जानिए तंत्र को बदनाम करने में कौन कौन सी साजिशें की गई : Yogesh Mishra

तंत्र को लेकर समाज में फैली कुरीतियाँ, अंधविश्वास और अज्ञानता तंत्र साधक वर्ग के लिये कष्टदायी है ! आये दिन ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जिसमें मानसिक रूप से कुंठित लोगों के क्रियाकलापों को कारण तंत्र और तांत्रिक दोनों ही बदनाम हो रहे हैं !

मेरा कहना है किसी भी प्रकार की बलि या दारू की बोतल लेकर नाचने से कोई भी व्यक्ति तंत्र के मूल सिद्धांतो और उद्देश्यों को नहीं समझ सकता है ! पर अनेक जगहों पर इसका बोल बाला है जो तंत्र के क्षेत्र में एक विकृति है ! ऐसे लोग तांत्रिक के नाम पर कलंक हैं ! जिस कारण तंत्र के विषय में नित नई भ्रान्तियाँ फैल रही हैं ! ऐसे ही लोगों के कारण समाज तंत्र साधना को एक निकृष्ट कार्य समझता है !

जबकि तंत्र जनकल्याण हेतु भगवान् शिव द्वारा रचित एक दुर्लभ विद्या है ! इसका क्षेत्र बड़ा व्यापक है ! जितने भी मंत्र साधना एवं पद्धतियाँ या माध्यम (यंत्र) गुप्त अथवा प्रचलित हैं वह सभी तंत्र के ही अंग हैं ! तंत्र एवं तांत्रिक प्रक्रियाओं को वैदिक मान्यता भी प्राप्त है !

इससे यह बात निश्चित हो जाती है कि जो वेदों में वर्णित है वह अशुभ हो ही नहीं सकता है ! दूसरी ओर तंत्र का समस्त कार्य क्षेत्र भगवान् शिव (शिव अथवा जो कल्याणकारी है ) तथा भगवती काली (जिसका नाम सुनकर काल भी भाग खड़ा हो ) के चारों ओर घूमता है ! तो यह बुरा कैसे हो सकता है !

वास्तव में इसका स्वरूप विकृत हुआ कुछ मानसिक रूप से विक्षप्त लोगों के तंत्र क्षेत्र में व्यवसायिक रूप से आने का कारण ! जो स्वयं तो बुरी दशा को प्राप्त होते ही हैं ! आमजन का भी बुरा करते हैं ! कलयुग के इन अनैतिक संतानों ने सनातन धर्म के एक अत्यंत सुंदर एवं अलौकिक अंग को विकृत कर दिया है !

यह वह लोग हैं ! जिन्होंने तंत्र के पंचमकार (मांस, मदिरा, मत्स्य, मुद्रा, मैथुन ) का प्रयोग अपनी लिप्सा की पूर्ति के लिये किया है ! न कि समाज के कल्याण के लिये ! इसीलिये इनके विकृत कर्म के कारण तंत्र को धर्म से अलग कर दिया गया है !

एक सच्चा तंत्र साधक पंचमकार के सही अर्थ को इस प्रकार जानता है कि ब्रह्मरंध्र से सृजित अमृतधारा का नाम है “सूरा” इसका पान करना ही मद्यपान है ! जो काम, क्रोध, लोभ, मोह रुपी पशुवत आचरण को विवेक रुपी तलवार से शिरोच्छेदन कर इसके मांस को ब्रह्माग्नि में पकाकर भक्षण करता है ! यह पूर्ण अदृश्य क्रिया है ! इसका लौकिक पदार्थों से कोई लेना देना नहीं है !

अहंकार, दंभ, मद, मत्सर, पिशुन तथा द्वेष यह छः मत्स्य हैं ! इनका सेवन वाममार्ग में प्रतिपादित है ! आशा, तृष्णा, जुगुप्सा, भय, घृणा, मान, लज्जा, प्रकोप आदि अष्ट मुद्राएँ हैं ! मनुष्य के शरीर में इडा, पिंगला, सुषुम्ना, नामक तीन नाड़ियाँ हैं इन तीनो का मिलन ही मैथुन है ! इस प्रकार से पंचमकार ही मोक्षदायी है !

भगवान् श्री कृष्ण ने कई बार विकट परिस्थितियों में अर्जुन से योग माया माँ दुर्गा की तांत्रिक उपासना करवाई थी ! तंत्र साधनाओं के कई उपाख्यान पुराणों में भी मिलेंगे ! जहाँ भगवान् श्री राम हनुमान लक्ष्मण जैसे अवतारों ने भी प्रबल तंत्र के माध्यम से भगवान् शिव एवं शिवा की साधना कर सफलता हाँसिल की थी !

पर अफसोस तो तब होता है जब तंत्र को परिभाषित करने के लिये उन ठगों को आदर्श बनाया जाता है ! जो भोले भाले लोंगों के अंधविश्वासों का फायदा उठाते हैं ! परन्तु यह तांत्रिक नहीं हैं ! ठग हैं ! ऐसे लोगों को हिन्दू धर्म बदनाम करने के लिये एक षडयंत्र के तहत मुग़ल व अंग्रेजों के शासनकाल में खूब संरक्षण मिला था !

तांत्रिक वह हैं ! जो स्वयं पर संयम की साधना कर सकतें हैं ! शराब पीकर, जीव की बलि देकर ब्रह्मचर्य का त्याग कर साधना नहीं हो सकती ! यह विशुद्ध अय्याशी है ! इससे सिर्फ धर्म की हानि होती है !

सत्य के प्रकाश में साधना और ब्रह्मचर्य का वही साथ है ! जो शिव और शिवा का है अर्थात एक के बिना दुसरे की कल्पना नहीं की जा सकती है ! यह प्रमाणित है कि उन अनैतिक व्यक्तियों के लिये साधना लोगों को डराने का एक जरिया है ! जो दो चार ग्राम्य भाषा के मंत्र सीखकर अजीबो गरीब तरीके से लोंगों को डराकर बेवकूफ बनाते हैं !

आज आवश्यकता है की हम तंत्र और पाखंड में अंतर समझें ! क्योकि पाखंड से साधारण जन को केवल नुकसान ही पहुँच सकता है जबकि तंत्र की रचना भगवान् शिव ने जनकल्याण के लिये की थी ! वेद और पुराण इस क्रिया के साक्षी हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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