राष्ट्र प्रेम बनाम राष्ट्र दीवानगी जानिए अंतर : Yogesh Mishra

शनिवार की शाम मैं एक कार्यक्रम में गया था ! वहां पर एक 83 वर्ष के बुजुर्ग व्यक्ति चर्चा कर रहे थे कि “आज संस्कारों की कमी के कारण आने वाली पीढ़ी में राष्ट्रप्रेम खत्म हो रहा है ! इसके लिये हमें अपने इतिहास को पुनः याद करना चाहिये ! जिससे हमारे आने वाली पीढ़ियों में राष्ट्रप्रेम पुनः पैदा हो सके !”

उनके विषय पर मैंने गहन चिंतन किया और मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र दीवानगी यह दो अलग-अलग चीजें हैं ! प्रेम का तात्पर्य है जहां पर दोनों पक्षों से समान रूप से एक दूसरे को प्रेम किया जाये अर्थात जब हम राष्ट्र के हित और सुरक्षा का चिंतन करें तो राष्ट्र को भी हमारे हित और सुरक्षा का चिंतन करना चाहिये !

यदि हम नागरिक होने के नाते निरंतर राष्ट्र हित और सुरक्षा का चिंतन करते रहें और राष्ट्र के चलाने वाले निरंतर नागरिकों के शोषण के लिये नित नई योजनाएं बनाते रहते हैं तो यह राष्ट्रप्रेम नहीं होगा बल्कि राष्ट्र दीवानगी कहलायेगी क्योंकि यहां पर नागरिक को तो राष्ट्र को बेतहाशा प्यार कर रहा है लेकिन राष्ट्र को चलाने वाले निरंतर नागरिकों का शोषण कर रहे हैं !

आज भारत के आम आवाम की स्थिति यह है कि उसे दो वक्त की रोटी मिलने की सुनिश्चित नहीं है ! यदि कोई व्यक्ति सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है, तो राष्ट्र की तरफ से कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है कि उस दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को शीघ्र अति शीघ्र चिकित्सा हेतु अस्पताल पहुंचाया जा सके !

अस्पताल के अंदर भी यदि व्यक्ति के पास पर्याप्त धन नहीं है, तो उसके जीवन रक्षा के लिये कोई भी विकल्प राष्ट्र की ओर से उपलब्ध नहीं है ! कहा तो यहां तक जा सकता है कि यदि कोई व्यक्ति अस्पताल में मर जाये तो उसके मरने के बाद उसके शव को उसके निवास स्थान तक नि:शुल्क पहुंचाने के लिये राष्ट्र की ओर से कोई व्यवस्था नहीं है !

आज शासन सत्ता की नीतियों के कारण आवासीय मकान इतने महंगे हो गये हैं कि मध्यमवर्ग के व्यक्ति की आय से बाहर चले गये हैं या दूसरे शब्दों में कहा जाये कि यदि कोई मध्यम वर्ग का व्यक्ति आज अपना आवासीय मकान बनाने की इच्छा रखता है तो यह उसकी इच्छा उसके साथ ही मर जायेगी लेकिन मकानों की बेतहाशा बढ़ती कीमतों के कारण वह कभी अपने निजी मकान में नहीं रह पायेगा !

शिक्षा की स्थिती यह है कि शिक्षण संस्थानों के नाम पर खुले आम लूट के अड्डे चल रहे हैं ! जहां पर बेसिक शिक्षा से लेकर के उच्च शिक्षा तक हर स्तर पर शिक्षण संस्थान बच्चों के माता-पिता को खुलेआम लूट रहे हैं ! छोटे-छोटे बच्चों के स्कूलों की फीस 2000-2500 हो जाना तो आम बात है और उच्च शिक्षा में यदि कोई बच्चा डॉक्टरी या इंजीनियरी करना चाहता है तो 1.5- 2 करोड़ों रुपये का खर्चा होना तो आम बात है !

उस बच्चे को उच्च शिक्षा दिलाने के लिये माता पिता अपने जीवन की जमा पूंजी, घर-मकान आदि गिरवी रखकर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिये बाध्य हैं ! और कोई गारंटी नहीं कि इतनी बड़ी रकम देने के बाद भी जब उसका बच्चा उच्च शिक्षण संस्थानों से निकल कर आयेगा तो उसे समाज में सुनिश्चित रूप से रोजगार मिलेगा ही !

सरकारी नौकरी की तो बात करना ही बेकार है ! प्राइवेट संस्थानों में भी नौकरी के नाम पर आज जो नौजवानों से 12 से 14 घंटे काम लिया जा रहा है ! वह निश्चित तौर से नौजवानों का शोषण है ! जिस संदर्भ में शासन सत्ता में बैठे हुये लोग न तो कोई कानून बनाना चाहते हैं और न ही वह इस तरफ ध्यान ही दे रहे हैं !

लॉ एण्ड ऑर्डर की स्थिती यह है की आज शाम होने के बाद घर की बहू बेटियां घर के बाहर नहीं निकल सकती हैं और घर में जो बुजुर्ग लोग हैं, उन्हें सदैव यह भय रहता है कि कहीं बाहर से कोई दुष्ट व्यक्ति घुसकर उनकी हत्या कर उनका सामान न लूट ले जाये !

आप किस राष्ट्र को प्रेम करने की बात कर रहे हैं ! जिस राष्ट्र में सत्ता की गलत नीतियों के कारण रोटी, कपड़ा और मकान तीनों ही आवश्यक चीजें व्यक्ति की क्षमता के बाहर चली गई हैं ! जहां पर चिकित्सा और शिक्षा के नाम पर खुले आम लूट हो रही है ! जिस देश का 90% नौजवान अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर भयभीत है ! ऐसे अराजकता पूर्ण राज्य में यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रप्रेम की बात करेगा तो वह निश्चित रूप से राष्ट्रप्रेम नहीं राष्ट्र के प्रति एक तरफा दीवानगी की बात कर रहा है !

क्या सारे कर्तव्य भारत के नागरिकों के ही हैं ! शासन सत्ता में बैठे हुये लोगों का अपने नागरिकों के हितों के लिये चिंतन करने का कोई दायित्व नहीं है ! अपनी सुख-सुविधा, वेतन, भत्ता, भोग-विलास के अलावा भारत के नागरिकों के रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य की सुनिश्चित का उनका कोई दायित्व नहीं है !

अगर नहीं है तो राष्ट्रप्रेम एक पक्षीय है ! यह राष्ट्रीय दीवानगी के अलावा और कुछ नहीं है ! जैसे कोई लड़का किसी लड़की की इच्छा के बिना जबरदस्ती उसके पीछे लगा रहता है ! ठीक उसी तरह यदि कोई नागरिक जबरदस्ती एक पक्षीय राष्ट्रप्रेम का नारा लगाता है तो निश्चित रूप से वह या तो जागरुक नहीं है या फिर मानसिक बीमारी से ग्रसित है !

यदि भारत के नागरिकों से राष्ट्रप्रेम की अपेक्षा है तो राष्ट्र को चलाने वाले लोगों को भी नागरिकों के प्रति कर्तव्य का निर्वहन करना पड़ेगा ! तभी भारत में राष्ट्रप्रेम पनपाया जा सकेगा ! अन्यथा यह राष्ट्र दीवानगी की दिनचर्या ज्यादा नहीं चलेगी !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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