अवश्य पढ़ें क्या ”क्लैट” न्याय व्यवस्था को ही निगल जायेगा ! Yogesh Mishra

सभी जानते हैं कि विधि व्यवसाय में आने के लिए व्यक्ति को एल.एल.बी. (बैचलर इन लॉ एंड लॉजिक) करना आवश्यक है ! पहले तो शिक्षा में परंपरागत तरीके से एल.एल.बी. हुआ करती थी ! जिसमें सभी वर्ग के सभी छात्र एक साथ शिक्षा ग्रहण करते थे !

किंतु वर्तमान में विधि व्यवसाय की नौकरियों को प्रोत्साहित करने के लिये अब एल.एल.बी. का एक नया स्वरूप सामने आया है ! जिसमें विधि की शिक्षा “क्लैट” प्रतियोगिता अर्थात “संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा” के माध्यम से उत्तीर्ण छात्रों को ही दी जाती है !

यह छात्र प्राय: बड़े घरानों के छात्र होते हैं ! इसीलिये जिन महाविद्यालयों में “क्लैट” की नियुक्ति के उपरांत विधि व्यवसाय (एल.एल.बी.) की पढ़ाई पढ़ायी जाती है ! वहां की फीस सामान्य परंपरागत विधि शिक्षा की फ़ीस से 05 से 10 गुना अधिक होती है और क्लैट कॉलेज से पढ़े हुए छात्र बिना जीवन के यथार्थ संघर्ष को जाने पढाई पूरी करते ही बड़े-बड़े कॉरपोरेट सेक्टर के उद्योगपतियों के यहां विधि परामर्शी या विधिक कार्य करने हेतु नियुक्त कर लिये जाते हैं ! जिन्हें एक निश्चित बड़ी रकम तनख्वाह के तौर पर दी जाती है और इन छात्रों का कार्य कॉरपोरेट सेक्टर के उद्योग घरानों के विधिक हितों को संरक्षित करना होता है ! ऐसा बतलाया जाता है ! जबकि होता कुछ और ही है !

कोई बुराई नहीं है इस नई विधि व्यवसाय शिक्षा पध्यति में किंतु कालांतर में जब यह पध्यति विकसित होगी तब उसके दो परिणाम सामने आएंगे ! पहला गरीब घराने के छात्र विधि व्यवसाय कॉलेजों की अधिक फीस होने के कारण वहां शिक्षा नहीं ले पाएंगे ! दूसरा जो संपन्न परिवार के छात्र “क्लैट” के माध्यम से एल.एल.बी. करके कॉरपोरेट घरानों में विधिक कार्य करेंगे ! वह ही भविष्य में निश्चित रूप से कॉरपोरेट सेक्टर के औद्योगिक घराने और राजनीतिज्ञों के साथ मिलीभगत करके हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बनेंगे !

और जब इन्हीं कॉरपोरेट सेक्टर के क्लैट पढ़े हुये छात्र न्यायाधीश नियुक्त होंगे तब वह लोक हित के स्थान पर कॉरपोरेट सेक्टर के उद्योग घरानों का हित देखेंगे ! फिर जब देश में इस तरह के जजों की संख्या बढ़ने लगेगी तब सामान्य जनमानस की पीड़ा को समझने वाले जजों की संख्या बहुत तेजी से भारत की न्यायपालिका में कम होती जायेगी और एक समय वह भी आएगा जब भारत की न्यायपालिका के दरवाजे मात्र कॉरपोरेट सेक्टर के लिये खुले होंगे और सामान्य जनमानस के लिये बंद हो जाएंगे ! और समाज के प्रति संवेदनशील सामान्य घरानों के न्यायाधीशों को हेय दृष्टि से देखा जायेगा !

कहने को तो न्यायपालिका कार्य करती रहेगी किंतु उद्योग घरानों के अलावा अन्य व्यक्तियों को न्याय प्राप्त नहीं होगा ! उसकी वजह तीन होगी पहला उद्योग घरानों से संरक्षित अधिवक्ताओं की फीस इतनी ज्यादा होगी कि जिसे सामान्य व्यक्ति नहीं दे सकेगा ! दूसरा देश में क्लैट की शिक्षा वाले छात्र जब उद्योग घरानों की कृपा पर ! न्यायाधीश बनेंगे तो उनमें आम जनमानस की पीड़ाओं के प्रति कोई भी संवेदनशील दृष्टिकोण नहीं होगा ! और तीसरा क्योंकि इस तरह के न्यायाधीश बड़े घरानों से होंगे इसलिए उनकी प्राथमिकता उद्योग घरानों और प्रशासनिक अधिकारियों को संरक्षण प्रदान करने की होगी न कि गरीब जनमानस के हित में न्याय करने की !

तब हाईकोर्ट भी होगा, सुप्रीम कोर्ट भी होगा, जज भी होंगे, वकील भी होंगे, सब कुछ होगा लेकिन न्यायालयों में आम जनमानस के लिए न्याय नहीं होगा ! यह पूरे के पूरे देश को एक वर्ग संघर्ष की तरफ ले जाएगा जहां पर न्याय न मिलने के कारण सामान्य दर्जे का व्यक्ति संपन्न दर्जे के व्यक्ति के विरुद्ध आक्रोशित होकर देश को किसी भयानक स्थिती में धकेल देगा ! जो राष्ट्र के हित में नहीं होगा !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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