महर्षि वाल्मीकि की रामायण के अनुसार राजा दशरथ अयोध्या के रघुवंशी कुल के सूर्यवंशी राजा थे ! वह इक्ष्वाकु कुल के थे तथा भगवान श्रीराम के पिता थे ! दशरथ के चरित्र में आदर्श महाराजा, पुत्रों को प्रेम करने वाले पिता और अपने वचनों के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति दर्शाया गया है !
उनकी तीन पत्नियाँ थीं – कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी ! अंगदेश के राजा रोमपाद या चित्ररथ की दत्तक पुत्री शान्ता महर्षि ऋष्यशृंग की पत्नी थीं ! एक प्रसंग के अनुसार शान्ता दशरथ की पुत्री थीं तथा रोमपाद को गोद दी गयीं थीं !
तीन विवाह एवं अधिक आयु हो जाने के बाद भी राजा दशरथ को पुत्र नहीं होने पर उन्हें कुल गुरु ब्रह्मर्षि वशिष्ठ द्वारा श्रृंगि ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने का सलाह दिया गया ! जिसके बाद राजा दशरथ ने इनसे पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया !
शास्त्रों के अनुसार यज्ञ के दौरान यज्ञ वेदि से एक आलौकिक यज्ञ पुरुष प्रजापत्य उत्पन्न हुआ तथा दशरथ को स्वर्णपात्र में नैवेद्य का प्रसाद प्रदान करके यह कहा कि अपनी पत्नियों को यह प्रसाद खिला कर वह पुत्र प्राप्ति कर सकते हैं !
दशरथ इस बात से अति प्रसन्न हुये और उन्होंने अपनी पट्टरानी कौशल्या को उस प्रसाद का आधा भाग खिला दिया ! बचे हुये भाग का आधा भाग (एक चौथाई) दशरथ ने अपनी दूसरी रानी सुमित्रा को दिया ! उसके बचे हुये भाग का आधा हिस्सा (एक बटा आठवाँ) उन्होंने कैकेयी को दिया ! कुछ सोचकर उन्होंने बचा हुआ आठवाँ भाग भी सुमित्रा को दे दिया !
सुमित्रा ने पहला भाग भी यह जानकर नहीं खाया था कि जब तक राजा दशरथ कैकेयी को उसका हिस्सा नहीं दे देते तब तक वह अपना हिस्सा नहीं खायेगी ! अब कैकेयी ने अपना हिस्सा पहले खा लिया और तत्पश्चात् सुमित्रा ने अपना हिस्सा खाया ! इसी कारण राम का जन्म कौशल्या से, भरत का जन्म कैकेयी से तथा लक्ष्मण व शत्रुघ्न का जन्म सुमित्रा से हुआ !
जिसका वर्णन श्री राम चरित मानस में इस प्रकार है कि
चौपाई :
* एक बार भूपति मन माहीं ! भै गलानि मोरें सुत नाहीं॥
गुर गृह गयउ तुरत महिपाला ! चरन लागि करि बिनय बिसाला॥1॥
भावार्थ:-एक बार राजा के मन में बड़ी ग्लानि हुई कि मेरे पुत्र नहीं है ! राजा तुरंत ही गुरु के घर गए और चरणों में प्रणाम कर बहुत विनय की !
* निज दुख सुख सब गुरहि सुनायउ ! कहि बसिष्ठ बहुबिधि समुझायउ॥
धरहु धीर होइहहिं सुत चारी ! त्रिभुवन बिदित भगत भय हारी॥2॥
भावार्थ:-राजा ने अपना सारा सुख-दुःख गुरु को सुनाया ! गुरु वशिष्ठजी ने उन्हें बहुत प्रकार से समझाया (और कहा-) धीरज धरो, तुम्हारे चार पुत्र होंगे, जो तीनों लोकों में प्रसिद्ध और भक्तों के भय को हरने वाले होंगे !
* सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा ! पुत्रकाम सुभ जग्य करावा॥
भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें ! प्रगटे अगिनि चरू कर लीन्हें॥3॥
भावार्थ:-वशिष्ठजी ने श्रृंगी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया ! मुनि के भक्ति सहित आहुतियाँ देने पर अग्निदेव हाथ में चरु (हविष्यान्न खीर) लिए प्रकट हुए !
*जो बसिष्ठ कछु हृदयँ बिचारा ! सकल काजु भा सिद्ध तुम्हारा॥
यह हबि बाँटि देहु नृप जाई ! जथा जोग जेहि भाग बनाई॥4॥
भावार्थ:-(और दशरथ से बोले-) वशिष्ठ ने हृदय में जो कुछ विचारा था, तुम्हारा वह सब काम सिद्ध हो गया ! हे राजन्! (अब) तुम जाकर इस हविष्यान्न (पायस) को, जिसको जैसा उचित हो, वैसा भाग बनाकर बाँट दो !
इस प्रकार भगवान श्रीराम का जन्म राजा दशरथ के द्वारा नहीं हुआ था बल्कि वह पुत्रेष्ठि यज्ञ में आलौकिक यज्ञ पुरुष प्रजापत्य से प्राप्त पायस अर्थात दिव्य खीर को खाने से भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की मां गर्भवती हुई थी और जिससे उनको निश्चित अवधि के बाद संतान प्राप्त हुई ! जिस संतान का पालन पोषण राजा दशरथ ने बहुत ही प्यार के साथ किया था !
इस तरह यह कहा जा सकता है कि राजा दशरथ भगवान राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के पिता नहीं बल्कि उनके पालनहार थे ! क्योंकि बायोलॉजिकल हिसाब से राजा दशरथ को पुत्र रूप में कोई संतान प्राप्त नहीं हुई थी ! उनके एकमात्र कन्या थी जिसका नाम शांता था ! जिसको अंगदेश के राजा रोमपाद चित्ररथ को दत्तक पुत्री कें रूप में दे दिया था ! जिसका विवाह महर्षि ऋष्यशृंग से हुआ था !!