“पुलिस प्रशासन” सामाजिक विषयों के प्रति सकारात्मक सोच क्यों नहीं रख पाते हैं ? Yogesh Mishra

“गौ भक्त संत गोपाल दास” पर हुये पुलिसिया अत्याचार को समर्पित लेख

प्रायः देखा गया है कि “पुलिस प्रशासन” सामाजिक समस्याओं के निवारण हेतु सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं अपनाते हं ! इसके बहुत से कारण हैं ! इसमें सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण कारण यह है कि वर्तमान समय में हमारे देश में जो “पुलिस प्रशासन की कार्यशैली” है ! “वह भारत में अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के शोषण के लिए थोपी गई थी !” अतः इस कार्य शैली में कहीं भी किसी भी पुलिस प्रशासन के अधिकारी या कर्मचारी के कर्तव्यों की राष्ट्र या समाज के प्रति किसी तरह की कोई भी “जबाबदेही” की व्यवस्था नहीं की गई थी ! क्योंकि अंग्रेजों का मूल उद्देश्य देश की सेवा करना नहीं था बल्कि हिंदुस्तान का शोषण करना था ! जिसके लिए सत्ता में बैठे हुए तत्कालीन अंग्रेज एक ऐसी “प्रशासनिक व्यवस्था” चाहते थे !

जहाँ पर भारत की लूट के लिये ऐसे पुलिस प्रशासन के अधिकारी व कर्मचारी हों जो मात्र उनके हुक्म का पालन करें ! न की भारतवर्ष के नागरिकों के प्रति संवेदनशील व कर्तव्य पालक हो ! क्योंकि यदि पुलिस या प्रशासन के अधिकारी व कर्मचारी भारत के नागरिक के प्रति संवेदनशील और कर्तव्य पालक होंगे ! तो अंग्रेज भारतीयों का शोषण नहीं कर सकेंगे !

देश की तथाकथित आजादी के बाद भी आज तक सत्ता में बैठे हुए राजनीतिज्ञों ने भी इस व्यवस्था को बदलने हेतु कोई भी कानूनी दिशा निर्देश जारी नहीं किये हैं ! जिससे पुलिस प्रशासन के अधिकारियों व कर्मचारियों में सामाजिक विषयों के प्रति संवेदनशीलता और राष्ट्र के प्रति कर्तव्यनिष्ठा पैदा हो सके ! पुलिस प्रशासन के अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए जो अंग्रेजों के समय के दिशा-निर्देश हैं वह मात्र इसलिए है कि जो व्यक्ति जिस पद पर बैठा है वह अपने वरिष्ठ अधिकारी के आज्ञाओं का पालन अपनी पूरी शिद्दत से करे ! न की किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दिए गये गलत निर्देशों का आत्म विवेक प्रयोग करके राष्ट्रहित में विरोध करे !

इसीलिए इन पुलिस प्रशासन के अधिकारियों और कर्मचारियों के वरिष्ठ अधिकारी को यह अधिकार दिया गया है कि वह सालाना अपने द्वारा निर्गत किये गये आदेशों के प्रति आधीनस्त पुलिस प्रशासन के अधिकारियों और कर्मचारियों के कर्तव्यनिष्ठा और आदेश पालन के अनुरूप इन आधीनस्तों के चरित्र का विश्लेषण करें और उनकी नौकरी पंजिका में उसका लेखन करें ! जिसका स्पष्ट मानक यह है कि इन अधिकारीयों या कर्मचारीयो ने अपने वरिष्ठ अधिकारी के आदेश का पालन कितनी शिद्दत से किया है और यदि उसके आदेश पालन में कोई कमी रह गई है तो उस वरिष्ठ अधिकारी के पास यह अधिकार भी है कि वह उस आधीनस्त पुलिस प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारी के चरित्र पंजिका में विश्लेषण का लेखन करते समय उस घटना का हवाला देते हुए उसे दंडित करने का प्रस्ताव भी प्रस्तुत कर सकता है !

दूसरा कारण पुलिस प्रशासन का प्रत्येक अधिकारी या कर्मचारी अपने परिवार को पालने के लिए एक मात्र नौकरी की आय पर आश्रित है क्योंकि कि वह नौकरी करने वाला अधिकारी या कर्मचारी अपने नौकरी काल के दौरान अन्य कोई आय का स्रोत विकसित नहीं कर सकता है ! ऐसी नौकरी करने की शर्त होती है ! इसलिए परिवार पालन के प्राथमिक दबाव के कारण वह अधिकारी या कर्मचारी सही गलत के निर्णय के लिए विवेक का प्रयोग ही बंद कर देता है और कुछ समय बाद उसे विवेक के प्रयोग की आदत ही समाप्त हो जाती है ! यही मुख्य कारण है कि सामाजिक विषयों पर पुलिस प्रशासन के अधिकारी या कर्मचारी राष्ट्र के प्रति संवेदनहीन, विवेकहीन और कर्तव्य विमुख हो जाते हैं !

तीसरा इसका सबसे बड़ा कारण है कि देश की तथाकथित आजादी के बाद भी अंग्रेजों ने जो भारत के शोषण के लिए भ्रष्ट कानून व्यवस्था लागू की थी ! वह आज भी उन्हीं नियमों और मानकों के अनुरूप चल रही है बल्कि यह कहना उचित होगा कि सत्ता की निरंकुशता के कारण अब भ्रष्टाचार पूर्व से अधिक बढ़ गया है क्योंकि अधिकारी व कर्मचारी यह जानते हैं कि उनके भ्रष्ट आचरण के विरुद्ध जनता की सुनवाई ऊपर कहीं नहीं होगी और जनता भी यह मान चुकी है कि इस भ्रष्ट व्यवस्था में घूस देकर ही अपना काम करा लेना ज्यादा सुविधाजनक है अपेक्षाकृत इसके कि घूंस के विरोध में संघर्ष किया जाए क्योंकि अनुभव में यह आया है कि इस तरह के संघर्षों का कोई परिणाम नहीं निकलता है !

चौथी सबसे बड़ी वजह है कि पुलिस प्रशासन के अधिकारी या कर्मचारी के रूप में कुछ लोग नौकरी करने वाले प्रायः कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से भी आते हैं क्योंकि उनके पास आर्थिक संसाधनों का आभाव होता है ! अतः वह पूरी ताकत से सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त परिश्रम करके प्रतियोगिता आदि देकर नियुक्त हो जाते हैं ! लेकिन कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि की वजह से आत्मविश्वास की कमी के कारण उनमें संघर्ष करने वाले संस्कारों का भी अभाव होता है और ऐसे लोग आर्थिक सुरक्षा के लिये सदैव भयाक्रांत रहते हैं !

इस तरह आर्थिक सुरक्षा के लिये भयाक्रांत व्यक्ति जब नौकरी में विधि द्वारा शक्ति संपन्न हो जाते हैं ! तो उनका एकमात्र उद्देश्य जल्दी से जल्दी संपन्न बनना होता है ! साथ ही ऐसे लोग यह भी देखते हैं कि उनके साथ के जो वरिष्ठ अधिकारी या कर्मचारी हैं ! वह भी वेतन के अतिरिक्त भ्रष्टाचार के माध्यम से बहुत कम समय में अति साधन-संपन्न हो गए हैं ! अतः ऐसे पुराने भ्रष्ट लोग इस तरह के नये लोगों के लिए प्रेरणा का कार्य करते हैं ! क्योंकि ऐसे भ्रष्ट लोगों के विरुद्ध उचित समय पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है !

अतः स्पष्ट है देश की तथाकथित आजादी के बाद अंग्रेजों द्वारा स्थापित की गई भ्रष्टाचार पूर्ण शासन व्यवस्था में कोई भी मूलभूत राष्ट्रवादी हितों में विधिक परिवर्तन न होने के कारण पुलिस प्रशासन के अधिकारी राजनीतिज्ञों के दबाव में सामाजिक विषयों पर संवेदनाविहीन होकर नौकरी की मजबूरी में अपने सकारात्मक दृष्टिकोण को ही त्याग देता हैं ! इसी का परिणाम है कि पुलिस प्रशासन के अधिकारी या कर्मचारी सामाजिक समस्याओं के विषयों पर सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रखते हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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