सनातन ज्ञान ही भारत को विश्व विजय दिला सकता है ! : Yogesh Mishra

मानव संस्कृत की विकास के साथ-साथ मनुष्य के द्वारा निर्मित हथियारों के स्वरूप में भी परिवर्तन आता रहा है ! आदि काल में मनुष्य शारीरिक शक्तियों को हथियारों के रूप में इस्तेमाल करता था ! कुछ ही काल बाद जब मनुष्य ने यह महसूस किया कि मात्र शरीर की शक्ति से अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है ! तब उसने ईट पत्थर के बने हुये हथियारों को प्रयोग करना शुरू कर दिया ! यह काल काफी लंबे समय तक चलता रहा !

फिर कालांतर में जब उसने पशुओं पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया तब मनुष्य प्रशिक्षित पशुओं की शक्ति को हथियारों के रूप में इस्तेमाल करने लगा ! हाथी, घोड़ा, ऊंट, भेड़िया आदि की सेनायें बनाई जाने लगी ! इसके बाद मनुष्य जब और विकसित हुआ तब उसने धातु की खोज की और धातु के बने हुए हथियार तीर, भाला, कृपाण, तलवार आदि द्वारा युद्ध करना आरंभ कर दिया !

13वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बारूद की खोज हुई तब से बंदूक और तोपों के द्वारा दूर से ही हमले कर के युद्ध किये जाने लगे ! द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बंदूक और तोपों से अधिक ताकतवर हथियारों की कल्पना ने विश्व में परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, जहरीली गैस के हथियार, वायरस हथियार का विकास करने के लिये मनुष्य को बाध्य कर दिया !

किंतु द्वितीय विश्व युद्ध के प्रयोग से जो क्षति हुई उससे जीतने वाले देशों द्वारा यह निर्णय लिया गया कि जो युद्ध हथियारों से किये जाते हैं ! उनसे हारने और जीतने वाले दोनों ही देशों को इतनी अधिक क्षति का सामना करना पड़ता है कि युद्ध के उपरांत पुनर्निर्माण में बहुत सा धन व्यय करना पड़ता है ! जिसके कारण बड़े-बड़े संपन्न देशों की भी अर्थव्यवस्था नष्ट हो जाती है ! ऐसी स्थिति में यह निर्णय लिया गया कि हथियारों के ऐसे स्वरूप को विकसित किया जाये ! जिसमें भौतिक संपत्ति का विनाश न हो और युद्ध की इच्छा रखने वाले देशों की विजय यात्रा चलती रहे !

इसके लिये आधुनिकतम हथियार में धन, रुपये या मुद्रा किसी भी शब्द का प्रयोग किया जा सकता है ! इसको हथियार के रूप में विकसित किया गया ! आज विश्व में धन को नियंत्रित करने के लिये विभिन्न संस्थायें स्थापित की गई हैं ! जिनके द्वारा विकसित देश विकासशील देशों को अपनी नीतियां मनवाने के लिये नियंत्रित करते हैं और जब विकासशील देश उनकी नीतियों को नहीं मानते हैं तो धन के प्रवाह को नियंत्रित करके विकासशील देशों को ब्लैक लिस्ट कर उनसे बलपूर्वक अपनी बात मनवा ली जाती है ! यह धन आज के विश्व को नियंत्रित करने वाला आधुनिकतम हथियार है !

अब मैं अपने मूल विषय पर आता हूँ ! प्रश्न यह है कि भारत जैसा देश जहां की सभ्यता संस्कृति में ही “वसुधैव कुटुंबकम” की छवि दिखाई देती है ! जहां पर पेड़ों और नदियों को भी भगवान कहकर पूजा जाता है ! जहां पर गाय को मां और कुत्ते को भैरव का अवतार बताया जाता है ! ऐसे देश को किसी अन्य शत्रु देश से अपनी सुरक्षा के लिये किस तरह के कवच को प्रयोग करना चाहिये ! जिससे हमारे संस्कार भी जीवित रहें और हम अपने स्वाभिमान के साथ पूरे विश्व में जी सकें ! यह एक बहुत बड़ा विषय है !

इस पर गहन चिंतन और मंथन किया गया और यह निष्कर्ष निकाला गया कि हमारा “सनातन ज्ञान” ही हमारी रक्षा कर सकता है ! इसे विश्व में सर्वश्रेष्ठ आत्मरक्षा हेतु प्रयोग किया जा सकता है और इस सनातन ज्ञान के महत्व को पूरी दुनिया जानती भी है और मानती भी है ! इसी से भयभीत होकर आज के भौतिक वादी लोग पूरे विश्व को भारत के सनातन ज्ञान से विपरीत ले जाने के लिये “सनातन ज्ञान” को “मिथ या अंधविश्वास” आदि कह कर तरह-तरह से दुष्प्रचारित कर रहे हैं !

किंतु “सनातन ज्ञान पीठ” का यह दृढ़ निश्चय मत है कि आने वाले युग में चाहे तृतीय विश्व युद्ध किसी भी तरह के हथियारों से लड़ा जाये फिर भी विश्व का भविष्य यदि कोई बचा सकता है तो सनातन ज्ञान ही बचा सकता है ! इस हेतु सनातन ज्ञान के पुनः स्थापना और प्रचार प्रसार के लिये एक बड़ी कार्य योजना की आवश्यकता है !

क्योंकि गत 800 वर्ष की गुलामी के कारण भारत का सनातन ज्ञान सुषुप्त अवस्था में चला गया है ! जिसका प्रचार प्रसार हो नित्य इसमें नये-नये शोध हों और मनुष्य को इसके प्रति जागरूक कर मनुष्य को लाभान्वित किया जाये इसके लिये एक बड़ी कार्य योजना की आवश्यकत है !

इसके लिये सनातन ज्ञान पीठ ने एक विस्तृत कार्य योजना बनाकर उसे क्रियान्वित करने का निर्णय लिया है ! जिससे अल्पकाल में ही भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में सनातन ज्ञान के महत्व को पुनः प्रचारित व प्रसारित किया जा सकेगा ! जिससे विश्व में मानवता बच सके और मानव को बचाने वाली एकमात्र सनातन जीवन पद्धति से लोगों को लाभान्वित करवाया जा सके !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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