हिटलर व्यक्ति नहीं एक विचारधारा है : Yogesh Mishra

हिटलर की मृत्यु 30 अप्रैल 1945 को बर्लिन में एक बंकर के अंदर खुद को गोली मार कर हुई थी या फिर दक्षिण अमेरिका के अर्जेंटीना में हुई थी ! यह आज भी शोध का विषय है ! लेकिन हिटलर की विचारधारा के कारण विश्व के साम्राज्यवादी और पूंजीवादी दृष्टिकोण की मृत्यु द्वितीय विश्वयुद्ध में जरूर हो गई थी ! यह एक नितांत सत्य है !

वास्तव में 20 अप्रैल 1889 को ऑस्ट्रिया, जर्मन में जन्म लेने वाला हिटलर कोई व्यक्ति नहीं बल्कि यह एक विचारधारा थी और इस विचारधारा का प्रभाव इस विश्व पर इतना गहरा पड़ा कि ब्रिटेन के जिस साम्राज्य में कभी सूर्य अस्त नहीं होता था ! उसी ब्रिटेन का द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साम्राज्य के नाम पर कोई नाम लेने वाला भी नहीं बचा ! इसी हिटलर में अपने से हजारों किलोमीटर दूर समुद्र के उस पार बैठे अमेरिका के पूरे के पूरे पूंजीवादी दृष्टिकोण को ही जड़ से हिला दिया था !

हिटलर की विचारधारा का भय और आतंक आज भी द्वितीय विश्वयुद्ध के दस्तावेजों में सुरक्षित है ! द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब इस युद्ध के कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था टूट गई तब उसे विश्व के कई देशों से अपना साम्राजिक अधिकार वापस लेना पड़ा और तब फिर ब्रिटेन, अमेरिका और रूस के मनोवैज्ञानिक सलाहकारों को यह टास्क दिया गया कि वह विश्व में ऐसा वातावरण बनायें कि जिससे दोबारा किसी और हिटलर के पैदा होने की संभावना खत्म हो जाये !

क्योंकि 500 साल के अथक परिश्रम के बाद जिस पूंजीवादी और साम्राज्यवादी ताकत को ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर खड़ा किया था ! उसको मात्र 5 साल के अंदर हिटलर ने ध्वस्त कर दिया था ! तभी से इन पूंजीवादी और साम्राज्यवादी ताकतों को बराबर यह भय था कि कहीं अगर 2-4 हिटलर इस धरती पर और पैदा हो गये तो शायद पूंजीवाद और समाजवाद का नाम बस सिर्फ इतिहास की किताबों में ही पढ़ने को मिलेगा और इन दोनों नामों के साथ अमेरिका और ब्रिटेन भी खत्म हो जायेगा !

इसके लिये तीन बड़े काम किये गये ! पहला काम हिटलर जो जर्मन का कट्टर राष्ट्रवादी नेता था ! उसे पागल, सनकी और तानाशाह घोषित कर दिया गया ! दूसरा काम हिटलर के सकारात्मक पहलुओं पर पूरे विश्व में चर्चा बंद कर दी गई और तीसरा जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य हुआ वह यह की ! कहीं कोई दूसरा हिटलर न पैदा हो जाये इसके लिये टी.वी. और इंटरनेट के माध्यम से पूरी दुनिया के ऊपर सूचना तंत्र का हमला किया गया ! जिसकी वजह से व्यक्ति के अंदर सोचने-समझने और विश्लेषण करने की क्षमता धीरे-धीरे खत्म हो गयी !

उसका परिणाम यह है कि इंसान को जो दिखाया जाता है ! इंसान उसी को सत्य मानकर उस पर विश्वास कर लेता है ! देखे और सुने हुये तथ्यों के सत्य का परीक्षण करने का सामर्थ्य आज इंसान खो चुका है ! यही इन पूंजीवादी और साम्राज्यवादी ताकतों की सबसे बड़ी नकारात्मक उपलब्धि है और यही उपलब्धि इनका सुरक्षा चक्र है ! क्योंकि जब तक व्यक्ति इनकी विचारधारा का निजी स्तर पर विश्लेषण नहीं करेगा ! तब तक इनका विकास होता रहेगा ! यह एक मनोवैज्ञानिक ध्रुव सत्य है !

इसके लिये फिर चाहे हिटलर के द्वारा लिखे गये सभी साहित्य को पूरी दुनियां में नष्ट ही क्यों न करना पड़े ! उसके कार्यक्रम स्थलों की दीवानों को खरोंच-खरोंच कर उन पर नया इतिहास ही क्यों न लिखना पड़े या वह स्थान जहां से वह कभी ऐतिहासिक वक्तव्य देता था ! उन जगहों पर बड़ी-बड़ी मूर्तियां ही क्यों न स्थापित करनी पड़े ! इसमें कहीं कोई संकोच नहीं किया जाना चाहिये !

और आज उसी का परिणाम है कि विश्व लोकतंत्र के मार्ग से चलते-चलते विश्व सत्ता की ओर पहुंच रहा है ! आने वाला समय निश्चित रूप से हमारे और आपके जीवन काल में ही विश्व सत्ता का समय होगा ! जब पूरी दुनिया में एक ही सरकार होगी, एक ही कानून होगा, एक ही मुद्रा होगी, एक ही विधि व्यवस्था होगी और पूरी दुनिया की आवाम एक ही सरकार के इशारे पर उसके निर्देश का अनुपालन कर रही होगी !

विश्व के सारे संविधान रद्द कर दिये जायेंगे ! विश्व के हर नागरिक के शरीर में एक ऐसी इलेक्ट्रिकल डिवाइस फिट कर दी जायेगी कि उसके द्वारा व्यक्ति कहां आता है, कहां जाता है, वह किससे क्या बात करता है, क्या खाता है, क्या पढ़ता है, कब सोता है, कब जागता है ! यह सारी सूचना उस व्यक्ति से हजारों किलोमीटर दूर बैठा हुआ कोई भी विश्व सत्ता का नुमाइंदा मात्र एक कंप्यूटर की मदद से जान सकेगा !

यह विश्व सत्ता ही पूंजीवाद और साम्राज्यवाद की पराकाष्ठा है ! जिसमें हिटलर की विचारधारा सबसे बड़ा अवरोधक है ! इसीलिये विश्व सत्ता की उपलब्धि के लिये हिटलर को मारने से ज्यादा जरूरी काम था कि हिटलर की विचारधारा को इस दुनिया से खत्म कर दिया जाना चाहिये !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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