भारतीय भाषाओँ को लेकर दोगलापन क्यों ? : Yogesh Mishra

भाषायी विविधता और विचित्रता के बावजूद भारत एक अनुपम देश है ! यहां 22 मान्यता प्राप्त भाषाएं और 1650 से भी अधिक उप-भाषाएं और बोलियों उपयोग में लाई जाती हैं ! सांस्कृतिक रूप से अनेकता में एकता होते हुए भी भाषा के मुद्दे पर पूरे राष्ट्र में किसी एक देशी भाषा के प्रति आम सहमति नहीं है ! हिन्दी को यद्यपि राजभाषा बना दिया गया है, तथापि राज्यों के बीच पारस्परिक पत्र-व्यवहारों में एवं केंद्र से राज्यों के मध्य पत्र-व्यवहार में अंग्रेजी एक महत्वपूर्ण माध्यम भाषा है! यद्यपि राजनेताओं द्वारा अंग्रेजी के विरुद्ध और भारत में उसके स्थायित्व के विरुद्ध काफी आवाजें उठाई जाती हैं, तथापि यह कटु सत्य है कि भारत में राज्यों के बीच विचारों के आदान-प्रदान के लिये अंग्रेजी ही उपयुक्त भाषा बनी हुई है !

हिन्दी भाषी क्षेत्रों में अंग्रेजी का विरोध यह कह कर किया जाता है , कि यह गुलामी का प्रतीक है ! जब राजनेताओं द्वारा हिन्दी के प्रचार-प्रसार की दिशा में कदम उठाए जाते हैं तो दक्षिणी राज्यों द्वारा यह कहकर इसका विरोध किया जाता है कि उन पर यह भाषा थोपी जा रही है ! अंग्रेजी-भाषी भारतीयों को यह कहकर प्रताडित किया जाता है कि वह पश्चिमी सक्रियता के पोषक हैं और अपनी परम्परा तया मूल्यों से कुछ लेना-देना नहीं है !

कुछ भी हो यथार्थ तो यहीँ है कि हिन्दी के बाद अंग्रेजी दूसरी भाषा है जिसका प्रयोग भारत की जनता द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाता है ! कोई भी क्षेत्रीय भाषा ऐसी नहीं है, जिसका प्रयोग देश की जनसंख्या के 10 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या वर्ग द्वारा किया जा रहा हो ! भारत में प्रकाशित हो रहे दैनिक समाचार-पत्रो में अंग्रेजी दूसरे स्थान पर है ! अंग्रेजी भाषी जनसंख्या का अधिकांश प्रतिशत उच्च शिक्षित वर्ग का है ! विकसित हो रही मध्यवर्गीय जनसंख्या का एक उच्च प्रतिशत भी अंग्रेजी की और अभिमुख है ! अंग्रेजी का प्रयोग करना उच्च वर्ग का लक्षण बन गया है !

अंग्रेजी को लेकर हो रहे विरोध का एक प्रमुख मुद्दा है- शिक्षण संस्थाओं, नौकरशाही, न्यायपालिका और संचार माध्यमों में इस भाषा का प्रयोग ! ऐसा माना जा रहा है कि अंग्रेजी का प्रयोग करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग के लोग समाज पर प्रभावी होते जा रहै हैं ! अंग्रेजी बोलने बाले भारतीयों ने जरूर अपने जीवन का ढंग बदल लिया और अपना सामाजिक महत्व भी बना लिया है चाहे वह राजनेता हो, नौकरशाह हो अथवा सांस्कृतिक प्रबुद्ध व्यक्ति हो – सभी चाहते हैं कि उनके पीछे एक स्वचालित तरीके से राष्ट्रीय अनुयायी मिले और वह अपना माध्यम अंग्रेजी को बनाएं ! अंग्रेजी बोलने वाले व्यावसायियों की मांग अधिक है और व्यापार-जगत् में बहुराष्टीय कंपनियों के प्रवहश के बाद तो संपूर्ण विश्व में इनकी मांग बढ़ गई है !

किंतु , अंग्रेजी का विरोध केवल घृणा या द्वेष के कारण नहीं है ! अंग्रेजी बोलने वाले भारतीय निश्चित रूप से यह सिद्ध करना चाहते हैं कि वह ज्यादा आधुनिक हैं, ज्ञानी हैं, शिक्षित हैं और सबसे बढ़कर यह जताना चाहते हैं कि अंग्रेजी बोलने के कारण के ज्यादा सभ्य है! यह निश्चित रूप से ठीक नहीं है कि अंग्रेजी जानने या बोलने वाले संकीर्ण मानसिकता के हो जाएं या साम्प्रदायिक और रूढिवादी हो जाएं ! न्यायपालिका में अंग्रेजी के प्रयोग का विरोध इस आधार पर किया जाता है कि गरीब और पिछडे वर्ग के लिये न्याय पाना मुश्किल है ! यह समस्या निश्चित रूप से गंभीर थी, किंतु सौभाग्यवश जिला न्यायालयों द्वारा धीरे-धीरे क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग को प्रोत्साहित करने से मामलों को सुलझाने और निर्णयों को सुनाने में सुविधा मिली है !

अंग्रेजी के महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता ! विश्व के विभिन्न भागों के बीच संचार में वृद्धि से अंग्रेजी 44 देशों की अधिकारिक भाषा के रूप में विकसित हुई है ! इस प्रकार, विश्व की कुल जनसंख्या के लगभग एक-तिहाई ने अंग्रेजी को अधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया है ! अधिकांश वैज्ञानिक शोध अंग्रेजी में प्रकाशित होते हैं ! यूरोप में आधे से अधिक वाणिज्यिक-व्यावसायिक मामले अंग्रेजी माध्यम से निपटाए जाते हैं ! वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीय एवं आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तनों को जानने के लिये अंग्रेजी अनिवार्य है !

अंग्रेजी भाषा में भारतीय लेखन की आलोचना इस आधार पर की जा रही है कि साहित्य में लेखक की मूल अभिव्यक्ति मातृभाषा में हो सकती है ! विभिन्न संततियां अलग-अलग भाषाओं को अपनाती हैं ! अधिकांश भारतीय सामान्यता दो या तीन भाषाओं का अध्ययन करते हैं ! इनके द्वारा चयनित इन तीन भाषाओं में से एक अंग्रेजी होती है ! इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत एक बहुभाषिक देश है ! भारत का कोई भी राज्य यह दावा नहीं कर सकता कि उसकी संपूर्ण जनसंख्या एक ही भाषा बोलती है ! यह संभव है कि उपनिवहशवादियों द्वारा अंग्रेजी को अपनाए जाने के कारण अंग्रेजी को नहीं अपना रहे भारतीयों द्वारा विदेशों में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग की कोई सुदीर्घ परंपरा नहीं रही है !

किन्तु, इस संदर्भ में यह ध्यातव्य है कि अंग्रेजी के प्रयोग के बाद की छोटी-सी अवधि में ही भारतीयों को विश्व-समुदाय के बीच प्रसार मिला है और ठीक इसी प्रकार भारत के भीतर भी गतिविधियों तेज हुई हैं ! बहुत-से क्षेत्रीय लेखक अपनी मूल मातृ भाषा की जगह किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा को अपनाते हैं, क्योंकि इसके माध्यम से वह अपनी अभिव्यक्ति को ज्यादा-से-ज्यादा लोगों के बीच पहुंचाते हैं ! इस स्थिति में सर्जनात्मकता के लिये भी भाषा के रूप में अंग्रेजी अपनाने योग्य है !

राजनेताओं द्वारा अंग्रेजी का विरोध स्वयं को लोकप्रिय बनाने तया आडंबरपूर्ण बनाने के लिये किया जाता है ! कुछ राजनेताओं द्वारा यह आरोप लगाया जाता है कि अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने वाले लोग भ्रष्ट एवं बेईमान हो जाते हैं ! किंतु, वास्तविकता तो यह है कि ऐसा आरोप लगाने वाले राजनेताओं के स्वयं के बच्चे भी अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में ही शिक्षा प्राप्त करते हैं ! यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकारी संस्थानों में कार्यरत अधिकारी, कर्मचारी और सरकारी विद्यालयों में कार्यरत अध्यापक अथवा शिक्षक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम वाले निजी स्कूलों में पढाने को प्राथमिकता प्रदान करते हैं ! ऐसी स्थिति में राजनेताओं द्वारा हिंदी के समर्थन और अंग्रेजी के विरोध के नाम पर छलावा ही तो किया जा रहा है !

वैज्ञानिक एवं मानव वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह ज्ञात हुआ है कि मानव सुगमतापूर्वक एक से अधिक भाषा का अध्ययन कर सकता है और उसे अच्छी तरह से समझ सकता है ! इसलिये बहुभाषिकता की आलोचना आधारहीन है ! इन परिस्थितियों में सबसे बड़ा प्रश्न तो यह है कि क्या कोई भी भारतीय भाषा अंग्रेजी से मुकाबला करने में सक्षम है? द्धिभाषिकता, यहां तक कि बहुभाषिकता भारतीयों के लिये कोई नई नहीं है !

भारतीय भाषाएं धनी हैं और उनमें सांस्कृतिक दृष्टि से इसकी पर्याप्त क्षमता है कि वह अंग्रेजी के साथ आगे बढ़ सकें ! आवश्यकता है तो इस बात की कि अंग्रेजी बोलने वाले बुद्धिजीवी अपने को अधिक आधुनिक और सभ्य सिद्ध करने की कोशिश न करें और क्षेत्रीय भाषाएं बोलने वाले बुद्धिजीवी अपनी संकुचित मानसिकता से ऊपर उठे और सांस्कृतिक विकास के लिये कदम-से-कदम मिलाकर चलें ! तभी भारतीय भाषाओं की स्वीकृति बढ़ेगी !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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