क्या आप जानते हैं कि पूरी दुनिया में 30,000 से अधिक महामारी वैज्ञानिक हैं ! जिसमें से अकेले अमेरिका में वर्ष 2018 में 7,600 महामारी विज्ञानी थे ! कहने को तो यह सभी महामारी वैज्ञानिक मानवता की रक्षा के लिये पूरी पृथ्वी में अलग-अलग तरह से अलग-अलग वातावरण के अनुरूप शोध कार्य करते रहते हैं ! जिसका खर्चा दवाई बनाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां उठाती हैं ! इनके द्वारा खोजी गई दवाईयां पूरी दुनिया में उत्पादित कर बेचीं जाती हैं और इस दवा कंपनियों द्वारा अरबों रुपये का लाभ कमाया जाता है !
अब प्रश्न यह है कि विश्व में किसी भी महामारी के आने के पहले ही उस महामारी से संबंधित दवाईयों पर शोध कार्य किस भविष्यवाणी के आधार पर आरंभ कर दिया जाता है ! शोध ही नहीं, शोध के उपरांत उसकी औषधि का निर्माण भी अरबों रुपये लगाकर आरंभ कर दिया जाता है और डिस्ट्रीब्यूटर, रिटेलर के माध्यम से वह दवाई विश्व के हर एलोपैथी दवा की दुकान पर बिकनी भी शुरू हो जाती है या फिर बिकने के लिये पहुंच जाती है !
वैसे किसी महामारी की दवा के शोध कार्य में 6 से 8 वर्ष का समय लगता है, लेकिन यह 6 से 8 वर्ष का समय महामारी आरंभ होने के पहले ही दिव्य दृष्टि से एलोपैथी दवा बनाने वाली कंपनियों को पता चल जाता है और वह लोग दवाई के शोध कार्य को आरम्भ करके उसका उत्पादन का कार्य भी आरंभ कर देते हैं, जिससे मानवता की बहुत बड़े पैमाने पर रक्षा की जा सके !
अब इसको हम थोड़ा व्यवसायिक दृष्टिकोण से भी देखते हैं ! हम और आप अपने मेहनत का पैसा अपने पास पूंजी के रूप में संग्रहित करके रखते हैं और उसे अपने परिवार की सुरक्षा, बच्चों की शिक्षा और अपने सुख-सुविधा के लिये समय समय पर प्रयोग करते हैं !
किंतु समाज में एक वर्ग वह है जो डिजिटल दुनिया के आधार पर आपके संग्रहित किये हुये पैसे पर अपनी निगाह बनाये रखता है और जब वह देखता है कि आपके अंदर धन खर्च करने का सामर्थ्य पैदा हो गया है ! तब कोई न कोई एक बड़ी महामारी अपना विकराल रूप लेना शुरू कर देती है ! जिससे जब आपके परिवार के सदस्य उसके चपेट में आने लगते हैं और आप अपने परिवार के सदस्य की जीवन रक्षा के लिये अपने जीवन भर की संग्रहित जमा पूंजी डॉक्टर, नर्सिंग होम, एंबुलेंस, ऑक्सीजन सिलेंडर, इंजेक्शन और दवा बनाने वाली कंपनियों को सौंप देते हैं ! जो आपने अपने भविष्य के लिये जोडी थी !
और आप तो गरीब हो जाते हैं लेकिन यह डॉक्टर और दवा बनाने वाली कंपनियां अरबपति हो जाती है ! इस पूरे के पूरे विषय को देखकर क्या ऐसा नहीं लगता कि महामारी स्वाभाविक घटना नहीं बल्कि आपको लूटने के लिये पूरी तरह से प्रायोजित योजना होती है ! जिसमें आपकी मीडिया और राजनीतिक तंत्र के लोग इन दवा माफियाओं के साथ मिले होते हैं !
जो आपसे आगाह कम और डराते जाता हैं ! ड्रामा तो ऐसा करते हैं कि आप की रक्षा के लिये सारा कार्य किया जा रहा है ! लेकिन वास्तविकता यह है कि आपके मेहनत के पैसे से जो आप “कर” के रूप में जो टैक्स आपसे लिया गया है, उसे भी इन दवा बनाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियों को आपकी सुरक्षा के नाम पर दे दिया जाता है और आपके देश की अर्थव्यवस्था को फिर से कमजोर कर दिया जाता है और जिन देशों में इस तरह की दवा बनाने की कंपनियां स्थापित होती हैं, उन देशों की अर्थव्यवस्था में तेजी से विकास शुरू हो जाता है !
इससे यह सिद्ध होता है कि महामारी एक प्रायोजित डकैती है, जो चिकित्सा और औषधि निर्माण के क्षेत्र में जुड़े हुये लोगों के द्वारा संचालित होती है और हम असहाय होकर सिवा अपने को लुटाते रहने के और कुछ नहीं कर पाते हैं !!
वैसे आपकी सूचना के लिये मैं बतला दूँ कि पिछले 100 वर्षों में विश्व में 5 वैक्सीन बनी हैं ! जिसमें टेटनस की शुरुआत हुई थी प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1924 में हुई थी और उसकी वैक्सीन भी बन गयी पर भारत में इसकी वैक्सीन आयी थी 1978 में अर्थात 54 वर्षों के बाद !
इसी तरह एक महामारी “जापानी एन्सेफेलाइटिस” थी ! जिसकी वैक्सीन 1930 में बनी पर भारत में यह वैक्सीन 2013 में अर्थात 83 वर्ष पश्चात आयी थी ! पोलियो की वैक्सीन 1955 में बनी और भारत आयी 1978 में अर्थात 23 साल बाद ! हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन 1982 में बनी और भारत में आयी 2002 में अर्थात 20 साल बाद ! रोटा वायरस की वैक्सीन 1998 में बनी और भारत में आयी 2015 में अर्थात 17 वर्ष बाद पर क रोना वैक्सीन वह भी एक नहीं चार-चार वह भी मात्र 8 महीने में ! यह सिद्ध करता है कि सभी कुछ प्रायोजित है ! बस हमें समझने की दृष्टि चाहिये !!