तो मुस्लिम शासन के अंतर्गत दब कर रहते या ईसाइयों के शासन में दब कर रहे ! उस समय पूरे विश्व में मात्र हिन्दू राजाओं ने इन्हें सम्मान के साथ स्थान दिया ! जिसका अहसान आज भी यहूदी समाज मानता है !

इसके बाद 11वीं शताब्दी के अंत में फिर शुरू हुई यरुशलम सहित अन्य इलाकों पर कब्जे के लिये लड़ाई जो 200 साल तक चली ‍जबकि इसराइल और अरब के तमाम मुल्कों में ईसाई, यहूदी और मुसलमान अपने-अपने इलाकों और धार्मिक वर्चस्व के लिये जंग करते रहे ! इसी दौर में इस्लाम ने अपनी पूरी ताकत भारत को कब्ज़ा करने में झोंक दी ! क्योंकि यहाँ पर विश्व का सबसे अधिक सोना था और यहाँ के राजा छोटे छोटे राज्यों में बंटे हुये थे !

लगभग 600 साल के संघर्ष के बाद इस्लामिक शासन का इसराइल, ईरान, अफगानिस्तान, भारत, अफ्रीका आदि मुल्कों में इस्लाम शासन स्थापित हो चुका था ! तब तक लगातार जंग और दमन के चलते विश्व में इस्लाम एक बड़ी ताकत बन गया था ! इस जंग में इस्लाम कई संस्कृतियों और दूसरे धर्म का अस्तित्व ही मिट चुका था !

17वीं सदी की शुरुआत में विश्व के कई बड़े मुल्कों से इस्लामिक शासन का अंत शुरू होगया था ! अब इसाई सशक्त थे और वह इग्लैंड की महारानी के नेतृत्व में अंग्रेजों की सेना बना कर मुसलमानों से उनकी सत्ता छीन रहे थे ! सिर्फ भारत ही नहीं उस दौरान में अरब ईरान अफगानिस्तान आदि सब कुछ मुगलों के हाँथ से जा रहा था !

बहुत काल तक दुनिया चार भागों में बंटी रही ! इस्लामिक शासन, चीनी शासन, ब्रिटेनी शासन और अन्य छुट भइये ! फिर 19वीं सदी कई मुल्कों के लिये नये सवेरे की तरह शुरू हुई ! सारे विश्व में कम्यूनिस्ट आंदोलन, आजादी के लिये क्षेत्रीय आंदोलन आदि चले ! जिससे सांस्कृतिक संघर्ष बढ़ा ! फिर ईसाईयों के द्वारा साम्राज्य विस्तार के लिये 1914 से 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध हुआ ! उसी के आक्रोश में 1939 से 1945 तक द्वितीय विश्व युद्ध चला ! जिसके अंत ने दुनिया के कई मुल्कों को तोड़ दिया गया और अनेक नये मुल्कों का जन्म हुआ !

द्वि‍तीय विश्व युद्ध के बाद अरब क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाये रखने के लिये यहूदियों को अपनी खोई हुई भूमि सन् 1948 में इसराइल वापस दी गई ! यहां फिर से दुनिया भर से यहूदी‍ इकट्ठे होने लगे ! इसके बाद उन्होंने मुसलमानों को वहां से खदेड़ना शुरू किया ! जिसके विरोध में फिलिस्तीन इलाके में यासेर अराफात का उदय हुआ ! फिर से गोरल्ला वार निति के तहत एक नये जंग की शुरुआत हुई ! इसको ईसाईयों द्वारा नाम दिया गया “फसाद या आतंक” !

इस जंग का स्वरूप समय समय पर बदलता रहा और आज इसने मक्का, मदीना और यरुशलम से निकलकर पूरे विश्व में व्यापक रूप धारण कर लिया है ! इसके बाद शीतयुद्ध और उसके बाद फिर सोवियत संघ के विघटन से इस्लाम की एक नई कहानी लिखी गई ‘आतंक की दास्तां’ ! इस दौर में मुस्लिम युवाओं ने ओसामा के नेतृत्व में पूरे विश्व को आतंक का पाठ पढ़ाया !

यहूदी और मुस्लिम धर्म में 99 प्रतिशत समानता है ! कहना चाहिए कि इस्लाम 99 प्रतिशत यहूदी धर्म है ! इस्लाम दरअसल यहूदी और मुशरिक मान्यताओं का मिश्रण है ! इनमें जो भी अच्छी बातें थी वह सब इस्लाम ने ग्रहण ‍की ! इस्लाम की एक ईश्वर की परिकल्पना, खतना, बुतपरस्ती का विरोध, नमाज, हज, रोजा, जकात, सूदखोरी का विरोध, कयामत, कोशर (हराम-हलाल), पवित्र दिन (सब्बाब), उम्माह जैसी सभी बातें यहूदी धर्म से ली गई हैं !

पवित्र भूमि, धार्मिक ग्रंथ, अंजील, हदीस और ताल्मुद की कल्पना एक ही है ! इस्लाम में आदम, हव्वा, इब्राहीम, नूह, दावूद, इसाक, इस्माइल, इल्यास, सोलोमन आदि सभी ऐतिहासिक और मिथकीय पात्र यहूदी परंपरा के हैं !

यरुशलम के मुस्लिम इलाके में स्थित 35 एकड़ क्षेत्रफल में फैले नोबेल अभयारण्य में ही अल अक्सा मस्जिद है जो मुसलमानों के लिये मदीना, काबा के बाद तीसरा पवित्र स्थान है, क्योंकि इसी स्थान से हजरत मुहम्मद स्वर्ग गये थे ! लेकिन फिर भी यह तीनों धर्म आपस में वर्चस्व की लड़ाई लड़ते रहते हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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