महर्षि पराशर रचित एक सूत्र से आयु निर्णय की स्थिति स्पष्ट होती है- बालारिष्ट योगारिष्टमल्यं मध्यंच दीर्घकम् ! दिव्यं चैवामितं चैवं सप्तधायुः प्रकीर्तितम् ! ! सात प्रकार की मृत्यु संसार में जानी जाती है अर्थात् मृत्यु के विषय में ज्ञान होना तो अत्यंत दुर्लभ है, किंतु फिर भी बालारिष्ट, योगारिष्ट, अल्प, मध्य, दीर्घ, दिव्य और अमित ये सात प्रकार की मृत्यु संसार में जानी जाती है ! बालारिष्ट जन्म से आठ वर्ष तक की आयु तक होने वाली मृत्यु को बालारिष्ट कहा गया है ! यह होती क्यों है यह भी जान लीजिए ! जन्म कुंडली में लग्न से 6, 8, 12वें स्थान में पापग्रहों से युक्त चंद्रमा हो तो व्यक्ति की मृत्यु बाल्यावस्था में हो जाती है !
इसके अलावा सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण का समय हो, सूर्य, चंद्र, राहु एक ही राशि हों तथा लग्न पर क्रूर ग्रहों शनि-मंगल की छाया हो तो बालक के साथ माता की मृत्यु का दुर्योग भी बनता है ! लग्न से छठे भाव में च्रंद्रमा, लग्न में शनि और सप्तम में मंगल हो तो बालक के पिता की मृत्यु होती है या उन्हें मृत्यु तुल्य कष्ट होता है ! बचने के उपाय: ग्रंथों में बालारिष्ट योग से बचने के लिए बालक के गले में चांदी का चंद्रमा और मोती डालकर पहनाया जाता है ! इससे बालक के सिर से मृत्यु का संकट टल जाता है, ऐसा विद्वानों का मत है !
योगारिष्ट आठ वर्ष के पश्चात किंतु 20 वर्ष से पहले होने वाली मृत्यु को योगारिष्ट कहा जाता है ! इस प्रकार की मृत्यु तब होती है, जब अष्टम भाव शनि, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों से दूषित हो और लग्न में बैठा विपरीत ग्रह वक्री हो ! कई विशिष्ट योगों के कारण जातक की मृत्यु होती है इसलिए इसे योगारिष्ट कहते हैं ! अमावस्या से पहले की चतुर्दशी, अमावस्या और अष्टमी को यह योग पूर्ण प्रभाव में रहता है !
जिन बालकों के माता-पिता कुकर्मों में लिप्त रहते हैं, उनके बालकों की मृत्यु भी योगारिष्ट होती है ! बचने के उपाय: योगारिष्ट से बचने के लिए शास्त्रों के अनुसार माता-पिता को सद्कर्म करना चाहिए ! यदि वे किसी का धन, स्वर्ण चुराते हैं या किसी हत्या में लिप्त रहते हैं तो उनके बालकों की मृत्यु 20 की आयु से पूर्ण होती है ! शिव की उपासना इससे बचने का एकमात्र उपाय है !
अल्पायु योग 20 से 32 वर्ष की आयु को अल्पायु कहा गया है ! विद्वानों का मत है कि वृषभ, तुला, मकर व कुंभ लग्न वाले जातक अल्पायु होते हैं, लेकिन इन लग्न वाले जातकों की कुंडली में यदि अन्य कोई शुभ ग्रह हो और सूर्य मजबूत स्थिति में हो तो इस योग का प्रभाव नहीं रहता ! यदि लग्नेश चर-मेष, कर्क, तुला, मकर राशि में हो तथा अष्टमेश द्विस्वभाव- मिथुन, कन्या, धनु, मीन राशि में हो तो अल्पायु योग होता है !
यदि जन्म लग्नेश सूर्य का शत्रु हो तो जातक अल्पायु होता है ! इसी प्रकार यदि शनि और चंद्रमा दोनों स्थिर राशि में हों अथवा एक चर और दूसरा द्विस्वभाव में हो तो व्यक्ति की मृत्यु 20 से 32 की आयु के मध्य होती है ! बचने के उपाय: अल्पायु योग टालने के लिए ज्योतिष शास्त्र में कई उपाय बताए गए हैं ! सर्वप्रथम जीवन प्रदाता शिव की आराधना, हर दिन महामृत्युंजय मंत्र की 21 माला का जाप करना चाहिए ! प्रत्येक माह की दोनों अष्टमियों को शिव का दही से अभिषेक किया जाता है ! अनिष्ट ग्रहों का प्रभाव टालने के लिए नवग्रह युक्त पेंडेंट गले में धारण करना चाहिए !
मध्यायु योग 32 वर्ष के बाद से लेकर 64 वर्ष तक की आयु सीमा को मध्यायु कहा गया है ! यदि लग्नेश सूर्य का सम ग्रह बुध हो अर्थात मिथुन व कन्या लग्न वालों की प्रायः मध्यम आयु होती है ! यदि लग्नेश तथा अष्टमेश में से एक चर- मेष, कर्क, तुला, मकर तथा दूसरा स्थिर- वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुंभ राशि में हो तो जातक मध्यायु होता है ! यदि शनि और चंद्र दोनों की द्विस्वभाव राशि में हों या एक चर तथा दूसरा स्थिर राशि में हो तो जातक मध्यायु होता है ! यदि लग्नेश तथा अष्टमेश सामान्य स्थानों में हो तो जातक मध्यायु होता है !
कई विद्वानों का यह मत भी है कि मध्यायु योग वाले जातकों की मृत्यु जन्म स्थान से बहुत दूर होती है ! बचने के उपाय: इस योग वाले व्यक्ति को अचानक कोई आघात हो सकता है, इसलिए उनसे बचने के लिए चंद्रमा और शनि के उपाय किए जाते हैं ! जातक को चांदी का स्वस्तिक गले में धारण करना चाहिए ! प्रत्येक शनिवार को तीन गरीबों को काले कंबल और चप्पल दान देने की सलाह दी जाती है दीर्घायु योग 64 से अधिक एवं 120 वर्ष की आयु तक होने वाली मृत्यु को दीर्घायु या पूर्णायु कहा गया है !
यदि जन्म लग्नेश सूर्य का मित्र हो तो व्यक्ति को पूर्ण आयु प्राप्त होती है ! लग्नेश और अष्टमेश दोनों चर राशि में हो जातक दीर्घायु होता है ! यदि लग्नेश तथा अष्टमेश में से एक स्थिर तथा दूसरा द्विस्वभाव हो तो जातक दीर्घायु होता है ! यदि शुभ ग्रह तथा लग्नेश केंद्र में हो तो जातक दीर्घायु होता है ! लग्नेश केंद्र में गुरु, शुक्र के साथ हो या इनकी दृष्टि हो तो जातक पूर्ण आयु का भोग करता है ! लग्नेश पूर्ण बली हो तथा कोई भी तीन ग्रह उच्च, स्वग्रही या मित्र राशिस्थ होकर आठवें भाव में हो तो जातक की पूर्ण आयु होती है ! इस योग वाले जातकों का जीवन आमतौर पर सुखमय देखा गया है, लेकिन बीच-बीच में कई प्रकार के रोग परेशान करते हैं ! इन जातकों को जीवन पर्यन्त शिव और विष्णु की आराधना करना चाहिए !
दिव्यायु योग उपरोक्त पांच प्रकार के आयु योग के बाद अब बारी आती है दिव्यायु योग की ! वस्तुतः यह योग आयु से जुड़ा नहीं है, किंतु यह बताता है कि व्यक्ति का जीवन कैसा होगा ! वह अपने जीवनकाल को किस प्रकार व्यतीत करेगा ! यदि शुभ ग्रह बुध, बृहस्पति, शुक्र, चंद्र केंद्र और त्रिकोण में हो और सब पाप ग्रह 3, 6, 11,वें स्थान में हों तथा अष्टम भाव में शुभग्रह या शुभ राशि हो तो व्यक्ति के जीवन में दिव्य आयु का योग बनता है ! ऐसा जातक यज्ञ, जप, अनुष्ठान व कायाकल्प क्रियाओं द्वारा हजारों वर्षों तक जीवित रह सकता है ! किंतु ग्रंथों में यह स्पष्ट कहा गया है कि ऐसे जातक का जन्म मृत्यु लोक में संभव नहीं है ! ऐसी आयु तपोनिष्ठ ऋषि फिर भी पा सकते हैं !
अमित आयु अमित आयु पाने वाले प्राणी भी दुर्लभ हैं ! देवताओं, वसुओं, गंधर्वों को ऐसी आयु प्राप्त होती है ! इसके अनुसार यदि गुरु गोपुरांश यानी अपने चतुर्वर्ग में होकर केंद्र में हो, शुक्र पारावतांश अपने षड्वर्ग में हो एवं कर्क लग्न हो तो ऐसा जातक मानव न होकर देवता होता है ! इसकी आयु की कोई सीमा नहीं होती और यह इच्छा मृत्यु का कवच पाने में सक्षम होता है ! कुछ विद्वानों का मत है कि यह योग भीष्म को प्राप्त था !