मंदोदरी संहिता : Yogesh Mishra
क्या आपने कभी विचार किया कि रावण जैसा अभूतपूर्व ब्राह्मण विद्वान् जिसने अनेकों नयी विद्याओं की खोज की थी तथा अपने उस ज्ञान के द्वारा जिन विधाओं का निर्माण किया था ! वह सब कहां विलुप्त हो गई और अब वह ज्ञान समाज में समाज के लाभ के लिये प्रचलित क्यों नहीं है ?
इन्हीं विद्याओं के मध्य से किसी भी व्यक्ति के वर्तमान, भूत और भविष्य दर्शन के लिए रावण ने ज्योतिष के जिन मौलिक सिद्धांतों का निर्माण किया था ! वह आज भी निसंदेह महर्षि भृगु और पाराशर से भी श्रेष्ठ हैं किंतु वह सब वैष्णव गुरुकुल संचालकों के षड्यंत्र की अग्नि में काल के प्रवाह में नष्ट हो गये !
जिस पर मैंने गत 35 वर्ष के ज्योतिष अनुभव और 12 वर्ष की गहन साधना के उपरांत शोध करने पर यह निष्कर्ष निकाला है कि भारत के मूल भाषा तमिल के लोकगीतों में आज भी रावण द्वारा स्थापित किये गये ज्योतिष के मूल सिद्धांत तमिल आदिवासियों के मध्य जीवित हैं ! बस आवश्यकता है उन्हें क्रमबद्ध तरीके से संग्रहित करने की !
जो धन के अभाव में मेरे संस्थान द्वारा किया जाना संभव नहीं हो पा रहा है ! लेकिन निश्चय ही भविष्य में जब कभी कोई विद्वान इस विधा पर कार्य करेगा तो इस ज्योतिषीय ज्ञान से समाज को अत्यंत लाभ होगा !
लेकिन अपने शोध के आधार पर जो मैंने लंकेश के विलुप्त प्राय ज्ञान को संग्रहित किया है ! उस ज्ञान के आधार पर मैंने यह पाया है कि रावण अपनी अति विद्वान पत्नी मंदोदरी से प्राय: ज्योतिष के मूल सिद्धांतों की व्याख्या व चर्चा किया करता था ! जिसे मां मंदोदरी लंका साम्राज्य की मूल राष्ट्रीय भाषा तमिल के लोकगीतों में रचित व संग्रहित कर समाज में प्रचार व प्रसार किया करती थी ! जो आज भी प्राय: दक्षिण भारत, लंका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, वर्मा आदि देशों में शिलालेख के रूप में प्राप्त है !
आज उन्हें सिद्धांतों को सामान्य हिंदी भाषा में परिवर्तित कर मैंने ज्योतिष की एक नई विधा जो आज मेरे दृष्टिकोण से जीवन के समग्र दर्शन को शत प्रतिशत सत्य प्रस्तुत करने की स्थिति में है तथा मनुष्य के पूर्व जन्मों के कर्मों का वर्तमान जीवन पर प्रभाव एवं मनुष्य के पूर्व जन्मों के संस्कारों के कारण व्यक्ति वर्तमान समय में जो कर्म कर रहा है, उससे उसके भविष्य के जीवन के प्रभाव का वर्णन विस्तार से किया जा सकता है !
इस ज्ञान को मैंने अपनी सरल भाषा में “मंदोदरी संहिता” के नाम से संग्रहित किया है ! जो धन के आभाव में प्रकाशित नहीं कर पा रहा हूँ ! जिसके प्रकाशन में धन लगाने के लिये एक अच्छे प्रकाशक की आवश्यकता है !