वही वैदिक साहित्य में वास्तु विज्ञान में इसका उत्कृष्ट प्रदर्शन है इसके अनुसार उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम ये चार मूल दिशाएं हैं ! वास्तु विज्ञान में इन चार दिशाओं के अलावा 4 विदिशाएं भी हैं ! आकाश और पाताल को भी इसमें दिशा स्वरूप शामिल किया गया है ! इस प्रकार चार दिशा, चार विदिशा और आकाश पाताल को जोड़कर इस विज्ञान में दिशाओं की संख्या कुल दस माना गया है ! मूल दिशाओं के मध्य की दिशा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा गया है !
यदि भवन निर्माण कला में से वास्तु विज्ञान को निकाल दिया जाये तो उसकी कीमत शून्य है ! वह केवल ईंट, पत्थर, लोहे, सीमेंट के ढेर के सिवाय और कुछ नहीं ! वास्तु नियमों का पालन करने से व्यक्ति को आकाशीय ऊर्जा अधिक प्राप्त होती है ! शास्त्र और विज्ञान दोनों के अनुसार आकाशीय ऊर्जा अधिक मिलने से शरीर की शक्ति बढ़ती है तथा मन प्रसन्न रहता है ! जीवन के लिए पांच तत्वों की परम आवश्यकता होती है ! इन पांच तत्वों की दिशाएं निर्धारित हैं ! ये तत्व हैं वायु, आकाश, अग्नि, जल तथा पृथ्वी ! इनमें से पृथ्वी तत्व की मात्रा ज्यादा होने के कारण मनुष्य के अस्तित्व को एक स्पष्ट आकार मिलता है ! इन पंच महाभूतों के अनुसार रहन-सहन हो तो इसका पूरा-पूरा लाभ मनुष्य को प्राप्त होगा !
विशेष युगों के द्रुत विकासक्रम में वास्तुकला विकसी, ढली और मानव की परिवर्तनशील आवश्यकताओं के उसकी सुरक्षा, कार्य, धर्म, आनंद और अन्य युगप्रर्वतक चिह्नों, अनुरूप बनी ! मिस्र के सादे स्वरूप, चीन के मानक अभिकल्प-स्वरूप, भारत के विदेशी तथा समृद्ध स्वरूप, मैक्सिको के मय और ऐजटेक की अनगढ़ महिमा, यूनान के अत्यंत विकसित देवायतन, रोमन साम्राज्य की बहुविध आवश्यकताओं की पूर्ति करनेवाले जटिल प्रकार के भवन, पुराकालीन आडंबरहीन गिरजे, महान् गाथिक गिरजा भवन और चित्रोपम दुर्ग, तुर्की इमारतों के उत्कृष्ट विन्यास एवं अनुपात और यूरोपीय पुनरुत्थान के भव्य वास्तुकीय स्मारक ऐतिहासिक वास्तु के सतत विकास का लेखा प्रस्तुत करते हैं ! ये सब इमारतें मानव विकास के महान युगों की ओर इंगित करती हैं, जिनमें वास्तुकला जातीय जीवन से अत्यधिक संबंधित होने के कारण उन जातियों की प्रतिभा और महत्वाकांक्षा का, जिनकी उनके स्मारकों पर सुस्पष्ट छाप हैं, दिग्दर्शन कराती हैं ! और इनकी तकनिकी आज की आधुनिक तकनिकियो से कही उन्नत थी !
इसी क्रम में एक मंदिर श्रीरंगम को दुनिया का सबसे बड़ा क्रियाशील हिन्दू मंदिर माना जा सकता है क्योंकि इसका क्षेत्रफल लगभग 6,31,000 वर्ग मी (156 एकड़) है जिसकी परिधि 4 किमी (10,710 फीट) है ! श्रीरंगम सबसे बड़ा क्रियाशील मंदिर होने का दावा करता है क्योंकि भले ही अंगकोर वट दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है लेकिन गैर-क्रियाशील हिन्दू मंदिर है !श्रीरंगम मंदिर का परिसर 7 संकेंद्रित दीवारी अनुभागों और 21 गोपुरम से बना है !मंदिर के गोपुरम को राजगोपुरम कहा जाता है और यह 236 फीट (72 मी) है जो एशिया में सबसे लम्बा है !इसके बारे में एक मिथक है कि गोपुरम के ऊपर से श्रीलंका के तट को देखा जा सकता है ! मंदिर का गठन सात प्रकारों (उन्नत घेरों) से हुआ है जिसका गोपुरम अक्षीय पथ से जुड़ा हुआ है जो सबसे बाहरी प्रकार की तरफ सबसे ऊंचा और एकदम अन्दर की तरफ सबसे नीचा है !