हमारा ऐतराज़ इस नई विश्व व्यवस्था की वक़ालत करने वाले मूल्यों और नियमों को लेकर नहीं है ! बल्कि हमारी आपत्ति उन तरीक़ों और माध्यमों को लेकर है जिन्हें ईजाद करके नई विश्व व्यवस्था लागू करने के लिये किया जा रहा है ! मानो दुनिया से छल किया जा रहा हो !
हमने वैसे तो अपने लेखों में तमाम वैश्विक संकटों का विश्लेषण किया है ! परंतु इनमें से दो संकटों का मौजूदा कोरोना महामारी के संदर्भ में विशेष महत्व के हैं ! पहली बात तो यह है कि अंतरराष्ट्रीय संगठनों की वैधानिकता में उत्तरोत्तर गिरावट आती जा रही है ! इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन ने शुरुआती दिनों में जो प्रयास किये ! वह बहुत ज़िम्मेदारी पूर्ण नहीं दिखे ! अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन की कही हुई बातों और उसकी दावों पर नरमी नही बरता होता, तो इस महामारी पूरी दुनियां में तेज़ी से फैलने में सफल नही मिलती !
हमारे कई वैश्विक संगठन राजनीतिकरण, छल, प्रपंच और प्रतिनिधित्व की कमी के संकट से जूझ रहे हैं ! ऐसा लगता है आज उनका मक़सद ही ख़त्म हो गया है ! उनके पास आर्थिक कारणों से स्वतंत्र नेतृत्व का भी अभाव है ! दूसरे वैश्विक संकट का संबंध राष्ट्रीय संप्रभुता से भी है ! आज पूरी दुनिया में राष्ट्रवाद की लहर चल रही है ! इसका नतीजा यह हुआ है कि विश्व मंच पर हर राष्ट्र अपनी संप्रभुता को उग्र तरीक़े से प्रस्तुत करने में लगा हुआ है !
अगर मौजूदा विश्व व्यवस्था सही तरीक़े से काम कर रही होती, तो दुनिया को नये कोरोना वायरस के इस संकट को पहचनाने में देर नहीं लगती ! बल्कि, दुनिया के सामने आने वाले इस संकट को पहचान कर पूरी दुनिया को आगाह किया जा सकता था !
दुनिया भर के मीडिया में जो आज कोरोना की सुर्ख़ियां बन रही हैं, वह W.H.O. के बीमारी के लक्षण को स्पष्ट कर देती हैं ! जैसे कि अमेरिका के राष्ट्रपति के नारे, ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ को ही लीजिये ! आज अमेरिकी सरकार जर्मनी से कोरोना वायरस की वैक्सीन तो चाहती है, मगर केवल अमेरिकी नागरिकों के लिये ! साथ ही अमेरिका फर्स्ट नीति पर चलते हुये ट्रंप सरकार ने चीन से दवाओं के आयात को भी रद्द कर दिया है और इस महामारी के वैश्विक संकट से निपटने की राह में इस वक़्त विश्व स्तर पर रोड़े खड़े किये हैं !
जैसे जब G-7 देशों के बयान में नये कोरोना वायरस को वुहान वायरस कहने पर अमेरिका अड़ गया ! यही स्थिति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी देखने को मिल रही है ! वहीं दूसरी ओर, पूरी दुनिया को इस वायरस की महामारी में झोंकने वाला चीन अपनी ज़िम्मेदारी से बच निकला है ! जबकि, शुरुआत में चीन की रणनीति इस वायरस से निपटने में पर्दानशीनी थी ! किन्तु अमेरिका के इस रवैये के बाद चीन उन संगठनों के साथ चालाकी से पेश आया जो इस संकट का बेहतर ढंग से मुक़ाबला कर सकते थे !
आज दुनिया को इस वैश्विक महामारी की भट्टी में झोंकने के बाद अब चीन मसीहा बनने का प्रयास कर रहा है ! इसके लिये वह ज़रूरतमंद देशों को आवश्यक स्वास्थ्य संसाधन उपलब्ध करा रहा है ! इटली को आपातकालीन मदद के तौर पर मेडिकल टीमें भेज रहा है ! पुराने अनुभव के आधार पर हम यह दावे के साथ कह सकते हैं कि इसकी क़ीमत मदद पाने वाले देशों को ख़ामोशी के तौर पर चुकानी होगी ! उन्हें चीन की करतूतों की अनदेखी करते हुये अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर अपना मुंह बंद रखना होगा ! आधुनिक दौर के इस सबसे बुरे स्वास्थ्य संकट के कारण हालात इतने ख़राब हैं कि यूरोपीय यूनियन भी अपने सदस्य देशों की मदद कर पाने में मुश्किलें झेल रहा है !
हम बस निराशा के साथ इस माहौल को देखते रहने को मजबूर हैं ! जबकि, हमने अपने लेखों में जिन परिस्थितियों की परिकल्पना की थी, वह आज हक़ीक़त के तौर पर हमारे सामने खड़ी हैं ! हमने जिस तरह से वैश्विक प्रशासन की कमज़ोरियों की नितांत सख़्त शब्दों में आलोचना की थी ! उसे लेकर किसी को इस निष्कर्ष पर पहुंचने की भूल नहीं करनी चाहिये कि यह व्यर्थ का काम था !
आज नई विश्व व्यवस्था के तहत किस तरह से कोरोना वायरस जैसे नये संकट को पैदा करती है और इसे दुनिया के अलग अलग देशों के बीच फैला देती है ! वास्तविकता तो यह है कि मौजूदा संकट से साफ़ है कि दुनिया के तमाम देश किस तरह से एक दूसरे पर निर्भर हैं और यह निर्भरता एक तरह से दुनिया को शक्ति भी देते हैं और कमज़ोरी भी है ! इस वैश्विक घटना का भारत पर क्या प्रभाव पड़ता है !इस पर भी विचार करते हैं !
भारत के असंगठित क्षेत्र के अप्रवासी कामगारों की बड़ी तादाद, कोरोना वायरस के आर्थिक प्रकोप का शिकार हो रही है ! वह रोज़गार, जिनमें पहले ही कम मज़दूरी मिलती थी ! जिन लोगों को सामाजिक संरक्षण नहीं प्राप्त था ! वह इस महामारी की चक्की में पिस रहे हैं ! हमें उम्मीद है कि भारतीय सरकार और हमारा समाज इस संकट को एक अवसर के रूप में देखेगा और यह ठानेगा कि हमारे देश में जो बहुत से सामाजिक एवं आर्थिक असमानताएं हैं ! उन्हें इस मौके पर दूर किया जाये !
जैसा कि, हमने अपने लेखों में व्यापक रूप से बतलाया है कि यह नया कोरोना वायरस दुनिया पर हमला बोलने वाला कोई पहला संकट नहीं है और तय है कि यह आख़िरी भी नहीं होगा ! हमने देखा कि अमेरिका में गुप चुप तरीक़े से किया जा रहा वित्तीय दुराचार किस तरह आर्थिक मंदी के रूप में एक वैश्विक आर्थिक संकट में परिवर्तित हो गया था ! 2016 में रूस ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में स्वयं को एक मतदाता के तौर पर दर्ज करने का प्रयास किया था ! हमारे सामने यह बिल्कुल साफ है कि आज हम किस तरह से एक दूसरे पर बेहद जटिल और व्यापक रूप से निर्भर हो गये हैं ! ऐसे में हमें कम नहीं बल्कि और अधिक वैश्विक प्रशासन की आवश्यकता है !
भारत ने कोरोना वायरस की महामारी को लेकर सार्क देशों के बीच सहयोग की जो पहल की है और फिर G-20 देशों को एक साथ लाने में अग्रणी भूमिका निभाई है ! उससे यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि भारत वैचारिक और राजनीतिक विविधताओं के समीकरणों के बीच अपनी भूमिका बहुत अच्छे तरीक़े से निभा रहा है ! भारत को ऐसा प्रयास अपने घरेलू राजनीतिक परिदृश्य में भी करना चाहिये !
हम मौजूदा कोरोना संकट के कारण अपने घरेलू अनुभव और नीतिगत ख़ामियों से जो भी सबक़ सीख रहे हैं ! उनके आधार पर ही भारत को अपने वैश्विक संवाद की दशा दिशा तय करनी चाहिये ! इस महामारी ने अधिकतर विकासशील देशों के सामने प्रशासनिक व्यवस्था की कमज़ोरियों को उजागर किया है और छुपी हुई चुनौतियों को सामने लाकर खड़ा कर दिया है ! इन चुनौतियों का सामना करते हुये भारत के सामने यह अवसर है कि वह बिल्कुल अलग तरह की विश्व शक्ति के तौर पर अपने को उभरने का प्रयास करे !
अमेरिका के महाशक्ति बनने के पीछे उसकी विशाल सैन्य क्षमता और कूटनीतिक गठबंधन व आर्थिक संस्थाएं थीं ! चीन के महाशक्ति बनने में उसकी भौगोलिक, आर्थिक शक्ति एवं वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला तथा व्यापार पर उसके नियंत्रण होने की प्रमुख भूमिका थी !
जैसा कि हम अपने लेखों में तर्क देते हैं कि आने वाले युग में भारत दुनिया की पहली आध्यात्मिक विकासवादी शक्ति होगा ! जो अब विश्व की आवश्यकता है !
अत: भारत का एक उत्तरदायित्व यह भी है कि वह वैश्विक सहयोग की नैतिकता को मानवता के साथ जोड़ कर पुनर्जीवित करे ! जो इस समय दुनिया अलग-अलग प्रभाव क्षेत्रों में सिमटती जा रही है ! जहां पर कुछ देश मिलकर एक दूसरे के साथ विशेष मानवीय संबंध बना रहे हैं ! ऐसे में किसी वैश्विक संकट का सामना करने की हमारी आध्यात्मिक क्षमता सीमित प्रदर्शित हो रही है ! जबकि इसका प्रचार अमेरिका अपने यहाँ राष्ट्रपति भवन में हवन पूजन करके कर रहा है और हम अपनी संस्कृति को लेकर मूक दर्शक बने बैठे हैं ! जोकि उचित नहीं है !
भारत के नेतृत्व में दुनिया के लिये भारत एक नयी वैक्सीन का निर्माण तो कर ही रहा है ! जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को नये दशक की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करेगी ! लेकिन तब तक भारत को विश्व के सामने अपनी सनातन आध्यात्मिक क्षमता का भी प्रदर्शन पूरी शक्ति से करना चाहिये ! जब मात्र अमेरिका के राष्ट्रपति भवन में ही नहीं पूरे विश्व में कोरोना को लेकर महामृत्युंजय मन्त्र, अनुष्ठान और हवन पूजन हो सकता है ! तो भारत के संसद में क्यों नहीं ! यह तो फिर भी थाली पीटने और टार्च जलने से तो बेहतर ही होगा !!