मोदी जी का स्वच्छता अभियान कहीं अभिशाप न बन जाये !!

भारत में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ जमीन में पानी का स्तर मात्र 10 से 15 फिट पर ही है ! ऐसी स्थिती में मात्र शौचालय बनाने के लिए दी जाने वाली धनराशि 12 हजार रुपये में निर्मित शौचालय की पिट जो ठेकेदारों द्वारा प्राय: कमजोर बनाई जाती है ! उससे रिस कर गया गन्दा पानी जमीन के नीचे के पीने योग्य पानी को भी जहरीला कर रहे हैं ! जिसके भयंकर परिणाम मात्र 8-10 सालों के अन्दर नये-नये रोगों के रूप में सामने आयेंगे !

जबकि जमीन के ऊपर त्यागा गया ‘मल’ कुछ ही काल में खाद में परिवर्तित हो जाता है ! हिन्दुस्तान में पशुओं से मनुष्यों की संख्या दुगुनी है ! आगे हमारी आबादी और बढ़ेगी और यंत्रीकरण के प्रवाह का पशु-संख्या पर क्या असर होगा, कोई नहीं जानता ! ऐसी हालत में निश्चित रूप से मिलने वाले मानवीय मल मूत्र का खाद के तौर पर उपयोग होना चाहिए, यह आग्रह अनुचित नहीं है !

विशेषज्ञों का कहना है कि मानव मल खेती में खाद की तरह इस्तेमाल हो सकता है ! एक आकलन है कि 10 लाख लोगों के मल से हर साल 1,200 टन नाइट्रोजन, 170 टन फॉस्फोरस, 330 टन पोटैसियम बनाया जा सकता है !

जर्मनी के बोखुम की रूअर यूनिवर्सिटी में एक टीम इस बात की पड़ताल कर रही है कि क्या शहरी कचरे का जमीन और खेती में इस्तेमाल हो सकता है ! इस टीम में बॉन यूनिवर्सिटी के एक इंडोनेशियाई रिसर्चर फादली मुस्तमिन भी हैं ! उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि वो मानव मल पर रिसर्च कर उससे मिट्टी को उपजाऊ बनाने में कुछ सफलता मिली है !

कम्पोस्ट बनाने में आमतौर पर तापमान 71 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है जिसके कारण मल में मौजूद रोगाणु और कीड़े मर जाते हैं ! मल के कम्पोस्ट बनाने का काम श्रीलंका में हुआ और फिर मल की गोलियों को बोखुम लाया गया ! इन गोलियों में 70 फीसदी मानव मल और 30 फीसदी जैविक कचरा है ! फादली ने मिट्टी तैयार किया जिसमें इन गोलियों को मिलाया गया !

लैब में वैज्ञानिकों ने मिट्टी की उर्वरता पर मल की खादों के असर का पता करने के लिए कुछ विश्लेषण किए ! जैसे कि मिट्टी में होने वाली श्वसन की प्रक्रिया, पोषक की मौजूदगी और मिट्टी का कार्बनिक पदार्थ ! फादली ने बताया, “50 दिनों की इनक्यूबेशन प्रक्रिया के जरिए हमें पता चलता है कि सूक्ष्म जीवों के सांस लेने से कितना कार्बन डाइऑक्साइड पैदा हुआ ! ज्यादा कार्बन डाइ ऑक्साइड पैदा होने का मतलब है ज्यादा सूक्ष्म जीवाणु सक्रिय हैं और तब मिट्टी भी ज्यादा उपजाऊ होगी !”

मानवीय मल-मूत्र की खाद से फसल की पैदावार कितनी बढ़ती है, इस बारे में अभी अनुभव-सिद्ध आँकड़े नहीं मिले हैं ! फिर भी नीचे की जानकारी पर से कुछ कल्पना आयेगी ! सुरगाँव (वर्धा) में एक किसान ने पहले साल बिना खाद दिए धान बोया ! दूसरे साल सोनखाद देकर बोया ! पहले साल से दूसरे साल एक तिहाई रकवे में धान बोया था, फिर भी पहले साल से कुछ ही कम धान पैदा हुआ ! हिसाब लगाने पर पहले साल से पौने तीन गुना अनुपात पड़ा बारिश आदि अन्य कारणों को ख्याल में लें, तो भी डेढ़गुनी फसल आमतौर से होगी, ऐसा मानने में कोई हर्ज नहीं है ! कम-से-कम गोबर की खाद से जितनी पैदावार बढ़ती है, उतनी तो बढ़ेगी ही !

सोन-खाद, किस फसल को कितनी मात्रा में देनी चाहिए इस बारे में भी प्रयोग होना बाकी है ! फिर भी हम कह सकते हैं कि जहाँ निश्चित रूप से पानी दे सकते हैं ! वहाँ गोबर-खाद की मात्रा में और अन्य जगह गोबर-खाद की दो-तिहाई मात्रा में उसे दें !

मानवीय मल-मूत्र का खाद के तौर पर उपयोग करने में कोई-कोई आरोग्य हानि की आशंका करते हैं ! उस पर भी विचार कर लें ! भिन्न-भिन्न रोग जंतुमूलक हैं, यह बात अब करीब-करीब सर्वंमान्य है ! कॉलरा, भिन्न-भिन्न प्रकार के टाइफॉइड आदि आँतों के भयंकर रोगों के जन्तुओं का मानवीय मल-मूत्र से निकट का सम्बन्ध है !

पाश्चात्य देशों में मानवीय मल-मूत्र की ठीक ढंग से व्यवस्था करने से ऊपर के रोग काफी हद तक काबू में आ गये हैं, यह भी सही है ! जिस जमीन को अभी-अभी आदमी का मैला खाद के तौर पर दिया गया हो, उस जमीन में पैदा की गयी तरकारियों का सम्बन्ध भी आँतों के रोगों से जोड़ा गया है ! डॉ ! रिचर्डसन ने, जो छह साल चीन में थे, 1943 में हिन्दुस्तान के खेती-केमिस्ट आदि के सामने अपने व्याख्यान में कहा था कि चीन की जमीन के उपजाऊपन में गोबर-खाद का कम हिस्सा हो ! मुख्य हिस्सा मानवीय मैले का है !

मैले की पक्व खाद हुए बिना, खाद के तौर पर उपयोग करें, तो ऊपर के दुष्परिणामों की सम्भावना हो सकती है ! मैला पक्व होने के बाद याने सड़कर पूरा गल जाने के बाद खाद के नाते उपयोग करें, तो ऊपर की तरह का कोई दुष्परिणाम होने की संभावना नहीं है ! महात्माजी के आश्रमों में तथा अन्य कई संस्थाओं में सालों से आदमी के मैले की खाद का उपयोग सभी फसलों में किया जाता रहा है और उससे नुकसान हुआ, ऐसा मानने का कोई सबूत नहीं है ! इसलिए बिना संकोच के हम आदमी के मल-मूत्र की खाद का उपयोग कर सकते हैं !

राज अन्ना एक किसान हैं ! 42 साल के राज अन्ना बंगलुरू के वीर सागरा में रहते हैं, जो पिछले कुछ सालों से अपने खेतों से खूब मुनाफ़ा कमा रहे हैं ! अन्ना अपने खेतों से ही हर साल 15 लाख से भी ज्यादा कमा लेते हैं ! मैंने पूछा की खेती से इतनी कमाई कैसे होती है? उनने कहा कि ये सब तो मानव मल का कमाल है ! दरअसल अन्ना उन हजारों किसानों में से एक हैं, जो मानव मल को खेती में खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं !

बात करते-करते अन्ना को अपने पिता की याद आ गई और कहने लगे- “हमारे पूर्वज भी मानव मल को खाद के रूप में खेतों में इस्तेमाल करते थे ! जब मैं छोटा था मैने देखा की मेरे पिताजी लैट्रिन का डिजाइन बनाते समय लकड़ियों के जाल का इस्तेमाल करते थे जब गर्मियां आती तो वे इसे भूसे से ढंक देते थे ! इस तरह पखाने में ही टट्टी खाद में बदल जाती थी, और बाद में पिताजी उसे खेत में इस्तेमाल कर लेते थे ! पहले लोग खेतों में जंगल-पानी जाते थे तो वहां प्राकृतिक रूप से ही खाद बन जाया करती थी ! पर अब तो लोग जंगल-पानी जाते ही नहीं ! अब सबको मॉडर्न लैट्रिन ही चाहिए” !

वीर सागरा में अन्ना ने ही टट्टी को खाद के रूप में सबसे पहले इस्तेमाल करना शुरू किया था ! एक बार उनने हनी सकर्स के ट्रकों को देखा ! हनी सकर्स ऐसा नेटवर्क है जिसमें शहर से मल को ट्रक में इकठ्ठा कर लेते हैं और वो फिर किसी खाली बंजर जमीन पर उस मल को डाल देते हैं ! बस फिर क्या था अन्ना को तरकीब सूझी और उसने ट्रक वाले से बात की कि वो उस मानव मल को उसके खेतों में डाल दें !

बीते दिनों को याद करते हुए उसने बताया कि कैसे वो इन हनी सकर्स ट्रकों का इन्तेजार किया करता था की कोई ट्रक आए और मेरे खेत में उस मल को डाल दें ! फिर मैंने अपने खेत में एक बड़ा सा गड्ढा बनाया और ट्रक वाले से कहा कि उस गड्ढे के अन्दर उस मल को डाल दे ! ऐसा करने से दोनों की बल्ले-बल्ले हो गई ! मुझे मुफ्त में प्राकृतिक खाद मिल गई और ट्रक वाले को खाली जगह ! फिर धीरे-धीरे मेरे पास इतनी ज्यादा खाद हो गई की मैं दूसरे किसानों को बेचने लगा ! अब तो यह एक अनौपचारिक व्यापार बन गया है जिससे किसानों, हनी सकर्स और ऐसे लोगों को फायदा हो रहा है जिनके शौचालय सीवरेज सिस्टम से जुड़े नहीं हैं ! 75 करोड़ रूपए के इस अनौपचारिक व्यापार से 200,000 लोगों को रोजगार मिल रहा है !

यह हैं शब्द उस आदमी के, जिसने खेती का तज्ञ होने के साथ ही, पश्चिम और पूरब, दोनों के खेती के ढंगों का बारीकी से और शास्त्रीय दृष्टि से अध्ययन किया था !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter