राक्षसताल तिब्बत में एक झील है जो मानसरोवर और कैलाश पर्वत के पास, उनसे पश्चिम में स्थित है ! कैलाश मानसरोवर का पानी मीठा है पर राक्षसताल का खारा है ! मानसरोवर में मछलियों और जलीय पौधों की भरमार है जबकि राक्षसताल के खारे पानी में यह नहीं पनप पाते ! स्थानीय तिब्बती लोग इसके पानी को विषैला मानते हैं !
राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे में फैला है ! इस झील के तट राक्षसों के राजा रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी ! इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं ! एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोड़ती है !
सतलुज नदी राक्षसतल के उत्तरी छोर से शुरु होती है ! पवित्र मानसरोवर और कैलाश के इतना पास होने के बावजूद राक्षसताल हिन्दुओं और बौद्ध-धर्मियों द्वारा पवित्र या पूजनीय नहीं मानी जाती ! इसे तिब्बती भाषा में “लग्नगर त्सो” कहते हैं ! प्रशासनिक रूप से यह तिब्बत के न्गारी विभाग में भारत की सीमा के पास स्थित है !
मानसरोवर गोल है और इसे सूरज का और दिन की रोशनी का प्रतीक माना जाता है जबकि राक्षसताल के आकार की तुलना अर्धचंद्र से की जाती है और इसे रात्रि का और अंधेरे का प्रतीक माना जाता है !
रावण तंत्र का प्रकांड ज्ञाता था ! उसने इसी राक्षस ताल के निकट भगवान शिव की सघन तपस्या की थी ! जिसके परिणाम स्वरूप उसे भगवान शिव से तंत्र का विस्तृत ज्ञान प्राप्त हुआ था ! इसी ताल में स्नान करने के बाद वह नित्य भगवान शिव की पूजा आराधना करता था ! “शिव तांडव स्त्रोत” का निर्माण इसी ताल के निकट किया था ! आज भी तंत्र साधनाओं की सिध्दि प्राप्त करने के लिए बहुत से तांत्रिक इस राक्षस ताल के निकट तप करते पाये जाते हैं जोकि वह लोग समाज के किसी भी व्यक्ति से कोई संबंध नहीं रखते हैं और वह तंत्र मार्ग से अपने आत्म शोधन में लगे हुए हैं !
राक्षसकुंड में नहाने से मना करने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी बताया जाता है कि इसके पानी में कुछ खास तरह की प्राकृतकि गैसें मिली हुई हैं, जो पानी को थोड़ा जहरीला सा बना देती है ! हो सकता है कि इसके पानी से आप मरें नहीं, लेकिन इसका आप पर कुछ नकारात्मक असर हो सकता है ! इसलिए जो लोग संवेदनशील हैं उनका कहना है कि यह ताल नहाने के लिए ठीक नहीं है !