सुदर्शन चक्र ज्योतिष का मूल आधार है। आत्मा मन तथा शरीर का सही समायोजन जीवन की पूर्णता के लिए परम आवश्यक है। आत्मा जातक की सबसे भीतरी स्थिति है। मन उससे बाहर की तथा शरीर सबसे बाह्य स्थिति है। इसी प्रकार का क्रम सुदर्शन चक्र कुंडली में भी है। सबसे भीतर सूर्य कुंडली उससे ऊपर चंद्र कुंडली, सबसे बाहर लग्न कुंडली। आत्मा का प्रभाव मन पर व मन के विचारों का प्रभाव जातक के शरीर पर पड़ता है।
प्रत्येक जातक में आत्मा के रूप में विचार, प्रयास, गंभीरता, सुख दुखः करूणा, दया, प्रेम के भाव का विकास होता है। यही पुनर्जन्म का गूढ़ रहस्य है। हमारे दूरदर्शी ज्योतिष मर्मज्ञ ऋषियों मुनियों ने सूर्य एवं चंद्रमा द्वारा बनने वाले योगों पर विचार करना बताया है।
मन और आत्मा का सही समायोजन जातक के व्यक्तित्व का विकास करता है। सूर्य से बनने वाले वसियोग, वासियोग, उभयचारी योग में चंद्रमा को विशेष महत्व दिया है एवं सर्य से चंद्र की स्थिति के आधार पर इन योगों का निर्माण किया गया है। चंद्रमा से बनने वाले सुनफा योग, अनफा योग, दुरधरा योग, केन्द्रुम योग सूर्य एवं चंद्रमा की विशेष स्थिति के आधार पर ही निर्धारित किये जाते हैं। इन योगों पर गहनता से विचार करके जातक के व्यक्तित्व, भविष्य आदि के बारे में फल कथन किया जाता है।
बुधादित्य योग, गजकेसरी योग आदि योगों के अध्ययन से जातक के मन, आत्मा की गहराई जानी जा सकती है। लग्न कुण्डली से यह पता चलता है कि उपरोक्त योग कब कैसे फलित होंगे । वास्तव में सुदर्शन चक्र ज्योतिष का पूर्ण आध्यात्मिक व सांसारिक पक्ष है।