आखिर तृतीय विश्व युद्ध टलेगा कैसे? : Yogesh Mishra

ब्रह्मांड के आरंभ से ही इष्ट एवं अनिष्ट शक्तियां अस्तित्व में हैं ! यह शक्तियां मुख्यतः ब्रह्मांड के सूक्ष्म-क्षेत्र में विद्यमान हैं ! जिन्हें कारण शरीर कहते हैं ! जो पृथ्वी पर होने वाली हर घटना का कारण बनती हैं ! यही शक्तियां पृथ्वी के सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों को पूरी तरह से प्रभावित करती हैं ! समय-समय पर यह सूक्ष्म शक्तियां सम्पूर्ण ब्रह्मांड में आसुरी राज्य स्थापित करने के लिये पर्याप्त आध्यात्मिक बल प्राप्त कर लेती हैं !

सम्पूर्ण ब्रह्मांड में अच्छी तथा बुरी शक्तियों के बीच संतुलन का कार्य काल निर्धारित करता हैं ! ब्रह्मांड में विद्यमान अनिष्ट शक्तिय जब अति शक्तिशाली हो जाती हैं ! तो काल उन्हें शक्तिहीन करने के लिये उनको आपस में लड़ा कर उनकी शक्ति समाप्त कर देता है ! जिस कारण पृथ्वी पर भी तरह-तरह के युद्ध छिड़ जाते हैं ! जिसका अनुमान ग्रह गोचर से लगाया जा सकता है ! इस समय ब्रह्माण्ड में यही स्थिती चल रही है ! जो अगले 27 वर्षों तक चलेगी !

इन सूक्ष्म-युद्ध की गंभीरता और परिणाम मानवजाति के लिये सदैव अभूतपूर्व होंते हैं ! इष्ट एवं अनिष्ट के मध्य होने वाला भयावह संघर्ष प्रकृति के संतुलन का विधान है ! इसका परिणाम यह होगा कि अनिष्ट शक्तियां पराजित होंगी और ब्रह्मांड में तथा पृथ्वी पर मानवजाति में पुनः अध्यात्म जागृत होगी !

इससे एक नये आध्यात्मिक युग की शुरुआत होगी ! जिसे ईश्वरीय का राज्य या सतयुग भी कहा जा सकता है ! उसकी पुन: स्थापना होगी ! पृथ्वी पर मानवता में अध्यात्म के पुनःजागृत होने का यह युग लगभग एक सहस्त्र वर्षों तक चलता रहेगा !

हममें से अधिकांश लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि पृथ्वी पर घटनेवाली अनेक घटनायें जो कि हमें व्यक्तिगत अथवा सामूहिक स्तर पर प्रभावित करती हैं ! उनके मूल कारण आध्यात्मिक आयाम में होते हैं ! दिव्य संतों द्वारा इस धर्मयुद्ध का प्रभाव ब्रह्मांड के सभी क्षेत्रों में अनुभव किया जा रहा है ! वर्तमान समय में बढती हुई प्राकृतिक आपदा भी इसी सुधार प्रक्रिया का हिस्सा है ! हाल ही में आस्ट्रेलिया में लगी हुई भयंकर आग तो आपको याद ही होगी !

बढती प्राकृतिक आपदाओं का मुख्य सहभागी घटक आध्यात्मिक स्वरूप का ही होता है ! भौतिक घटकों जैसे हरित गृह गैस (ग्रीन हाऊस गैस) इस तरह की समस्याओं में मात्र योगदान करते हैं ! अन्य शब्दों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा क्योटो प्रोटोकाल के अनुपालन की व्यवस्था करने वाले विश्व के शासकीय एवं अशासकीय संगठनों के कार्य यद्यपि मनुष्य द्वारा संचालित दिखाते हैं ! पर यह सभी कुछ उन्हीं ब्रह्मांडीय आध्यात्मिक ऊर्जा से संचालित होते हैं ! हम अधिक से अधिक इन घटना क्रमों में मात्र आंशिक सहयोगी ही हो सकते हैं ! अर्थात आध्यात्मिक आयाम का विचार किये बिना मात्र भौतिक और मानसिक स्तर पर समस्या के समाधान खोजना एक जटिल और अप्रभावी तरीका है !

प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवाद एवं राजनैतिक उथल-पुथल का एक मात्र मुख्य कारण रज एवं तम गुण के सूक्ष्म घटकों में हो रही वृद्धि ही है ! यह वृद्धि वर्तमान काल में उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों की क्रियाशीलता में वृद्धि के कारण तथा समाज का ईश्वरीय ऊर्जा से दूर अत्यधिक भौतिकवादी होना है ! यह सब ब्रह्माण्ड के सूक्ष्म जगत की सकारात्मक एवं नकारात्मक शक्तियों के हाथ में एक कठपुतली की भांति है ! जिस पर सामान्य मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं है !

सज्जन लोग र्इश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करके ईश्वरीय ऊर्जा को पोषित करते हैं ! जबकि दुर्जन लोग अनिष्ट शक्तियों भूत, प्रेत, पिशाच, जिन्न आदि को पोषित करते हैं ! जब तक नकारात्मक शक्तियों का पोषण बंद नहीं किया जायेगा ! तब तक सज्जन लोग शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत नहीं कर सकेंगे ! कनिष्ठ आध्यात्मिक क्षमता के लोग जो आवश्यक नहीं कि अच्छे अथवा बुरे हों वह बडी सुगमता से भूतों के प्रभाव में आकर उनके नियंत्रण में आ जाते हैं ! परिणामस्वरूप वह भी अनिष्ट शक्तियों के नियंत्रण में आकर उन्हें पोषित करते हैं ! जिससे अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव बढ़ता है !

अर्थात सरल शब्दों में कहा जाये कि हम ईश्वरीय ऊर्जा से जितना दूर होंगे ! ब्रह्मांड में तैरती हुई असुरी शक्तियां हमें उतना ही आसानी से अपने कार्य के लिये प्रयोग करेंगी ! वह हमें समय-समय पर पुरस्कृत और पोषित भी करेंगी ! जिससे हम उन्हीं आसुरी शक्तियों को और अधिक सशक्त करते चले जायें ! जो मानवता ही नहीं संपूर्ण पृथ्वी के विनाश का कारण बनेगी !

इसलिये यदि हमें इस पृथ्वी और मानव दोनों को बचाना है तो हमें इन आसुरी शक्तियों के प्रभाव से निकलने के लिये सबसे पहले सात्विक जीवन पध्यति अपनाना पड़ेगा ! इसके लिये ईश्वरी ऊर्जाओं का ध्यान करना चाहिये ! उन्हें पोषित करने के लिये उनको अपनी मानसिक तरंगों से भोजन व शक्ति प्रदान करना चाहिये ! पूर्व के समय में इसी प्रयोजन के लिये यज्ञ आदि अनुष्ठान हुआ करते थे ! हर घर में दान निकालता था ! नित्य ईश्वर को प्रसाद लगता था ! जो अब पूरी तरह से बंद हो गया है !

पोषण के अभाव में शक्ति विहीन देव शक्तियां भी इन आसुरी शक्तियों के सामने निर्बल हो जाती हैं ! इसलिये यदि हमें अपने आप को बचाना है तो हमें सर्वप्रथम देव शक्तियों के पोषण के लिये खुद को सात्विक बनाना होगा ! अपनी वैचारिक तरंगों से देव शक्तियों को पोषित करना होगा और अपने संस्कार और आचार, व्यवहार से पृथ्वी पर सकारात्मक परिवेश का निर्माण करना होगा ! तभी यह पृथ्वी बच पायेगी !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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