गुप्त नौरात्रि पर विशेष लेख
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे यह शाब्दिक नौ अक्षरा मंत्र है ! इसका अर्थ नवार्ण नव और अर्ण के युग्म से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है नौ अक्षर से बना हुआ ! इसीलिये ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे को नवार्ण मंत्र कहा गया है !
इसके हर अक्षर का हर ग्रह की शक्ति से सीधा संबंध है ! पहला अक्षर ऐं है, जो सूर्य ग्रह और शैलपुत्री से संबंधित है ! दूसरा अक्षर ह्रीं है, जो चंद्रमा ग्रह और ब्रह्मचारिणी से नियंत्रित है ! तीसरा अक्षर क्लीं, चतुर्थ चा, पंचम मुं, षष्ठ डा, सप्तम यै, अष्टम वि तथा नवम अक्षर चै है ! जो क्रमशः मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु ग्रहों पर असर डालता है !
इन अक्षरों से संबंधित ऊर्जाएं है, क्रमशः चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री ! यह सभी शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप का अंश हैं क्योंकि शिव स्वयं अपने हांथ में कोई जिम्मेदारी नहीं लेते हैं ! अत: सृष्टि सञ्चालन का कार्य अम्बा को सौप रखा है !
अंबा शब्द ‘अम्म’ और ‘बा’ के युग्म से बना है ! कुछ द्रविड़ भाषाओं में अम्म का अर्थ जल और बा का मतलब अग्नि से है ! लिहाजा अंबा का शाब्दिक अर्थ बनता है, जल से उत्पन्न होने वाली अग्नि अर्थात् आधुनिक भाषा में विद्युत या जीवनी ऊर्जा भी कह सकते हैं ! इसीलिए कहीं-कहीं नवरात्र को विद्युत की रात्रि यानि शक्ति अर्थात जीवनी ऊर्जा की रात्रि भी कहा जाता है क्योंकि यह सभी अंबा साधना रात्रि कालीन साधना के अधीन हैं !
इस प्रकार अंबा साधना नौ प्रकार की शक्तियों या देवियों की संज्ञा लेती हैं ! शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री, यह किसी अन्य लोक में रहने वाली देवी या किसी पाषाण प्रतिमा के पूजन करने वाली देवी नहीं बल्कि हमारे में ही विराजमान हमारी अपनी ही आंतरिक ऊर्जा का नौ विलक्षण स्वरूप है !
नवरात्र के प्रथम तीन दिन आत्म बोध और ज्ञान बोध के, तीन दिन शक्ति संकलन और उसके संचरण यानी फैलाव के और तीन दिन अर्थ प्राप्ति के कहे गए हैं ! यूं तो नवरात्र में भी लक्ष्मी आराधना की जा सकती है, क्योंकि इसकी तीन रात्रि अर्थ, तीन धन और तीन भौतिक संसाधनों की भी कही गई हैं !
देवी पाठ या चंडीपाठ दरअसल ध्वनि के द्वारा अपने भीतर की ऊर्जा के विस्तार की एक पद्धति है ! यह पाठ प्राचीन वैज्ञानिक ग्रंथ मार्कण्डेय पुराण के श्लोकों में गुंथे वह सात सौ वैज्ञानिक फॉर्म्युला हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वह अपने शब्द संयोजन की ध्वनि से हमारे अंदर की बदहाली और तिमिरता को नष्ट करने वाली ऊर्जा को सक्रिय कर देने की योग्यता रखते हैं !
यह कवच, अर्गला, कीलक, प्रधानिकम रहस्यम, वैकृतिकम रहस्यम और मूर्तिरहस्यम के छह आवरणों में लिपटे हुए हैं ! इसके सात सौ मंत्रों में से हर मंत्र अपने चौदह अंगों में गुंथा है, जो इस प्रकार हैं- ऋषि, देवता, बीज, शक्ति, महाविद्या, गुण, ज्ञानेंद्रिय, रस, कर्मेंद्रिय स्वर, तत्व, कला, उत्कीलन और मुद्रा !
माना जाता है कि संकल्प और न्यास के साथ इसके उच्चारण से हमारे अंदर एक रासायनिक परिवर्तन होता है, जो आत्मिक शक्ति और आत्मविश्वास को फलक पर पहुंचाने की योग्यता रखता है ! मान्यताएं इसे अपनी आंतरिक ऊर्जा के विस्तार में उपयोगी मानती हैं !
– तीन अक्षरों से मिलकर बना है – आ, ऊ और म – यह ब्रह्माण्ड की ध्वनि है !
ऐं – महासरस्वती का बीज मंत्र
ह्रीं – महालक्ष्मी का बीज मंत्र
क्लीं – महाकाली का बीज मंत्र
चामुण्डायै विच्चै – अर्थात जो भगवती 52 शक्ति पीठो की एकाग्र शक्ति है और हमारी नाड़ियो और धमनियों को संचालित करने वाली प्राण शक्ति है, हे माँ जगदम्बा मै आपके चरणों की आराधना कर रहा हूँ ! आप मुझे ज्ञान, साहस और संपत्ति दीजिये माता !!