नग्नता जीवन का आरम्भ बिन्दु है जो नग्न नहीं है उसका जीवन शुरू ही नहीं हुआ है शायद इसीलये हम नग्न ही पैदा होते हैं या यूँ कहें कि प्रकृति में सभी नग्न ही पैदा होते हैं ! और जब माया से परे आत्म बोध होता है तो हम पुनः नग्न ही हो जाते हैं ! जैसे महावीर जैन हो गये ! दीक्षित नागा, शिव भक्त “अक्का महादेवी” जिन्होंने महिला होकर पूरे दरबार के सामने 18 वर्ष की अवस्था में अपने सारे कपड़े त्याग दिये और वहां से चली गईं ! दक्षिण भारत के सन्त सदाशिव ब्रह्मेंद्र जो परम हंस की उस अवस्था को प्राप्त थे ! जहाँ उन्हें वस्त्र पहनने की सुध ही नहीं रहती थी ! सदाशिव ब्रह्मेंद्र के लिए पुरुष या स्त्री का कोई भेद नहीं था !
किन्तु श्रीविष्णुपुराण तृतीय अंश अध्याय 13 के अनुसार
श्रीमैत्रेयजी बोले – भगवन ! नपुंसक, अपविद्ध और रजस्वला आदि को तो मैं अच्छी तरह जानता हूँ ! किन्तु यह नहीं जानता कि ‘नग्न’ किसको कहते हैं ! अत: इस समय मैं नग्न के विषय में जानना चाहता हूँ || 3 || नग्न कौन है और किस प्रकार के आचरणवाला पुरुष नग्न-संज्ञा प्राप्त करता हैं ? हे धर्मात्माओं में श्रेष्ठ ! मैं आपके द्वारा नग्न के स्वरूप का यथावत वर्णन सुनना चाहता हूँ; क्योंकि आपको कोई भी बात अविदित नहीं है || 4 ||
श्रीपराशरजी बोले – हे द्विज ! ऋक, साम और यजु: यह वेदत्रयी वर्णों का आवरणस्वरूप है | जो पुरुष मोह से इसका त्याग कर देता है वह पापी ‘नग्न’ कहलाता हैं || 5 || हे ब्रह्मन ! समस्त वर्णों का संवरण (ढँकने वाला वस्त्र ) वेदत्रयी ही है; इसलिये उसका त्याग कर देने पर पुरुष ‘नग्न’ हो जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं || 6 || किन्तु इस कथन को विकृत रूप में नग्नता और वस्त्रों की अवधारणा को वैष्णव ग्रन्थों में अलग ढंग से की गई है !
जबकि शैव ग्रन्थों के अनुसार नग्नता अश्लीलता नहीं अपितु प्राकृतिक गुण है ! नग्नता का अर्थ है स्वयं को प्रकट कर देना ! यह प्रत्येक जन्म की आरम्भिक अवस्था है ! प्रकृति जब किसी को प्रकट करती है तो नग्नता अनिवार्य है ! अर्थात प्रकृति द्वारा किसी को प्रदर्शित करने की पहली शर्त ही नग्नता है ! फूल खिले प्रकृति ने प्रकट कर दिया, प्रदर्शित कर दिया ! वह नग्न ही है ! बहार आये, बादल बरसे, अंकुर फूटे, फल निकले, कोई भी प्राकृतिक घटना हो, अर्थात प्रकृति सब कुछ नग्न ही प्रकट करती है या कहें कि प्रदर्शित कर देती है !
प्रकृति का जितना सौन्दर्य है वह सब नग्न है या कहें कि नग्नता ही प्रकृति का गुण है ! फल, फूल, वृक्ष, पर्वत, झरने, नदियाँ, सागर, थलचर, जलचर, नभचर, उभयचर सब के सब नग्न हैं ! यहाँ तक कि पूरा का पूरा ब्रह्माण्ड ही नग्न है, सिर्फ कुछ ही मनुष्य हैं जो आंशिक रूप से अपने को ढकते हैं !
संसार के सभी जीव-जन्तु बस कुछ मनुष्य को छोडकर उम्र भर नग्न रहते हैं ! उनमें पूरी उम्र कामवासना का सन्तुलन बना रहता है ! नग्न रहने से शरीर को कृतिमता से परे वाहय वातावरण के अनुरूप रहने की शक्ति मिलती है ! सूरज की रोशनी से अनेक कीटाणुओ का नाश हो जाता है व विटामिन डी प्राप्त होती है ! जिससे जीवनी व रोग प्रतिरोधक ऊर्जा मिलती है !
हिमालय में रहने वाले “संत” तथा सनातन धर्म के रक्षार्थ आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा बनाए गए अखाड़ों में रहने वाले “नागा” ! जैन धर्म का अनुकरण करने वाले “जैन संत” आदि प्राय: नग्न ही रहते हैं ! ध्यान साधना करने वाले सभी साधु, संत, मनीषी, चिंतक आदि कम से कम वस्त्रों का ही प्रयोग करते हैं ! वस्त्रों को लेकर मनुष्य ने संसार की प्रत्येक व्यवस्था के स्वरूप को ही बदल डाला है ! जिससे लाभ के साथ पर हानि उठानी पड़ रही है !
अब प्रश्न यह है कि प्राकृतिक अवस्था की नग्नता को छुपाने का विचार मनुष्य में आया कहां से ! इसका स्पष्ट उत्तर है कि जैसे जैसे पृथ्वी पर वैष्णव संस्कृति का प्रभाव बढ़ा वैसे वैसे मनुष्य ने अपने शरीर को ढकने के लिए वस्तुओं का प्रयोग शुरू कर दिया ! वैष्णव संस्कृति क्योंकि ठन्डे क्षेत्र अर्थात बर्फीले क्षेत्र से आई थी क्योंकि वैष्णव संस्कृत के पोषक पृथ्वी के ठंडे बर्फीले क्षेत्रों में रहते थे ! अतः उन्हें अपने शरीर को सुरक्षित रखने के लिए तरह तरह के वस्त्रों की आवश्यकता होती थी और यही वह वजह है कि वैष्णव उपासना पद्धति में अग्नि को विशेष स्थान दिया गया है ! इसीलिए वैष्णव पूजन पद्धति में जितने भी कर्मकांड हैं उन सभी में अग्नि को साक्षी मानकर पूजनीय संकल्प का विधान प्रमुखता से पारित किया जाता है !
कालांतर में वैष्णव संस्कृति ने जब विश्व की अन्य संस्कृत रक्ष, यक्ष, देव, दानव, किन्नर, असुर आदि संस्कृतियों को नष्ट कर दिया और उन पर शासन कर लिया तो उन्हें भी औरों को अपने जैसा बनाने के लिये अपने जैसे वस्त्र पहना दिये ! जैसे आजकल जिन जगहों पर इस्लाम का प्रभाव बढ़ गया है, वहां के स्त्री पुरुष क्षेत्रीय परंपरागत वस्त्रों के स्थान पर इस्लामिक वस्त्र कुर्ता-पैजामा, बुर्का आदि पहनने लगते हैं !
इसी तरह ईसाइयत के प्रभाव में अफ्रीका आदि पश्चिम में रहने वाले वहां के मूल निवासी जो कभी वस्त्र नहीं पहनते थे या बहुत ही कम मात्रा में वस्त्र पहनते थे ! वह आज अपने को आधुनिक दिखाने के लिए जींस और टीशर्ट आदि पहनना प्रारंभ कर दिए हैं ! जो आज से मात्र 200 साल पहले पूर्ण प्राकृतिक अवस्था में जंगलों में रहा करते थे और पूरी तरह से स्वस्थ थे ! वह आज प्रतिस्पर्धा में बिना आवश्यकता के वस्त्र पहन रहे हैं ! जैसे ठन्डे देश की विधि व्यवस्था अपनाने के बाद बुध्दिजीवी अधिवक्ता समाज भयंकर गर्मी में भी काला कोट पहने रहते हैं !
इससे स्पष्ट होता है कि वस्त्र जो ठंडे देश के मनुष्यों की आवश्यकता थी ! वह वैष्णव संस्कृति के पोषक जैसे जैसे पूरी धरती पर अपना प्रभाव बढ़ाते गए वैसे वैसे मनुष्य में वस्त्र पहनने की अवधारणा बनाते चले गये ! बाद में यही वस्त्र पहनने की अवधारणा मनुष्य के सभ्यता और संस्कृति का अंग बन गया और अन्य जीव जंतुओं की तरह प्राकृतिक अवस्था में रहने वाला मनुष्य वस्त्र पहनने लगा !
इस तरह वैष्णव संस्कृति का प्रभाव बढ़ने के साथ-साथ नग्नता एक सामाजिक अपराध हो गया क्योंकि एक लंबे समय तक वैष्णव संस्कृति के शासकों ने जब पूरी दुनिया पर अपना शासन किया ! तब सैकड़ों वर्ष तक अपने अधिकार क्षेत्र के लोगों को बल पूर्वक वस्त्र पहनने के लिए मजबूर किया गया ! क्योंकि वस्त्र वैष्णव के व्यवसाय से जुड़ा हुआ हिस्सा था ! इसलिए वैष्णव ने अपने व्यवसाय की परिपक्वता के लिए भी मनुष्य को वस्त्र पहनने पर जोर दिया और जिन व्यक्तियों ने वैष्णव सोच के अनुरूप अपने को नहीं बदला उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया और कालांतर में उन्हें बाध्य कर दिया गया कि वे वैष्णव संस्कृति के अनुरूप वस्त्र पहनना आरंभ कर दें !
जबकि सच यह है कि नग्न होकर आप अपने डर का सामना करते हैं और अपने आप को आजाद कर पाने की प्रेरणा प्राप्त कर पाते हैं ! जहां एक ओर हम कपड़ों पर तमाम पैसा खर्चतें हैं, जीवन के कुछ बेहद खास और खुशी वाले पल जिन्हें वस्त्रों के बिना ही गुज़रते हैं ! उस वस्त्र विहीन अवस्था में हम खुद को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से आन्नदित करते हैं ! नग्नता अवसाद, आत्म सम्मान में कमी तथा कुछ अन्य मानसिक समस्याओं के किसी चिकित्सकीय प्रयोग से कम नहीं ! नग्न होकर लेटना रक्त प्रवाह को सुधारता है ! आपके तंत्रिका तंत्र को विषमुक्त बनाता है !
नग्नता का एक अर्थ निष्परिग्रह भी है ! जो अवस्था महावीर की तरह वर्षों की साधना, संयम और तप से प्राप्त होती है ! जबकि सविकार नग्न होना कोई महत्वपूर्ण नहीं है ! जैन धर्म व साधना में सविकार नग्नता का कोई मूल्य नहीं है ! जैन साधु मात्र तन से नग्न नहीं होते, उनकी नग्नता मन की स्वाभाविक अवस्था का परिणाम है ! एक बहुत बड़ी त्याग, तपस्या व संयम का परिणाम होती है !
आप देखिये जैनियों में जितने भी दिगम्बर साधु हैं वे सभी पढ़े लिखे और लखपति, करोड़पति सम्राट घराने से संस्कारित युवक होते हैं ! जैन धर्म में अंगहीन, गंवार, अनपढ़, दीन—हीन, कुसंस्कारित, नीच व अकुलीन लोगों को दिगम्बर मुनि दीक्षा नहीं दी जाती है ! यही परम्परा शैव जीवन शैली में भी थी जिसका पालन आज भी हिन्दू अखाड़े करते हैं !