विचार करो आप शांति के लिये किसकी पूजा कर रहे हो ! जिन्हें वैष्णव भगवान कहकर पूजते हैं, वह सभी तो वैष्णव धर्म प्रचारक, अवसरवादी, कलह प्रिय, आक्रांता, योद्धा या कूटनीतिज्ञ थे !
जिन लोगों ने अपने संपूर्ण जीवन में धूर्तता, मक्कारी, कलह, विश्वासघात, का सहारा लिया क्या मंदिरों में उनकी मूर्तियां रखकर उनकी पूजा करने से आप अंदर या बाहर किसी भी रूप में शांति को प्राप्त कर सकते हैं !
कौन सा ऐसा मन्दिर में बैठा हुआ वैष्णव भगवान है ! जिसने अपनी शांति और आत्म उत्थान के लिये सर्वस्व का त्याग किया हो !
सभी तो अपने वैष्णव जीवन शैली के प्रचार प्रसार और स्थापना के लिये अजीवन और निरंतर लड़ते रहे हैं !
भारत में व्याप्त जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था इन्हीं वैष्णव शासकों की देन है !
जिसकी पुरजोर पैरवी भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपने मुख से श्रीमद भगवत गीता में उपदेश के रूप में अर्जुन से कर रहे हैं !
अर्जुन यदि अपने स्वजनों की हत्या नहीं करना चाहता और एक ब्राह्मण के रूप में शेष जीवन यापन करना चाहता है तो उसे क्षत्रिय धर्म के नाम पर स्वजनों की हत्या के लिए उकसाने वाला व्यक्ति भगवान कैसे हो सकता है ?
इसी तरह बिना किसी शत्रुता या हानि के अपने नानी की मृत्यु का उलाहना लेकर आयी हुई एक नि:शस्त्र महिला के नाक कान काट लेना कौन सा दिव्य पुरुषार्थ का प्रदर्शन है !
और इसी तरह 300 से अधिक राजाओं की सेना व अस्त्र-शस्त्र लेकर, एक “रक्ष संस्कृति” के संस्थापक शैव धर्म अनुकरणीय राजा पर हमला करना, किस तरह धर्म के अनुसार नीति संगत हो सकता है !
ऐसे ही बहुत से प्रश्न वैष्णव आक्रांता चली और मानवता विरोधी राजाओं को लेकर स्वत: ही मन में उठते हैं ! आखिर इतने पाप करने वाले व्यक्ति भगवान कैसे हो सकते हैं !
यह सब वैष्णव गुरुकुल शिक्षा पद्धति और वैष्णव प्रपंची लेखकों का कमाल है ! जिन्हें मानवता का हत्यारा घोषित किया जाना चाहिए आज उनकी मूर्तियां मंदिरों में रखकर भजन पूजन हो रहा है !
और हम कहते हैं कि पूजा पाठ से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है !!