ब्राह्मणों को ईश्वर ने अलग-अलग सामाजिक दायित्वों के लिये अलग-अलग गुण-धर्म के अनुसार निर्मित किया है ! यदि ब्राह्मणों में आज भी रक्त की शुद्धता है तो वह गुणधर्म आज भी स्पष्ट देखे जा सकते हैं ! जैसे यजुर्वेद के शुक्ल पक्ष का पूजन कराने वाले ब्राह्मण आज भी अपने नाम के आगे शुक्ला शब्द का प्रयोग करते हैं ! जो शैव आराधना और रुद्राभिषेक के लिये पूर्ण योग्य होते हैं !
इसी तरह अग्नि पूजन कराने वाले ब्राह्मण अग्निहोत्र शब्द का प्रयोग करते हैं ! जो हवन यज्ञ आदि के लिये श्रेष्ठ हैं ! इसी तरह नदियों के तट पर व मंदिरों में पंडा कर्म करने वाले ब्राह्मण पांडेय शब्द का प्रयोग करते हैं ! वेदों का पाठ करने वाले ब्राह्मण पाठक ! दो वेदों पर प्रवचन करने वाले दुवेदी ! तीन वेदो की व्याख्या करने वाले त्रिवेदी और चारों वेदों के जानकार एवं उनकी व्याख्या करने वाले चतुर्वेदी शब्द का प्रयोग करते हैं !
इसी तरह ब्राह्मणों के सरनेम उनके कर्म के अनुसार हैं ! जिनकी बहुत बड़ी व्याख्या लिस्ट है ! किंतु हम यहां चर्चा “मिश्रा” शब्द के सरनेम की करना चाहते हैं ! जो आज के समाज में सामाजिक संगठनों के मुखिया या मुख्य सलाहकार के रूप में जाने जाते हैं !
आपने देखा होगा कि समाज में हर राजनैतिक व्यक्ति की सफलता के पीछे किसी न किसी “मिश्रा” का सहयोग अवश्य होता है और जब तक मिश्रा किसी भी राजनैतिक व्यक्ति का स्वतंत्र रूप से सहयोग नहीं करते हैं ! तब तक कोई भी राजनैतिक या सामाजिक संगठन लंबी आयु तक जल्दी खड़ा नहीं रह पाता है !
उदाहरण के लिये समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव को खड़ा करने में जनेश्वर मिश्र जी का महत्वपूर्ण मार्गदर्शन और सहयोग रहा है ! इसी तरह ब्राह्मण विरोधी मायावती की बहुजन समाज पार्टी को जब तक सतीश चंद्र मिश्र का पूरा सहयोग नहीं मिला, तब तक वह कांशी राम के न रहने के बाद अस्थिर स्थिति में ही रही हैं !
प्रधानमंत्री काल में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को राजनीतिक और सामाजिक कार्यों के अनुभवहीन अवस्था में पंडित कन्हैया लाल मिश्रा ने ही उन्हें संभाला और उनका मार्गदर्शन किया ! जिस वजह से वह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में जाने गये !
इसी तरह अटल बिहारी वाजपेई जी के प्रमुख सलाहकार एवं कारिंदे के रूप में बृजेश मिश्र जी की भूमिका महत्वपूर्ण रही है और वर्तमान में भारत के मेधावी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कार्य व्यवस्था को संभालने का दायित्व भी नृपेंद्र मिश्रा के ही पास है ! जबकि उनका कार्यकाल पूर्ण हो चुका है ! फिर भी शासन व्यवस्था में उन्हें अपना दायित्व निर्वहन के लिये अतिरिक्त अवसर प्रदान किया गया है !
इसी तरह पूर्व में गौतम बुद्ध को गौतम बुद्ध बनाने वाला व्यक्ति बनारस का शैव उपासक द्रोंण मिश्रा ही था और आदि गुरु शंकराचार्य का मनोरथ सफल करने वाला व्यक्ति मंडन मिश्र ही था !
ऐसे ही सैकड़ों उदाहरण मिल जायेगे ! जब देश में सामाजिक व राजनैतिक काम करने वाले मेधावी, योग्य, मेहंती, लोगों का मार्गदर्शन ब्राह्मणों में “मिश्रा” सरनेम के लोगों ने किया है और उन व्यक्तियों को विश्व की सफलतम पराकाष्ठा पर लाकर खड़ा कर दिया है !
सामाजिक जीवन में शुद्ध रक्त के मिश्रा लोगों का क्या महत्व है ! इसका विश्लेषण आप स्वयं कीजिये और ईश्वरीय वरदान के रूप में जो समाज को मिश्रा लोगों के गुण धर्म के अनुसार उपलब्धियां हैं ! उसका लाभ उठाइये ! यही सही समझदारी है ! क्योंकि सामाजिक संगठनों को खड़ा करने और मार्गदर्शक करने की गहरी समझ, धैर्य और विश्वसनीयता “मिश्रा” लोगों में ईश्वर द्वारा प्रदत्य ईश्वरीय वरदान है !!