काम और यौन आनंद दोनों अलग अलग विषय हैं किन्तु ज्ञान के अभाव में समाज ने अज्ञानता वश यौन आनंद को ही काम ऊर्जा मान लिया है ! यहीं से सारे विकार और विकृतियां समाज में फैलती चली गई !
इसका मूल कारण वैष्णव की इस दुनिया को लूटने की महत्वाकांक्षा के कारण जब वैष्णव को अपनी सेना में युवाओं की भर्ती करनी थी, तब वैष्णव षडयंत्रकारियों ने काम की ऊर्जा को यौन आनंद बतला कर उसे निकृष्ट जीवन शैली की क्रिया घोषित कर दिया !
और कालांतर में जब वैष्णव शासनकाल स्थापित हो गया, तब इसके बाद वैष्णव जीवन शैली के तथाकथिक बुद्धिजीवी धर्मगुरुओं ने समाज में विद्रोह न पनपे, इसके लिये अवतारवाद की अवधारणा स्थापित की और चतुर्वर्नीय वर्ण व्यवस्था स्थापित कर पूजा-पाठ, कर्मकांड आधारित व्यवसायिक आडंबरी जीवन शैली की शुरुआत की !
जिस षडयंत्र को समझ कर आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व काशी निवासी शैव जीवन शैली के समर्थक महर्षि मल्लनाग वात्स्यायन कामसूत्र एवं न्यायसूत्रभाष्य की रचना की ! जिससे प्रभावित होकर चाणक्य जैसे विद्वान् ने इन्हें पाटलीपुत्र अर्थात आज के पटना में स्थाई निवास उपलब्ध करवाया था !
वात्स्यायन ने अपने ग्रन्थ कामसूत्र में मुख्यतया धर्म, अर्थ और काम की व्याख्या की है ! मोक्ष्य को व्यर्थ का विषय मान कर छोड़ दिया क्योंकि शैव जीवन शैली के अनुसार मोक्ष्य जैसी कोई चीज नहीं होती है ! बल्कि शैव सदैव मुक्ति की साधना करते हैं !
इसलिये उन्होने धर्म-अर्थ-काम को नमस्कार करते हुये ही ग्रन्थ का आरम्भ किया है ! उन्होंने धर्म, अर्थ और काम को ‘त्रयी’ विद्या कहा है !
वात्स्यायन का कहना है कि धर्म परमार्थ द्वारा समाज का सम्पादन करता है ! इसलिए धर्म का बोध कराने वाले शास्त्र का होना आवश्यक है ! अर्थसिद्धि के लिए तरह-तरह के उपाय करने पड़ते हैं इसलिए उन उपायों को बतलाने वाले अर्थशास्त्रीयों की समाज में आवश्यकता है इसी तरह काम एक ईश्वरीय ऊर्जा श्रोत या मात्र यौन-आनन्द नहीं है ! इस विज्ञान पर भ्रम से बचने के लिए कामशास्त्र के निर्माण व अध्ययन की मनुष्य प्रजाति को आवश्यकता है क्योंकि मनुष्य के अतिरिक्त अन्य कोई भी जीव-जन्तु, पशु-पक्षी काम ऊर्जा का गलत इस्तमाल नहीं करता है !
वात्स्यायन का दावा है कि यह शास्त्र पति-पत्नी के धार्मिक, सामाजिक नियमों का शिक्षक है ! जिसे शैव जीवन शैली को वैष्णव द्वारा नष्ट करके विलुप्त कर दिया गया है !
जो दम्पति इस शास्त्र के अनुसार दाम्पत्य जीवन व्यतीत करेंगी उनका जीवन काम ऊर्जा के रूपांतरण से से सदा-सर्वदा के लिये सुखी हो जायेगा ! पति-पत्नी दोनों आजीवन एक दूसरे से सन्तुष्ट रहेंगे ! उनके जीवन में एक पत्नीव्रत या एक पातिव्रत को भंग करने की चेष्टा या भावना कभी पैदा नहीं हो सकती है ।
कामसूत्र ग्रन्थ 7 भागों में विभक्त है ! जिसमें से यौन-मिलन से सम्बन्धित मात्र एक भाग ‘#संप्रयोगिकम्’ है। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ का मात्र 20 प्रतिशत ही है ! इस ग्रन्थ में काम के दर्शन, लक्षण, उत्पत्ति, कामेच्छा, काम प्रक्रिया आदि का वर्णन है !
इस ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में ही ‘काम’ की ऊर्जा का विस्तृत वर्णन किया गया है ! काम केवल यौन-आनन्द नहीं है ! काम के अन्तर्गत सभी इन्द्रियों और भावनाओं से अनुभव किया जाने वाला आनन्द निहित है ! जो मनुष्य के समग्र विकास में सहायक है !
गुलाब का इत्र, अच्छी तरह से बनाया गया खाना, त्वचा पर रेशम का स्पर्श, संगीत, किसी महान गायक की वाणी, वसन्त का आनन्द – सभी काम ऊर्जा के विकास के अन्तर्गत ही आते हैं !
महर्षि वात्स्यायन का उद्देश्य स्त्री और पुरुष के बीच के ‘सम्पूर्ण’ शाररिक ही नहीं बल्कि भावनात्मक सम्बन्धों की व्याख्या करना भी है !
ऐसा करते हुए वह हमारे सामने शैव जीवन शैली की दैनन्दिन जीवन के मन्त्रमुग्ध करने वाले प्रसंग, संस्कृति एवं सभ्यता का भी वर्णन कराते हैं ! कामसूत्र ग्रन्थ में दस अध्याय हैं जिनका अध्ययन और मनन करके व्यक्ति शैव जीवन शैली के भावनात्मक और सांसारिक पक्ष को जान सकता है ! जो काम वासना से बहुत अलग है !!