अंग्रेजों द्वारा भारत से असली श्रीमद्भागवत गीता की पाण्डुलिपि चुरा ले जाने के बाद भारत में व्याप्त जन आक्रोश को दबाने के लिये इस दुनियां में पहली बार नकली श्रीमद्भागवत गीता का प्रकाशन भारतीयों के अल्प धार्मिक ज्ञान को देखते हुये कलकत्ता में रहने वाले ईस्ट इण्डिया कंपनी से मान्यता प्राप्त एक बड़े अंग्रेज व्यवसायी “चार्ल्स विल्किंस” ने 1785 में अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित कर के किया था !
जिसे जर्मन के संस्कृत विद्वानों द्वारा लिखवाया गया था ! जिसे आदि गुरु शंकराचार्य के भाष्य पर आधारित कह कर प्रचारित किया गया ! जिसका खूब जोर शोर से प्रचार प्रसार तथाकथित महात्मा गाँधी और उनके अनुयायियों द्वारा अपनी जन सभाओं में 1917 से खूब किया गया !
और इसी झूठ को सत्य सिद्ध करने के लिये 29 अप्रैल 1923 को गोरखपुर में विशुद्ध आध्यात्मिक प्रकाशन संस्थान के रूप में गीता प्रेस को स्थापना की गयी ! जिसके लिये अंग्रेजों द्वारा तरह तरह की सुविधायें भी इस प्रेस को सस्ते तथाकथित आध्यत्मिक पुस्तकों को छापने के लिये प्रदान की गयी, जो कि आध्यात्म के नाम पर अंग्रेजों व्दारा लिखवाया गया झूंठ आध्यात्मिक साहित्य प्रकाशित करता था, जो आज भी प्रकाशित हो रहा है !
इसी बीच हिन्दी की पद्य भाषा में शब्द कोष की अधिकता के कारण अंग्रेजों ने अपने कंपनी के प्रशासनिक काम करने के लिये 1830 एक अलग गद्य हिन्दी भाषा अर्थात देवनागरी लिपि विकसित करवाई ! जो की कलकत्ता के फोर्ट विल्यम कालेज के वरिष्ठ भाषा विद शिक्षक जॉन गिलक्रिस्ट द्वारा आविष्कारित की गयी थी !
फिर भारत के अधिकांश दूषित धर्म ग्रंथों को खड़ी हिन्दी भाषा (देवनागरी लिपि) में अनुवाद और प्रकाशन का एक दौर चल पड़ा ! जिसमें आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले तथाकथित विद्वान् भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जैसे लेखकों का बड़ा भारी योगदान रहा ! जिस परम्परा को प्रतापनारायण मिश्र, प्रेमचन्द, रामधारी सिंह ‘दिनकर जैसे विद्वानों ने खूब बढ़ाया ! जिससे क्षेत्रीय भाषा के साथ उसके शब्द कोष भी विलुप्त हो गये !
जिसका परिणाम यह हुआ कि क्षेत्रीय लोक भाषा में श्रुति और स्मृति के आधार पर गाये जाने वाली मौलिक धर्म कथायें विलुप्त हो गयी और उनकी जगह खड़े हिन्दी भाषा के धर्म ग्रंथों ने ले लिया ! जिसे आज भी हम ढ़ोते चले आ रहे हैं !
इस तरह हमने अपने ऋषियों और मुनियों के द्वारा रचित मौलिक धर्म ग्रंथों के स्थान पर खड़ी हिन्दी भाषा के धर्म ग्रंथों को अपना लिया ! यही आज हमारे धर्म के सिद्धन्तों के सर्वनाश का कारण है और इन्हीं नकली धर्म ग्रंथों की वजह से हिन्दुओं को जगह जगह सैद्धांतिक और सामाजिक रूप से अपमानित होना पड़ता है !!