गणना से परिवर्तन को समझने की उत्पत्ति हुई है ! हम जिस किसी भी वस्तु या पदार्थ की गणना कर सकते हैं वहां पर परिवर्तन किया जाना निश्चित रूप से अवश्य शंभावी है या हो सकता है अर्थात दूसरे शब्दों में कहें कि हम जो कुछ भी गिन सकते हैं, उसे परिवर्तित भी कर सकते हैं, यही भाग्य परिवर्तन का मूल्य सिद्धांत है !
हम सभी जानते हैं कि हम आज जो भी कर रहे हैं, उसके परिणाम भविष्य में हमें भोगने पड़ेंगे अर्थात यदि हम अपने भविष्य को खुशहाल बनाना चाहते हैं तो हमें अपने वर्तमान को भविष्य की खुशहाली के अनुरूप परिवर्तित करना होगा ! यदि हम वर्तमान में अपनी निजी खुशी के अतिरिक्त अन्य विषयों पर कोई चिंता नहीं करते हैं, तो निश्चित रूप से हमारा अव्यवस्थित भविष्य भी कष्टकारी और दुखदाई होगा !
अर्थात प्रकृति की व्यवस्था और सामाजिक संरचना इन दोनों के साथ तालमेल बनाकर चलने वाला व्यक्ति ही अपने भविष्य को सुरक्षित रख सकता है ! यदि वर्तमान समय में विवेक हीन तरीके से हमने अपने त्वरित खुशी या लाभ के लिए प्रकृति का दोहन किया है या सामाजिक व्यवस्था का उल्लंघन किया है, तो यह निश्चित रूप से जानिये कि आपका भविष्य कष्टकारी और सतही होगा !
अर्थात हम आत्म संयम और स्वाभाविक चिन्तन के द्वारा अपने भविष्य के कष्ट और परेशानियों को कम कर सकते हैं, क्योंकि मनुष्य एक ऊर्जा से संचालित होता है ! अतः ऐसी स्थिति में जब व्यक्ति के अंदर संस्कारों के प्रभाव में विनाशकारी ऊर्जा का संचार होता है, तब उसे उन विनाशकारी ऊर्जाओं को नियंत्रित व सही दिशा में संचालित करने के लिए धर्म और ईश्वरीय विधान का सहारा लेना चाहिए ! यही से पूजा, पाठ, अनुष्ठान, व्रत और संयम की उत्पत्ति होती है !
यदि व्यक्ति इतना विवेकी हीन है कि उसे अपनी विनाशकारी ऊर्जा को पहचानने का समर्थ नहीं है, तो उसे किसी विवेकशील व्यक्ति के निर्देशों के अधीन चलाना चाहिए और वही विवेकशील व्यक्ति हमारे शास्त्रों में “गुरु” शब्द से संबोधित किया गया है अर्थात अपनी विवेकी हीनता के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए व्यक्ति को सदैव गुरु की शरण में जाना चाहिये !
एक सद्गुरु व्यक्ति के संस्कारों और स्वभाव पर नियंत्रण लगाकर उसे भविष्य में आने वाले अनेकों-अनेक कष्टों से बचा लेता है ! यानी एक सद्गुरु आपके भविष्य और भाग्य को बदल सकता है अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाए कि व्यक्ति यदि संपूर्ण समर्पण के साथ एक सद्गुरु के सानिध्य में चला जाये और उसके मार्गदर्शन में अपना जीवन यापन करे ! तो वह सद्गुरु की कृपा से जब अपने संस्कार और स्वभाव में परिवर्तन कर लेता है तो उसके भविष्य और भाग्य की नकारात्मक ऊर्जा मंद पड़ जाती है ! भविष्य में होने वाली कठिनाइयों से वह अपने आप को मुक्त कर लेता है ! यही गुरु की व्यक्ति के जीवन में उपयोगिता है ! इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति को सद्गुरु से सुदीक्षा अवश्य लेनी चाहिये !!