आजकल दलितों के समर्थन में बहुत से एन.जी.ओ. मुस्लिम और ईसाई देशों से धन लाकर ब्राह्मणों के विरोध में काल्पनिक साहित्य का निर्माण कर रहे हैं ! ब्राह्मणों के विरोध में बहुत सी ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन किया ला रहा है, जिसमें शोषण करने वाले ब्राह्मण और शोषित होने वाले शुद्र व्यक्ति का न तो कहीं नाम है और न ही समय तारीख व स्थान का वर्णन है ! फिर भी कथा वास्तविक मान ली जा रही है !
इतिहास के आधे-अधूरे तथ्यों को लेकर उस देश, काल, परिस्थितियों का वर्णन किये बिना भी यह सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है कि ब्राह्मणों ने दलितों का शोषण किया था ! जबकि वास्तविक स्थिती इससे एकदम पलट है !
1857 की क्रांति में गुरुकुल ने राष्ट्र हित में जो संगठित रूप से अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम छेडा था, उससे नाराज होकर अंग्रेजों ने गुरुकुल चलाने वाले ब्राह्मणों को समूल नष्ट करने का संकल्प ले लिया था ! उसी का परिणाम था कि कानून बनाकर समाज के हथियार रखने व प्रशिक्षण देने के अधिकार को खत्म कर दिया गया और भारतीयों को दंडित करने के लिये भारतीय दंड संहिता लागू की गई !
फिर पुलिस अधिनियम लागू कर समाज के दलित वर्ग को बतौर सिपाही उसमें में भर्ती किया गया ! जिसको नियंत्रित और निर्देशित करने वाला अंग्रेज अधिकारी होता था ! जो निरंतर भारत माता का शोषण कर रहे थे !
साथ ही ब्राह्मणों द्वारा संचालित गुरुकुल भी समाप्त करने के लिये तरह-तरह के शिक्षा अधिनियम लाकर दलित सिपाहियों के बलबूते पर गुरुकुलओं को उजाड़ दिया गया था ! गुरुकुल को उजाड़ने और ब्राह्मणों को खत्म करने में दलितों ने खूब बढ़ चढ़कर अंग्रेजों का साथ दिया ! क्योंकि अंग्रेजों द्वारा इन्हें इस तरह की सूचनायें देने के लिये पुरस्कार में दारु और मीट के कुछ टुकड़े मिल जाया करते थे !
क्योंकि दलित श्रमिक वर्ग के थे ! बौद्धिक रूप से कमजोर होने के कारण गुरुकुलों की शिक्षा में इनकी कोई रुचि नहीं थी ! वेद, व्याकरण, ज्योतिष, दर्शन, उपनिषद् आदि का अध्ययन सवर्ण लोग करते थे और यह लोग गुरुकुलओं से मात्र हुनर की शिक्षा तीर, भला, धनुष, आदि हथियार बनाना बढई, लोहारी, कृषि आदि की शिक्षा लिया करते थे ! जो शिक्षा गुरुकुलओं के बंद हो जाने के बाद इन्हें अपने माता-पिता से मिलने लगी थी ! इसलिये गुरुकुलओं के बंद हो जाने से इन्हें कोई विशेष फर्क नहीं पड़ा था !
अंग्रेजों की सेवा और चाटुकारिता में 1857 के बाद नये-नये दलित नेता उभर कर सामने आने लगे और बहुत बड़ी मात्रा में सबसे पहले दलितों ने ही हिंदुत्व की बुराई कर ईसाई धर्म अपनाकर ईसाइयों व अंग्रेजों का मनोबल बढ़ाया !
इसका स्पष्ट आंकड़ा इस बात से मिलता है कि अंग्रेजों से स्वतंत्रता मांगने वाले क्रांतिकारियों में ज्यादातर जिन लोगों को काला पानी की सजा दी गयी या उनकी हत्या की गई या उन्हें फांसी पर चढ़ाया गया ! वह ज्यादातर लोग सवर्ण ही थे और क्रांतिकारियों की मुखबिरी करने वाले और अंग्रेजों से दारू और मीट का पुरस्कार देने वाले ज्यादातर लोग शुद्र ही थे !
इसके सरकारी आंकड़े आज भी उपलब्ध हैं ! अंग्रेजों के साम्राज्य विस्तार के लिये अंग्रेजों की सेना में शामिल होकर पूरी दुनिया में लड़ाई करने वाले लोगों में सबसे अधिक संख्या दलितों की ही थी ! इसकी जानकारी दिल्ली में खड़ा हुआ इंडिया गेट देता है ! जिस पर आज भी कुल 95,300 ब्रिटिश सैनिकों के नाम दर्ज हैं। इनमें से मुसलमान 61,395, दलित 37,307 और सवर्ण मात्र 598 हैं ! जिन्हें अपने बहू बेटियों और सम्पति की रक्षा के लिये मजबूरी में अंग्रेजों के लिये कार्य करना पड़ा !
देश की आजादी के बाद भी जब नाथूराम गोडसे ने दिल्ली में गांधी को गोली मारी तो महाराष्ट्र के 65,000 चितपावन ब्राह्मणों को मारने, लूटने और नष्ट करने वाले ज्यादातर लोग दलित ही थे !
भूमि अधिग्रहण के नाम पर 565 रियासतों में से 527 सवर्ण राजाओं की रियासतों और लाखों सवर्ण जमींदारों को करोड़ों एकड़ जमीन छीन कर इन दलितों को आज तक बाँटीं जा रही हैं !
सवर्ण छात्रों से दलितों के मुकाबले कई गुना ज्यादा फीस एवं शिक्षा व देश के महत्वपूर्ण पदों पर आरक्षण के नाम पर योग्य, शिक्षित और पढ़े-लिखे सवर्णों को तिरस्कृत कर नाकारा और अयोग्य लोगों की भर्ती किया जाना आज भी जारी है !
यदि भारत का कोई नागरिक सत्य बोलता है तो उस व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिये आज भी राजनैतिक उधार खाये बेठे है और दूसरी तरह “ब्राह्मणों भारत छोडो” का नारा लगने वालें के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हो रही है ! जबकि इनको कंट्रोल रेट पर अनाज, मुफ्त की गैस, बिजली, मुफ्त का मकान, मुफ्त की शिक्षा, आरक्षण में नाकारों को नौकरी आदि सब कुछ सवर्णों द्वारा दिये गये टैक्स से ही प्रदान कराया जाता है !
इससे स्पष्ट होता है कि जो दलितों के साथ शोषण की जो बात कही जाती है वह निहाई कपोल कल्पित किस्से कहानियों के अलावा और कुछ नहीं है और वास्तविकता यह है कि आज सवर्णों के अधिकार को मारकर जो दलितों को दिया जा रहा है उससे समाज ही नहीं राष्ट्र भी नष्ट होने के कगार पर आ गया है !!