क्या हिटलर ने तंत्र की मदद से खोज था विश्व विजय का रास्ता ! : Yogesh Mishra

नाज़ियों का मानना है कि सच्चे आध्यात्मिक आर्यों तिब्बत हिमालय में रहते हैं ! इसीलिये 1938 में पांच युवा जर्मन वैज्ञानिकों जिसमें भूवैज्ञानिकों, जीवविज्ञानी, और मानवविज्ञानी को स्नेगोव के देश में भेजा गया था ! वह सभी हेनरिक हिमलर के एस.एस. प्रोजेक्ट के लिये काम करते थे ! तिब्बत में पहला अभियान, जिसके दौरान वैज्ञानिकों ने स्थानीय निवासियों के नृविज्ञान माप को अंजाम दिया, सफल रहा, लेकिन युद्ध ने हिमलर की आगे की योजनाओं को रोक दिया !

दूसरी तरफ तीसरा रीच राज्य स्तर पर शंभू ( शैव तांत्रिकों ) की तलाश में भी लगा हुआ था ! जो एक प्रमुख रहस्यमय जाति जो अलौकिक शक्तियों से संपन्न था ! जो नाज़ियों के लिये बेहद आकर्षक साबित हुये ! नाजी विचारधारा का रहस्य इसी रहस्यमय शंग्रीला घाटी से जुड़ा हुआ है !

जैसे ही नाजी आंदोलन ने बड़े वित्तीय संसाधनों कि जरुरत समझी उसने तिब्बत में 1931-1932, 1934-1936, 1939-1940 में कई विस्तृत अभियान चलाये ! जो 1943 तक लगभग एक के बाद एक लगातार होते रहे ! जिस दिन रूसियों द्वारा नाज़ीवाद के अंतिम रक्षक को गोली मारी गयी और जर्मन की लड़ाई समाप्त हुयी ! रूसियों ने पाया कि वहां हिटलर के स्वयंसेवकों के लगभग एक हजार शव थे ! जो तिब्बती रक्त के लोग थे !

इसकी पुष्ठि मई 1945 के एक एस.एस. के रीच चांसलरी द्वारा सुरक्षा के तथ्य की फ़ाइल से होती है ! जो कि सोवियत सैन्य अभिलेखागार के डेटा में रखी गई है ! उसमें लिखा है कि “तिब्बतियों ने आखिरी गोली तक लड़ाई जारी रखी ! उन्होंने अपने घायल साथी को गोली मारी किन्तु आत्मसमर्पण नहीं किया ! एस.एस. की वर्दी में एक भी जीवित तिब्बती नहीं बचा था ! ”

जर्मन वैज्ञानिक एस्कर्ड और कार्ल हौसहोफ़र, जो थुले के आध्यात्मिक समाज के वैचारिक प्रेरक बने, उनके विचार कई प्राचीन कथाओं पर आधारित थी ! जो यह प्रमाणित करते थे कि एक विकसित सभ्यता गोबी जो तीस या चालीस सदियों पहले मौजूद थी ! आपदा के परिणामस्वरूप गोबी एक रेगिस्तान में बदल गई और बचे हुये लोग यूरोप के उत्तर में और कुछ काकेशस चले गये !

उसने थुले समूह की पहल से यह अनुमान लगाया गया था कि यह गोबी सभ्यता के बचे हुये लोग मानवता की मुख्य दौड़ में आर्यों के पूर्वज थे ! एल. पावहल और जे. बर्गियर की किताब “मॉर्निगियंस की सुबह” में “तुला की कथा जर्मन जाति की ही तरह प्राचीन है ! यह एक द्वीप की बात करता है जो सुदूर उत्तर में कहीं गायब हो गये ! अटलांटिस की तरह थुले को एक लुप्त सभ्यता का जादुई केंद्र माना जाता है ! एकार्ट और उनके दोस्तों का मानना था कि थुले का सारा ज्ञान पानी के नीचे था जो बिना ट्रेस के नहीं बचा ! लोगों के बीच विशेष प्राणियों, मध्यस्थों और “जो वहां है,” के पास दीक्षा के लिये उपलब्ध बलों का भंडार है !

वहाँ से एक दुनिया भर में जर्मनी के वर्चस्व को देने के लिये ताकत आ सकती है ! उसे आने वाली अलौकिकता का एक हेराल्ड बनाने के लिये एक उत्परिवर्तित मानव नस्ल की उत्पत्ति आवश्यक है ! वह दिन आयेगा जब पृथ्वी के आध्यात्मिक मार्ग की सभी बाधाओं को दूर करने के लिये दिग्गज जर्मनी से शंग्रीला घाटी चले जायेंगे ! शंग्रीला घाटी के सन्तों के नेतृत्व बल संबद्ध आध्यात्मिक नेताओं द्वारा विश्व विजय किया जायेगा और जो महान आर्य पूर्वजों द्वारा प्रेरित होगा ! इस आर्य सिद्धांत में निहित सत्य ने जादुई विश्ववाद के लिये हिटलर की आत्मा को आध्यात्मिक पोषण दिया ! ”

हिटलर ने परमाणु बम के निर्माण की तुलना में गुप्त मानसिक बलों के अध्ययन पर अधिक पैसा खर्च किया था ! नाजी जर्मनी में सुपरमैन का सिद्धांत और मानवता को नियंत्रित करने वाली रहस्यमय ताकतें कैसे व्यापत हो यह हिटलर की सदैव खोज थीं ! इसीलिये भारतीय हाकी टीम में ध्यान चन्द्र की जादुई शक्ति से हिटलर इतना प्रभावित हुआ कि वह ध्यान चन्द्र को जर्मन की नागरिकता तक देने को तैयार था ! हिटलर ने खुद तंत्र शक्ति सत्ता में वृद्धि के विचारों के अध्ययन का समर्थन किया था ! शायद इसीलिये नाजी वातावरण में प्रमुख वैज्ञानिक विचारक “वहल तंत्र” के सिद्धांत के समर्थक थे !

वहल तंत्र सिद्धांत में कहा है कि लाखों साल पहले पृथ्वी पर मानव देवताओं, दिग्गजों की एक सुपर-सभ्यता थी, और यह कि उत्परिवर्तन, चयन और प्रलय से गुजरने के बाद, “सुपर-इंसानों” की दौड़ को फिर से पुनर्जीवित किया जा सकता है ! वहल तांत्रिकों ने बताया कि आध्यात्मिक शक्ति की तलाश में जर्मनों के पूर्वज उत्तर भारत आये थे ! जहां उन्होंने बर्फ और बर्फ में ताकत हासिल की थी और उन्हें ज्ञात हुआ था कि बर्फ में ईश्वरीय विश्वास की एक प्राकृतिक विरासत है ! बाद मेंजर्मनी आध्यात्मिकता से अलग हो गया और भौतिक विकास का अपना रास्ता चुना और तकनीकी और वैज्ञानिक के विकास के अन्य तरीकों से संसार की तरफ बढ़ता चला गया ! प्रौद्योगिकी में इनकी आध्यात्मिक ऊर्जा के कारण सफलता सराहनीय थी ! जिसने इन्हें आध्यात्म से अलग कर दिया !

1933 में, जर्मनी में एसएस के तत्वावधान में हिटलर के आदेश पर एक विशेष एनेनेबे इंस्टीट्यूट का आयोजन किया गया था ! जिसमें प्राचीन जर्मन इतिहास के अध्ययन के लिये संगठन जर्मन सोसायटी और पूर्वजों की विरासत, एसएस का विभाग, जो 50 संस्थानों के अधीनस्थ था, जिनका कार्य वैज्ञानिक रूप से नाजी नस्लीय सिद्धांत को सिद्ध करना था ! प्रकृति पर शक्ति देने वाले प्राचीन ज्ञान का मनोगत अध्ययन था !

इस तरह के कार्यक्रम के द्वारा संस्थान विशेष रूप से आर्यों के संस्थापकों और तिब्बती अभिजात वर्ग के मानवशास्त्रीय और आध्यात्मिक आयामें की खोज के लिये तिब्बत में अभियान आयोजित करती थी ! अभियानों के कार्यों में से एक अज्ञात ताकतों का भंडार और सत्ता के प्राचीन केंद्र के साथ गठबंधन भी उनका उद्देश्य होता था ! जहाँ योग्य जर्मन निवासियों को आध्यात्मिक मानसिक शक्ति का प्रशिक्षण दिया जाता था ! यही थी हिटलर की आध्यात्मिक मानसिक शक्ति (तंत्र द्वारा ) विश्व विजय का हिमालय के गुप्त आध्यात्मिक केन्द्र शंग्रीला घाटी से निकलने वाला मार्ग !

इस तरह हिटलर आर्य जाति का शंग्रीला घाटी के सन्तों के साथ एक समझौता करके विश्व सत्ता का मालिक और अन्य ग्रहों का स्वामी बनना चाहता था ! इसके लिये उसने एक उड़न तश्तरी भी बना ली थी ! जो पारे जैसे किसी द्रव्य की ऊर्जा से चलती थी ! यदि काल की स्वीकृति से उच्च शक्तियों के साथ आर्य जर्मन का यह समझौते हो जाता ! तो सहस्राब्दियों के लिये पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन बदल जाता और मानव जाति के उद्देश्यहीन होकर विश्व षडयंत्रकारियों के दबाव में मात्र भाग्य के भरोसे न भटक रही होती !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter