लखनऊ हाईकोर्ट जस्टिस रहे विष्णु सहाय ने गुमनामी बाबा की असलियत के नाम पर विस्तृत जाँच के बाद फैसला कर दिया कि फैजाबाद के गुमनामी बाबा का नेताजी सुभाष चंद्र बोस से कोई लेना-देना नहीं था ! इसके साथ ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस और गुमनामी बाबा को लेकर सारी अटकलें अधिकारिक रूप से खत्म हो गयी हैं ! लेकिन हैरत की बात है कि आज भी ऐसे लोगों की तादात काफी अधिक है ! जो गुमनामी बाबा को ही नेता जी सुभाषचंद्र बोस मानते हैं !
जन चर्चाओं के अनुसार नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही गुमनामी बाबा हैं ! लेकिन जन चर्चा और सत्यता अलग-अलग तरह से होती है ! इसके लिये कोई भी तर्क नहीं है पर प्रमाण जरुर है ! जो आज भी लखनऊ हाईकोर्ट के भण्डार गृह में सात बक्सों में बंद है ! लेकिन गुमनामी बाबा का पता करने के लिये गठित जस्टिस विष्णु सहाय आयोग ने इस मामले में राजनैतिक दबाव में जल्दबाजी करते हुये कहा कि जन अस्थाओं में भले ही नेताजी जिन्दा हों लेकिन यथार्थ तो यही है कि गुमनानी बाबा और सुभाषचंद्र बोस के बीच कोई भी सम्बन्ध नहीं है ! जिससे यह पता चल सके कि यह दोनों परस्पर एक ही व्यक्ति थे !
आपको बता दें कि पहले लखनऊ में सन 1978 तक एक व्यक्ति बड़े ही रहस्यमय ढंग से पहचाना जाता था लेकिन उसके बाद इस वृद्ध ने अपना डेरा फैजाबाद के राम भवन में डाल दिया था ! जल्दी इस व्यक्ति के बारे में यह मशहूर होने लगा कि यह गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं ! जो भारतीय नेताओं और अंग्रेजों के मध्य हुई संधि के कारण यहाँ गुमनाम अवस्था में रह रहे हैं ! जहाँ पर 17 सितंबर 1985 को रात साढ़े नौ से दस बजे के बीच इस गुमनामी बाबा ने आखिरी सांसे लीं थी और वहां के विश्वसनीय लोगों ने इनके चेहरे पर तेजाब डालकर इनका जल्द ही अन्तिम संस्कार कर दिया था !
चेहरे पर तेजाब डाल ने के कारण यह बात बहुत जल्द मिडिया में आ गयी और पूरा देश सन्न रह गया ! उनके कमरे से जो सामान गुमनामी बाबा के पास से मिला था ! उसमें कोलकाता में हर साल 23 जनवरी को मनाये जाने वाले नेताजी के जन्मोत्सव की तस्वीरें थी ! आजाद हिंद फौज की महिला खुफिया शाखा की मुखिया लीला रॉय की मौत पर हुई शोक सभाओं की तस्वीरें थी ! नेताजी की तरह के दर्जनों गोल चश्मे थे ! 555 सिगरेट और विदेशी शराब थी ! सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता और परिवार की निजी तस्वीरें भी थी ! एक रोलेक्स की जेब घड़ी थी जो नेता जी के पिता ने कभी उन्हें दी थी और आज़ाद हिंद फ़ौज की एक यूनिफॉर्म थी !
इसके अलावा 1974 में कोलकाता के दैनिक आनंद बाज़ार पत्रिका में 24 किस्तों में छपी खबरें थीं ! जर्मन, जापानी और अंग्रेजी साहित्य की ढेरों किताबें भी मिली थीं ! भारत-चीन युद्ध संबंधी किताबें में वहां से मिली जिनके पन्नों पर टिप्पणियां लिखी गईं थीं ! सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की जांच के लिये बने शाहनवाज़ और खोसला आयोग की रिपोर्टें सैकड़ों टेलीग्राम और पत्र आदि थे ! जिन्हें भगवनजी के नाम पर संबोधित किया गया था ! खास बात यह थी कि इन पर जो हस्त लिखित टिप्पणीयां थी ! उनकी हेंड रायटिंग नेता जी सुभाष चंद्र बोष से मिलती थी !
यही नहीं नेता जी के हाथ से बने हुये उस जगह के नक़्शे भी वहां थे ! जहां नेताजी का विमान क्रैश बतलाया जाता था ! आज़ाद हिंद फ़ौज की गुप्तचर शाखा के प्रमुख लीला रॉय के पति पवित्र मोहन रॉय के लिखे गये बधाई संदेश भी थे ! जब यह सारा सामान एक साथ बरामद हुये तो धीरे-धीरे गुमनामी बाबा की कहानियां और तेजी से मिडिया में मशहूर होने लगी !
तब मैंने और लखनऊ के निवासी विश्व बंधु तिवारी जी ने मिलकर उन सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों को लखनऊ हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल कर उन्हें सात अलग-अलग बक्सों में संग्रहित करवा कर लखनऊ हाईकोर्ट के भंडार गृह में सुरक्षित रखवा दिया ! जो आज भी वहां रखा हुआ है !
इसकी सत्यता जानने के लिये सरकार ने सन 2016 में गुमनामी बाबा की असलियत को खोजने के लिये एक जांच आयोग का गठन कर दिया था ! जिसके अध्यक्ष थे लखनऊ हाईकोर्ट के एक पूर्व रिटायरड जस्टिस विष्णु सहाय ! आयोग ने 3 साल तक खूब देश विदेश घूम कर जाँच की और सरकार के करोड़ों रुपये बर्बाद किये और लाखों रुपये खुद वेतन भत्ता खर्च के रूप में डकार गये !
इसके बाद एक रिपोर्ट सरकार को सौंपी जो विधानसभा के पिछले सत्र में पटल पर रखी गई ! जिसमें यह साबित किया कि गुमनानी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस परस्पर अलग-अलग व्यक्ति थे ! अर्थात नेताजी सुभाष चंद्र बोस का गुमनानी बाबा से कोई सम्बन्ध नहीं है !
खैर, इस विवाद से इतर एक सवाल यह जरूर उछलने लगा है कि आखिर विष्णु सहाय आयोग को गुमनामी बाबा ही नेता जी सुभाष चंद्र बोष के बारे में छानबीन करने के लिये 3 साल की जरूरत क्यों पड़ी !