डिप्रेशन रोग नहीं एक भावनात्मक मानसिक अवस्था है !! : Yogesh Mishra

सभी जानते हैं वर्तमान युग भागदौड़ और कशमकश भरा है ! आज के युग में हर इंसान मशीन के जैसे जीवनयापन करने के लिये मजबूर है ! कारण हर इंसान की आकांक्षाएं और महत्वकांशायें इतनी हो गई हैं कि, वह किसी भी तरह से अपने आप से संतुष्ट नहीं हो पा रहा है, और इस कारण आम आदमी भारी तनाव में जीवन जीने के लिये मजबूर हो रहा है ! कुण्ठा, हताशा, फ्रस्टेशन, टेंशन और डिप्रेशन एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है, जो किसी व्यक्ति की इच्छाओं की पूर्ति न होने पर प्रतिरोध स्वरूप प्रकट होती है !

डाक्टरों एवं वर्तमान मेडिकल साइंस के रिसर्च को मानें तो, प्रति दस व्यक्ति में से दो व्यक्ति मानसिक अवसाद डिप्रेशन से घिरे हैं, और सीधी बात डिप्रेशन के शिकार हैं, ऐसा क्यूं हो रहा है ! कारण स्पष्ट है कि मानसिक संतुष्टि का न होना ! अब यह मानसिक संतुष्टि कैसे हो सकती है? परंतु मानसिक असंतुष्टि किसी भी प्रकार से हो सकती है ! किसी को अपने काम से संतोष नहीं है, तो किसी को पारिवारिक क्लेश है, किसी को पैसे की कमी खलती है, तो कोई अपने शरीर से दुःखी है, और कोई सिर्फ इसलिये दुःखी है कि उसके रिश्तेदार या पड़ोसी क्यों सुखी हैं !

कुल मिलाकर सभी के दुःखों का अपना-अपना कोई न कोई कारण है ! अगर हम किसी के दुःख या डिप्रेशन का कारण जानें तो, हमें यह ज्ञात होगा कि, जिसे वह अपना दुःख समझ रहा है, वह दरअसल उसका दुःख है ही नहीं, मात्र उसके मन का भ्रम अथवा जीवन की वह कमजोरी है जिसे वह सही तरीके से अभिव्यक्त नहीं कर पाता और धीरे-धीरे मानसिक अवसाद डिप्रेशन का शिकार हो जाता है !

देखने मे आता है कि उच्च प्रतिष्ठित परिवारों के सदस्य भी, जिनके जीवन में कहीं किसी प्रकार की भौतित सुखों की कमी नहीं होती है, और वह भी उच्च पदासीन होते हैं, बावजूद इसके वह आत्महत्या जैसा जघन्य कार्य कर लेते हैं, अथवा किसी की हत्या जैसा घृणित कार्य भी कर देते हैं, कारण सिर्फ मानसिक अवसाद, मानसिक उत्तेजना !

आज डिप्रेशन इतना आम हो चुका है कि अधिकांश लोग इसे बीमारी की तरह नहीं लेते और नजर-अंदाज कर देते हैं ! यह हो क्यों रहा है?- यदि विचार किया जाये तो, किसी वस्तु या किसी कार्य की सफलता, अथवा मन की इच्छा के पूर्ण होने की जब प्रबल आशा हो, और वह आशा टूट जाये, तब एक बार निराशा का दौर आ प्रकट होता है, बस यही वह समय है जब हिम्मत दिलाने वालों की आवश्यकता होती है ! हिम्मत या हौसला दिलाने वाला कोई अपना हो तो, बहुत जल्दी व्यक्ति निराशा के दौर से निकल जाता है !

किसी-किसी मामले में ऐसे समय में निराशा होती ही नहीं तब ? तब एक विचित्र भाव पैदा होता है, और यह भाव होता है ‘ईर्ष्या’ भाव! ईर्ष्या भी जब नियंत्रित न की जाये, तब चिढचिढापन, फ्रस्टेशन, टेंशन और फिर डिप्रेशन ! मेरा कार्य क्यों नहीं हुआ? दूसरे का वही कार्य हो गया ! “मेरी तो किस्मत ही खराब है” ऐसे समय में सकारात्मक वातावरण बनाने की आवश्यकता होती है, अन्यथा वह व्यक्ति मानसिक कुण्ठा का शिकार होने लगता है,

कुण्ठा, फ्रस्टेशन, टेंशन और फिर डिप्रेशन (अवसाद) ! यह सब मानसिक अवसाद में आ जाता है ! आजकल ऐसा होना आम बात है, लेकिन कई बार डिप्रेशन इतना अधिक बड़ जाता है कि मनुष्य कुछ समय के लिए अपनी सुध-बुध खो बैठता है ! कुछ लोग डिप्रेशन के कारण पागलपन का शिकार भी हो जाते हैं !

आज अवसाद (डिप्रेशन) शब्द से लगभग सभी लोग परिचित हैं, और साथ ही एक बड़ी संख्या में लोग इसका शिकार भी हो रहे हैं ! अवसाद, हताशा, उदासी गहरी निराशा और इनसे सम्बंधित रोग चिकित्सा जगत में मेजर डिप्रेशन (Major depression), डिस्थाइमिया (Dysthymia), बायपोलर डिसऑर्डर या मेनिक डिप्रेशन (Bipolar disorder or manic depression), पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum depression), सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर (Seasonal affective disorder), आदि नामों से जाने जाते हैं !

वैसे हर किसी के जीवन में कभी-न-कभी ऐसे पल आते ही हैं, जब उसका मन बहुत उदास होता है ! इसलिए शायद हर एक को लगता है कि हम गहरी निराशा के विषय में सब कुछ जानते हैं ! परन्तु ऐसा नहीं है ! कुछ के लिए तो यह निराशावादी स्थिति एक लंबे समय तक बनी रहती है ! जिंदगी में अचानक, बिना किसी विशेष कारण के निराशा के काले बादल छा जाते हैं और लाख प्रयासों के बाद भी वे बादल छंटने का नाम नहीं लेते ! अंततः हिम्मत जवाब दे जाती है और बिलकुल समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा है !

इन परिस्थितियों में जीवन बोझ सा लगने लगता है, और निराशा की भावना से पूरा शरीर दर्द से कराह उठता है ! कुछ का तो बाद में बिस्तर से उठ पाना भी लगभग असंभव सा हो जाता है ! इसलिए प्रारंभिक अवस्था में ही ध्यान रखा जाना चाहिए कि, व्यक्ति हद से अधिक उदासी में न डूब जाये ! समय रहते लक्षणों को पहचान कर किसी विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए व तदनुसार उपचार करवाना चाहिए !

दिनचर्या में बदलाव लाने, खानपान में फेरबदल करने तथा व्यायाम, ध्यान (Meditation) आदि से अच्छे परिणाम मिलते हैं ! ध्यान रहे, डॉक्टर की सलाह के बिना दवाई लेने के भी बुरे परिणाम हो सकते हैं, तथा बीमारी जटिल हो सकती है ! जरूरी नहीं की दवाई की आवश्यकता ही हो, अधिकांश मामलों में काऊँसलिंग की ही आवश्यकता होती है ! सकारात्मक भाव पैदा करना ही सही उपचार है !

डिप्रेशन मानसिक लक्षणों के अतिरिक्त शारीरिक लक्षण भी प्रकट करता है, जिनमे दिल की धडकन में तेजी, कमजोरी, आलस्य तथा सिर दर्द प्रमुख हैं ! इसके अतिरिक्त इस रोग से ग्रसित व्यक्ति का मन किसी काम में नहीं लगता, स्वभाव में चिडचिडापन आने लगता है, उदासी रहने लगती है, और वह शारीरिक स्तर पर भी थका-थका सा अनुभव करता है !

वैसे तो यह बीमारी किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति को हो सकती है, किन्तु देखने में आता है कि इस परिस्थितियों से पीडित किशोरावस्था के जातक तथा स्त्रियां अधिक होती हैं ! कारण, कि इस रोग का केद्रबिन्दु मानव मन है, ओर मनमुखी व्यक्ति इसकी चपेट में जल्दी आ जाता है !

देखने में आता है कि किशोरावस्था एवं युवावस्था के जातक इस की चपेट में अधिक आते हैं, क्यों कि उनका मन अपने आगामी भविष्य के अकल्पनीय स्वप्न संजोने में तेजी से लगा रहता है ! स्वप्नों की असीमित उड़ान, प्रेम में असफलता, प्यार में, व्यापार में अथवा नौकरी में धोखा होने के पश्चात जब किसी दूसरी वास्तविकता से उनका सामना होता है तो, मन अवसादग्रस्त होने लगता है !

क्या है इसका ईलाज और बचाव?- यद्यपि अध्यात्म शास्त्र कोई शारीरिक चिकित्सा शास्त्र नहीं है, तदापि मन और मस्तिष्क की बेहतर खुराक अवश्य है !

अध्यात्म शास्त्रीयों का मानना है कि, जिस प्रकार पेट की खुराक अन्न है, इसी प्रकार मन-बुद्धि की बेहतर खुराक आध्यात्मिक दर्शन शास्त्र है ! स्वंय का ज्ञान (आत्मज्ञान) और ईश्वर को जानना ही बेहतर मानसिक उपचार है ! इससे मनोदैहिक एवं मानसिक रोग या विकार शांत हो जाते हैं ! मेरा तात्पर्य यहाँ ऐसे ज्ञानरूपी उपचार से है जो वेदान्त व भगवत्गीता आदि में उल्लेखित तथा स्वामी विवेकानंद, श्रीराम शर्मा आचार्य सरीखे वर्तमानकाल के विद्वानों द्वारा बताई गयी आत्मा, परमात्मा, कर्म, कर्मफल, पुनर्जन्म, संचित, प्रारब्ध, मोक्ष जैसे शब्दों की व्याख्या पर पूर्ण विश्वास करने से है ! एवं पूर्ण आस्था के साथ जीवन के प्रत्येक प्रसंग को इन सिद्धांतों के साथ जोड़कर देखने से है !

अब अगर हम मानसिक अवसाद डिप्रेशन का ज्योतिषीय कारण देखें तो, स्पष्ट है कि चन्द्रमा को ज्योतिष में मन का कारक माना गया है, और चन्द्रमा सभी ग्रहों में शीघ्र चलायमान ग्रह है, क्योंकि यह हमारी पृथ्वी के सबसे नजदीकी ग्रह है, इसलिए चन्दमा का हमारे मन-मस्तिष्क पर सबसे पहले और सब से अधिक प्रभाव पड़ता है ! ज्योर्तिविज्ञान के अनुसार चन्द्रमा मन का कारक होने के साथ-साथ बड़ा सौम्य (नाजुक) ग्रह है, जिस किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में चन्द्रमा पाप ग्रह से पीड़ित होगा, वह किसी-न-किसी प्रकार से मानसिक अवसाद डिप्रेशन का शिकार होगा ! पाप ग्रह ससे पीड़ित होने का तात्पर्य है- किसी कुण्डली में चन्द्रमा राहु, केतु या शनि के साथ बैठा है, या इनमें से किसी की चन्द्रमा पर पूर्ण दृष्टि है तो, ऐसा व्यक्तित्व अपने जीवनकाल में निश्चित रूप से मानसिक अवसाद का शिकार होता है !

ऐसे में यदि दो पाप ग्रहों- राहु व शनि अथवा केतु-शनि के साथ चन्द्रमा स्थित हो या दो पाप ग्रहों की चन्द्रमा पर पूर्ण दृष्टि हो, अथवा एक पापग्रह के साथ बैठा हो और दूसरे की पूर्ण दृष्टि हो, एेसी स्थिति में भी समस्या विकट हो जाती है ! ज्योर्तिविज्ञान के अनुसार चन्द्रमा बुध के लिये शत्रु ग्रह है, मेरे अनुभव मे आया है कि जिस किसी जातक की जन्मकुंडली में चन्द्रमा बुध के साथ अथवा बुध से ग्रसित होगा और ऐसी कुण्डली में चन्द्रमा पूर्णतः क्षीण होगा, या चन्द्रमा के आगे-पीछे कोई सौम्य ग्रह नहीं होता, या आगे-पीछे एक अथवा दो पापग्रह हों, कहने का तात्पर्य यह है कि दो पाप ग्रहों के मध्य चन्द्रमा अकेला हो तो, एेसा व्यक्ति मानसिक अवसाद का शिकार हो जाता है !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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