कौन श्रेष्ठ है वैदिक वास्तु विज्ञान या आधुनिक आर्किटेक्चर : Yogesh Mishra

प्राचीन भारतीय संस्कृति में भवन निर्माण कला की बारीकी और उन्नत तकनीकी सभी को आकर्षित और आश्चर्यचकित करती है , आधुनिक भवन निर्माण तकनीकी की यदि हम प्राचीन निर्माण तकनीकी से तुलना करें तो आज की आधुनिक तकनीक कही पीछे है जहाँ आज वास्तु कला जिसे आर्किटेक्टर कहते है सिर्फ ईट, गारा, फिनिशिंग और भूकंपरोधी तकनीकी के इस्तेमाल भर है वही प्राचीन वास्तुकला , शिल्पशास्त्र , स्थापत्यकला ,वास्तु शास्त्र , और उन्नत भूकम्परोधी विज्ञान के मिश्रित निर्माण शैली रखते है सिर्फ यही नही सूर्य की ब्रह्मांड की रश्मियां, उसके प्रकाश और ताप, वायु प्रवाह की दिशा, पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव तथा पृथ्‍वी पर अंतरिक्षीय ग्रह-पिंडों के प्रभाव का भी विशेष ध्यान रखा जाता था ! !

सीमेंट या सनातन भवन निर्माण मसाला

आधुनिक सीमेंट का असली नाम पोर्टलैंड सीमेंट है जिसे सामान्य भाषा मे पोर्टल सीमेंट कहते है ,और पोर्टल कोई ब्रांड या कंपनी का नाम नहीं है यह सिर्फ पोर्टलैंड की भाषा में इसे पोर्टल सीमेंट कहा जाता है ! सबसे पहले सन ,1824 में यूसुफ असपदीन ने पोर्टलैंड सीमेंट” को पेटेंट करवाया उन्होंने इसे मिट्टी और चूना पत्थर से बनाया इसे कंक्रीट से बनाया था इसलिए इसे पोर्टलैंड सीमेंट कहा क्योकि पोर्टलैंड चुना पत्थर की तरह दिखता है, और सन 1845 में एशेज जॉनसन ने पोर्टलैंड सीमेंट को आधुनिक उपयोग के लिए बनाया ! सामान्यतः सीमेंट की उम्र लगभग 200 से 250साल होती है मतलब यदि किसी की जुड़ाई सीमेंट से करे तो 300 साल बाद मिट्टी से जुड़ी होने जितनी आसानी से उन्हें अलग किया जा सकता है !

प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में 64 कलाओं का उल्लेख मिलता है, जिनका ज्ञान प्रत्येक सुसंस्कृत नागरिक के लिए अनिवार्य समझा जाता था ! इसीलिए भर्तृहरि ने तो यहाँ तक कह डाला ‘साहित्य, संगीत, कला विहीनः साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः !’ अर्थात् साहित्य, संगीत और कला से विहीन व्यक्ति पशु के समान है ! भारतीय संस्कृति में इसी में एक कला भवन निर्माण की भी है भारतीय संस्कृति में चिनाई के मसाले बनाने की तकनीकें बहुत प्राचीनकाल से विकसित हैं ! सिन्धु घाटी सभ्यता में कई प्रकार के मसाले इस्तेमाल किए जाते थे !

मोहनजोदड़ो के खंडहर शहर में सन् 5000 ईसापूर्व से भी पुराने चिनाई के मसाले का प्रयोग मिलता है ! कुओं और नालियों को बनाने के लिए यहाँ हलकी भूरी रंग की खरिया मिट्टी (हरसौंठ या जिपसम) का मसाला इस्तेमाल होता था जो रेत, मुल्तानी मिटटी, चूना और कैल्शियम कार्बोनेट मिलकर बनाई जाती थी ! मोहन जोदड़ो के महास्नानघर में प्रयोग होने वाले मसाले में डामर (बिटुमन) भी मिलाया गया था जो पानी चूने से रोकता है ! प्राचीन निर्माणों में जोड़ने के लिए जो मसाले प्रयोग में लाये जाते थे उन्हें बनाने का तरीका बेहद सामान्य और सस्ता होता था और आसानी से उपलब्ध भी हो जाता था इनमें – बेल (वुड एप्पल) तम्बाकू ,चुना जिप्सम , लासा (रेजीन्स) जैसे तत्व सम्मिलित किये जाते थे ! इनकी मजबूती सीमेंट से 400 गुना अधिक मजबूत होती है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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