जानिए विवाह विलंब में मंगल की भूमिका : Yogesh Mishra

वर या वधु किसी एक की कुंडली में मंगल का सप्तम में होना और दूसरे की कुंडली में 1 !4 !7 !8 या 12 में से किसी एक में मंगल का नहीं होना पति या पत्नी के लिये हानिकारक माना जाता है ! उसका कारण होता है कि पति या पत्नी के बीच की दूरिया केवल इसलिये हो जाती हैं क्योंकि पति या पत्नी के परिवार वाले जिसके अन्दर माता या पिता को यह मंगल जलन या गुस्सा देता है और अक्सर पारिवारिक मामलों के कारण रिस्ते खराब हो जाते हैं !

पति की कुंडली में सप्तम भाव मे मंगल होने से पति का झुकाव घर की बजाय बाहर वालो में अधिक होता है ! पति के अन्दर अधिक गर्मी के कारण किसी भी प्रकार की जाने वाली बात को धधकते हुये अंगारे की तरह माना जाता है ! जिससे पत्नी का ह्रदय बातों को सुनकर विदीर्ण होता है !

कभी कभी तो वह मानसिक बीमारी की शिकार हो जाती है ! उससे न तो पति को छोडा जा सकता है ! और ना ही ग्रहण किया जा सकता है ! पति की माता और पिता को अधिक परेशानी हो जाती है ! माता को तो कितनी ही बुराइयां पत्नी के अन्दर दिखाई देने लगती है ! वह बात बात में पत्नी को ताने मारने लगती है ! और घर के अन्दर इतना गृहक्लेश बढ जाता है कि पिता के लिये असहनीय हो जाता है ! पत्नी के परिवार वाले सम्पूर्ण जिन्दगी के लिये पत्नी को अपने साथ ले जाते है !

पति की दूसरी शादी होती है ! और दूसरी शादी का सम्बन्ध अक्सर कुंडली के बारहवें भाव से होने के कारण बारहवें से सप्तम् ‘षष्ठ’ शत्रु भाव होने के कारण दूसरी पत्नी का परिवार पति के लिये चुनौती भरा हो जाता है ! और पति के लिये दूसरी पत्नी के परिजनों के द्वारा किये जाने वाले व्यवहार के कारण वह धीरे धीरे अपने कार्यों से अपने व्यवहार से पत्नी से दूरियां बनाना शुरु कर देता है और एक दिन ऐसा आता है कि दूसरी पत्नी पति पर उसी तरह से शासन करने लगती है जिस प्रकार से एक नौकर से मालिक व्यवहार करता है ! जब भी कोई बात होती है तो पत्नी अपने बच्चों के द्वारा पति को प्रताडित करवाती है ! पति को मजबूरी से मंगल की उम्र निकल जाने के कारण सब कुछ सुनना पडता है ! यह एक साधारण फलित है !

जातक सुख के पीछे भाग दौड़ करता रहता है ! ओर सुख आगे आगे भागता रहता है ! दोनों का संग ही नही हो पाता ! ओर जिन्दगी के सारे मुकाम बीत जाते हैं फिर जातक बुढ़ापे जैसे रोगो की लपेट में आपने आप को जकड़े हुये बेबस ओर लाचार महसूस करते पाया जाता है !

अब कुछ विवाह विलंब के योग :-

1. सप्तमेश वक्री होकर बैठा हो एंव मंगल आठवें भाव में हो तो विवाह विलंब के योग बनते हैं ! इस योग में जन्मे जातक का विवाह प्राय: अति विलंब से ही संभव है ! अर्थात् विवाह योग्य आयु निकल जाने के बाद ही वैवाहिक कार्य सम्पत्र होता है !

2. लग्न ! सांतवां भाव ! सप्तमेश व शक्र स्थिर राशि- वृष ! सिंह वृश्चिक और कुंभ में स्थित हो तथा चंद्रमा चार राशि- मेष ! कर्क ! तुला और मकर में हो तो यह योग बनता है ! ऐसे जातक का विवाह भी अति विलंब से ही सम्पत्र होता है ! यदि उपरोक्त योग का कहीं भी शनि से संबंध बन जाए तो जीवन के पचासवें वसंत व्ययतीत होने के बाद ही जातक का वैवाहिक संयोग बनते हैं !

3. सप्तमेश सप्तम भाव से यदि छठें ! आठवें एंव बारहवे स्थान पर हो तो भी विवाह विलंब के योग निर्मित होते है ! इस योग में जन्मे जातक का विवाह भी अति विलंब से ही संभव हो पाता है ! अर्थात् विवाह योग्य आयु निकल जाने के बाद ही वैवाहिक संयोग निर्मित होते है !

4. सप्तमेश यदि शनि से युक्त होकर बैठा हो या शनि शुक्र के साथ हो या शुक्र द्वारा दृष्ट हो तो यह योग निर्मित होता है ! इस योग में जन्मे जातक का विवाह भी पर्याप्त विलंब से संभव होता है ! अर्थात विवाह योग्य आयु व्ययतीत होने के बाद ही वैवाहिक संयोग निर्मित होते है !

5. यदि शुक लग्न से चौथे स्थान में तथा चंद्रमा छठे ! आठवें और बारहवें स्थान में हो तो यह योग निर्मित होता है ! इस योग में जन्मे जातक का विवाह भी पर्याप्त विलंब से ही संभव होता है ! अर्थात् विवाह योग्य आयु निकल के बाद ही वैवाहिक कार्य संभव होता है !

6. राहु और शुक्र लग्न में तथ मंगल सातवें स्थान में हो तो यह येाग बनता है ! इस योग में जन्मे जातक का विवाह भी विलंब से सम्पत्र होता है ! अर्थात् विवाह योग्य आयु निकल के बाद ही जातक वैवाहिक डोर में बंधते हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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