हत्या और वध में अंतर होता है ! हत्या का तात्पर्य है कि जब किसी व्यक्ति को बिना किसी कारण, बिना किसी दोष के जान से मार दिया जाता है तो उसे हत्या कहते हैं ! इस तरह की हत्या करने वाले व्यक्ति को धर्म और विधि दोनों ही दण्डित करने का निर्देश देती है ! धर्मानुसार हत्या के अपराध को करने वाले व्यक्ति को प्राश्चित भी करना पड़ता है !
और जब कोई व्यक्ति अपने आपराधिक कृत्यों से धर्म और समाज के लिए घातक कार्य करने लगता है ! तब उस स्थिति में धर्म और विधि दोनों ही उस व्यक्ति के मृत्यु की आज्ञा देती है ! जब वह दुष्ट व्यक्ति मारा जाता है तो इसे वध कहते हैं ! और जो व्यक्ति उस दुष्ट व्यक्ति को मारता है, उसे किसी भी तरह का कोई भी दण्ड न तो धर्म के द्वारा दिया जाता है और न ही विधि के द्वारा ! और न ही धर्मानुसार वध करने वाले व्यक्ति को किसी तरह के प्राश्चित को करने की आवश्यकता पड़ती है !
अब प्रश्न यह खड़ा होता है कि राम ने रावण का वध किया था या उसकी हत्या की थी ! कथावाचक और रामलीलाकार तथा कुछ साहित्य के लेखक राम द्वारा रावण को मारे जाने की घटना को “रावण का वध” बतलाते हैं ! क्योंकि उनके अनुसार रावण के आतंक से पृथ्वी पर अनेक तरह के पापा का उदय हुआ था और रावण के कृत्य धर्म और विधि अनुसार “वध” के योग्य थे ! इसलिये राम ने रावण का वध कर दिया !
किंतु तथ्य कुछ और बतलाते हैं राम द्वारा रावण को मारे जाने के बाद जब राम के इस कृत्य की धर्म संसद में धर्मगुरुओं के समक्ष चर्चा हुई तो धर्म गुरुओं ने राम को रावण की हत्या के लिये “हत्या” का दोषी माना और धर्म संसद ने राम को यह निर्देश दिया कि राम अपने इस “ब्रह्म हत्या” के निवारण के लिए प्रायश्चित करें !
धर्म संसद की धर्म दंड के विधान के अनुसार राम रावण की हत्या के प्रायश्चित के लिए जिस स्थान पर जाकर प्रायश्चित करते हैं ! उस स्थान को वर्तमान समय में “हत्या हरण तीर्थ” के रूप में जाना जाता है ! अर्थात वह स्थान जहां पर राम द्वारा “प्रायश्चित तप” करने से उनके ऊपर लगे “रावण की हत्या” के आरोप का हरण हो गया था !
यह हत्याहारण तीर्थ उत्तर प्रदेश प्रदेश के हरदोई जनपद की संडीला तहसील में पवित्र नैमिषारण्य परिक्रमा क्षेत्र में स्थित है ! यह तीर्थ लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर है ! प्रसिद्ध हत्याहारण कुंड तीर्थ के संबंध में यह एतिहासिक तथ्य है कि भगवान राम ने जब रावण हत्या की तब उस हत्या की घटना के उपरांत “ब्रह्म हत्या” के दोष से मुक्त होने के लिये उन्होंने इसी सरोवर के निकट “प्रायश्चित तप” किया था !
क्योंकि वैष्णव साहित्यकारों ने राम को भगवान विष्णु का अंश घोषित कर भगवान घोषित कर दिया था ! इसलिए राम के द्वारा किये गये “हत्या के प्रायश्चित” का कोई भी वर्णन उन्होंने अपने साहित्य में प्रमुखता से प्रकाशित नहीं किया था ! परिणामत: लोगों को इस स्थान की जानकारी नहीं है और न ही धर्म शास्त्रों में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है ! किंतु सत्य यह है कि तेजस्वी ब्राम्हण रावण की हत्या के लिए राम को भी प्रायश्चित करना पड़ा था और उन्होंने कठोर तप द्वारा अपने इस अपराध का प्राश्चित किया था ! इससे आप स्वयं ही निर्णय लीजिए राम ने रावण की हत्या की थी या उसका वध किया था !