आखिर तिरंगे का अपमान क्यों ? : Yogesh Mishra

राष्ट्र की एकता व अखंडता में प्रतीकों का अतुल्य योगदान है ! इससे नागरिकों को राष्ट्र प्रेम की प्रेरणा मिलती है ! तिरंगा इस देश की आन, बान और शान का प्रतीक है लेकिन इधर कुछ दल अपने राजनैतिक आंदोलन के समय तिरंगा हाथ में रखने लगे हैं ! ये लोग जाने- अनजाने राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान को ठेस पहुंचाने के दोषी हैं !

रैलियों में झंडे लगाये जाते हैं जो रैली के बाद ज़मीन पर पड़े मिलते हैं ! क्या ये राष्ट्रीय सम्मान का अपमान नहीं है? अनेक बार जब प्रदर्शन के दौरान तनाव और टकराव की स्थिति बन जाती है और प्रदर्शनकारी उग्र हो उठते हैं तो उन्हें तिरंगें के सम्मान का ध्यान ही कहाँ रहता है ! इससे में यह आवश्यक हो जाता है कि राजनैतिक और व्यक्तिगत कार्यक्रमों में ठीक उसी तरह से राष्ट्रीय ध्वज का इस्तेमाल रोका जाये जैसे तीन शेरों वाले राष्ट्रीय चिंह अथवा अशोक के इस्तेमाल पर रोक है !

यहाँ यह स्मरणीय है कि प्रिवेंशन ऑफ इंप्रोपर यूज एक्ट 1950 की धारा 3 तथा प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट टू नेशनल ऑनर एक्ट 1971 का हवाला देते हुए कहा गया है कि इन कानूनों में राष्ट्रीय ध्वज के रंगीन व नकल अथवा पार्टी कार्यकर्ताओं के गले में दुपट्टे की तरह इस्तेमाल अथवा पार्टी की बैठकों में व दीवारों पर इसका उपयोग प्रतिबंधित किया गया है !

आश्चर्य है कि जिस बात को इस देश का आम आदमी समझ रहा है ! उसे न तो स्वयं राजनेता समझ रहे हैं और न ही सरकार के स्तर पर कुछ किया जा रहा है ! वैसे यहाँ यह भी स्मरणीय है कि कुछ दिनों पूर्व न्यायालय ने मोबाईल कंपनियों को निर्देश दिया था कि वह राष्ट्रगान को कालर टयून न बनायें क्योंकि यह राष्ट्रीय सम्मान का अपमान है !

इधर देश में गुटखे का प्रचलन बढ़ा है तो अनेक कंपनियां मैदान में हैं ! पिछले कई वर्षों से तिरंगा नामक गुटखा खुले आम बिक रहा है जिस पर राष्ट्रीय झंडे जैसा तिरंगा बना है ! लोग उसे खरीदतें, फाड़ते और तिरंगा वाले उस पाउच को जमीन पर फेंकतें हैं ! आखिर यह क्या है ? गुटखा कंपनी को इस तरह के पाउच बनाने पर सरकारों ने रोका क्यों नहीं की ? उस पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई ? क्या किसी को भी चाहे वह व्यवसायिक कंपनी हो या राजनैतिक दल अपने प्रचार अथवा विज्ञापन में राष्ट्र के सम्मान से जुड़े प्रतीकों का प्रयोग करने का अधिकार मिलाना चाहिये ? और यदि नहीं तो राष्ट्रीय ध्वज से मिलते- जुलते चिंहों अथवा ध्वजों के उपयोग के इस्तेमाल की छूट पर फिर से विचार करना चाहिये !

केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी भारतीय राष्ट्र ध्वज संहिता के अनुसार प्लास्टिक से बने झंडों का उपयोग नहीं करना चाहिये ! राष्ट्रीय ध्वज फहराते समय उसे सम्मानपूर्वक ऊंचा स्थान देना चाहिये ! अन्य ध्वज राष्ट्रध्वज से अधिक ऊंचे नहीं होने चाहिये ! राष्ट्रध्वज का उपयोग वक्ता की व्यासपीठ ढकने अथवा उसकी सज्जा के लिये नहीं करना चाहिये !

राष्ट्र ध्वज को मिट्टी अथवा पानी का स्पर्श नहीं होने देना चाहिये ! किसी पहनावा के लिये ध्वज के स्वरूप का उपयोग नहीं किया जा सकता ! राष्ट्रध्वज गद्दी, रूमाल, नैपकीन, तौलिया, मेजपोश भी नहीं बनाये जा सकते हैं ! राष्ट्रध्वज पर कोई लेखन नहीं किया जा सकता अथवा उस पर किसी भी प्रकार का विज्ञापन नहीं किया जा सकता ! ध्वज जिस खंबे पर फहराया गया हो उस पर विज्ञापन नहीं लगाये जा सकते हैं !

लेकिन प्रश्न यह है कि इन नियमों का पालन कितना हो रहा है ! कानून में राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान पर सजा एवं जुर्माने का प्रावधान जरूर है लेकिन उस पर कितना अमल होता है ! जागरूकता की कमी और उदासीनता की वजह से भी लोग राष्ट्रीय प्रतीकों के सम्मान की चिंता नहीं करते हैं !

जरूरत है राष्ट्र के प्रतीकों के सम्मान को न केवल बरकरार रखा जाये बल्कि उसे और बढ़ाया जाये ! जो कोई भी उनके अपमान का दुस्साहस करे उसे सख्त से सख्त सजा दी जाये ! राष्ट्रीय प्रतीकों से छेड़छाड नहीं होनी चाहिये !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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