राजनैतिक विज्ञापन लोकतंत्र के दुश्मन हैं ! : Yogesh Mishra

चुनावों के मद्देनजर निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों की उपलब्धियों को उजागर करने वाले विज्ञापन हटाने या फिर उन पर पर्दा डालने का निर्देश दोहराया है ! ऐसा हर बार चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद किया जाता है ! इसके पीछे निर्वाचन आयोग की मंशा राजनेताओं, पार्टियों और सरकारों की उपलब्धियों के जरिए मतदाता को रिझाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना होता है !

मगर सवाल है कि क्या ऐसे विज्ञापनों पर पर्दा डाल देने भर से इस मकसद में कामयाबी मिल जाती है ! राजनीतिक दलों ने इसके दूसरे तरीके निकाल लिए हैं ! रोज टीवी और सोशल मीडिया पर ऐसे विज्ञापनों और उपलब्धियों आदि को लेकर प्रायोजित बहसें चलाने की कोशिश होती है ! और यह छिपी बात नहीं है कि सड़कों के किनारे लगे बड़े-बड़े विज्ञापनों की अपेक्षा इन माध्यमों पर प्रकाशित-प्रसारित होने वाले प्रायोजित कार्यक्रमों और विज्ञापनों का लोगों पर असर अधिक पड़ता है ! हालांकि निर्वाचन आयोग नियमों से बंधा हुआ है और आचार संहिता के मुताबिक वह जिन चीजों पर रोक लगा सकता है, लगाने की कोशिश करता है, पर राजनीतिक दलों पर इसका बहुत असर नहीं दिखाई देता, तो इसके लिए व्यावहारिक रास्ते तलाशने की कोशिश होनी चाहिए !

हर बार निर्वाचन आयोग के समक्ष चुनाव प्रचार के दौरान प्रत्याशी या फिर उसके दल के बड़े नेताओं के प्रतिद्वंद्वी दलों और उनके नेताओं पर व्यक्तिगत टिप्पणी करने की शिकायतें आती हैं ! निर्वाचन आयोग उन व्यक्तियों को नोटिस देता है, मगर उसका कोई नतीजा नहीं निकलता ! चुनाव के बाद मामला बंद हो जाता है ! इसी तरह चुनाव खर्च को लेकर निर्वाचन आयोग हर बार सख्ती बरतता है, मगर कम ही प्रत्याशी और राजनीतिक दल इससे संबंधित नियम-कायदों की परवाह करते हैं ! कई प्रत्याशियों को निर्वाचन आयोग नोटिस भी देता है, पर उसका कोई असर नहीं होता !

अभी तक एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया, जिसमें आचार संहिता के उल्लंघन के चलते किसी राजनेता की उम्मीदवारी निरस्त की गई हो या उसे अपनी सदस्यता छोड़नी पड़ी हो ! ऐसे में महज सड़कों के किनारे या बाजारों में टंगे इश्तिहारों को उतार देने या उन पर पर्दा डाल देने भर से पार्टियों की इस प्रवृत्ति पर कितना अंकुश लगेगा, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है !

तमाम प्रयासों के बावजूद राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की मनमानी न रुकने की वजह से लंबे समय से यह मांग भी उठती रही है कि निर्वाचन आयोग के अधिकार बढ़ाए जाने चाहिए ! उसे दंडात्मक अधिकार दिए जाने चाहिए, नहीं तो आचार संहिता के नियमों के अनुसार रस्मी कवायद का उन पर शायद ही कोई असर पड़ेगा ! पहले भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय मायावती सरकार की तरफ से लगाई गई हाथी की मूर्तियों को ढंक दिया गया था ! तमाम पोस्टरों-होर्डिगों पर पर्दा डाल दिया गया था ! मगर सड़कों से गुजरने वाले ज्यादातर लोगों को पता होता है कि पर्दे के पीछे क्या है ! इस तरह की कवायद से निर्वाचन आयोग का खर्च अवश्य बढ़ जाता है !

अगर सचमुच साफ-सुथरा चुनाव कराना है तो चुनाव सुधार के लिए समग्र प्रयास की जरूरत है ! इसके तहत निर्वाचन आयोग के अधिकार बढ़ाने होंगे और आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़े दंड का प्रावधान करना होगा ! ऐसा न होने की स्थिति में राजनीतिक दल आचार संहिता के उल्लंघन से बचने के लिए चोर रास्ते निकालते रहेंगे ! निर्वाचन आयोग को एक प्रभावी और ताकतवर संस्था बनाने की जरूरत है !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …