आधुनिक विज्ञान कहता है कि मकान को बनाने से पहले उसका नक्शा किसी योग्य आर्किटेक्ट से बनवाएं ! मकान की नींव ईंटों के स्थान पर आरसीसी की बनवाएं, बीम कालम छत ये वो ऐसी बहोत से कहानियां मिलेंगी लेकिन यदि रिएक्टर 10 या उससे ऊपर के भूकम्प आये तो ये तकनीकी मकानों की तरह धूल में मिली दिखेगी जबकि वही वैदिक साहित्य के ज्ञान को आइये देखते है !
वैदिक प्राचीन भवन निर्माण तकनीकी के अनुसार यदि 11 से लेकर 13 रिएक्टर तक भी भूकम्प आये तो भी उससे बचा जा सकता है उदाहरण के लिए एक तकनीकी साझा कर रहा हूँ !
भारत के सिरपुर सुरंग टीला के शिवमंदिर के प्रत्येक गर्भगृह के सामने एक मीटर लंबा, आधा मीटर चौड़ा और 60 से 80 फीट गहरा कुंड खोदा गया है, जिसको वैक्यूम बनाकर सील कर दिया गया है ! जैसा कि सब जानते हैं कि शून्य में भूकंप आदि ध्वनि की तरंग प्रवेश नहीं कर सकती, जिसके कारण पूरा मंदिर सुरक्षित रहा है ,11वीं शताब्दी में सिरपुर में भयंकर भूकंप आया था. इसके चलते दूसरे मकान या मंदिर की सीढ़ी तो ढह गए, लेकिन इन सुरंग टीलों को कोई नुकसान नहीं हुआ वो आज भी सुरक्षित है ! ऐसी बहोत सी तकनीकियां है जिनपर आज के मैकाले पुत्र रिसर्च न करके पश्चिमी सभ्यता की अंधाधुंध नकल कर रहे है !
आधुनिक समय मे पर्यावरण की सुरक्षा के दृष्टिकोण से अच्छे भवनों के निर्माण के लिए तीन मुख्य उपायों पर ध्यान दिया जा सकता है ! शीत या तापकरण के लिए सूर्य और वायु जैसे प्राकृतिक स्रोतों का दोहन, जलवायु नियंत्रण व्यवस्था के लिए कुशल उपकरणों का चयन और भूकंपरोधी परिष्कृत निर्माण सामग्रियों का इस्तेमाल ! सूर्य की आकाशीय स्थिति को ध्यान में रखकर मकान बनाए जाने से उसमें मौसम के अनुकूल सुविधाएं सहज उपलब्ध हो जाती हैं और उनके लिए ऊर्जा की खपत भी नहीं होती ! सूर्य की किरणों से शीत-ताप नियंत्रण व्यवस्था में उत्तर रूख के मकान उपयुक्त माने गए हैं ! इसी तरह खिड़कियों के भी सूर्य की स्थिति के अनुरूप लगाने से कमरों में रोशनी का समुचित प्रबंध संभव है !