स्वास्तिक जिसने हिटलर की तकदीर बदल दी ? : Yogesh Mishra

सत्य सनातन वैदिक निशान स्वास्तिक को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हिटलर की पहचान माना गया है और माना भी क्यों न जाये जब स्वस्तिक नाज़ी साम्राज्य का प्रतीक चिन्ह जो था ! जिस नाजी साम्राज्य ने विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य ब्रिटेन और सबसे बड़े पूंजीवादी अमेरिका का अहंकार को द्वितीय विश्व युद्ध में तोड़ दिया था ! पर कम लोग ही जानते ही कि स्वस्तिक को नाज़ी साम्राज्य ने कैसे और क्यों अपनाया ?

तो जानिये इसका सत्य ! जब नाज़ीवाद का जन्म भी नहीं हुआ था ! तब 1868 में एक पुरातत्वविद “हैनरिच” ग्रीस के “इथेका” में पहुंचता है ! खोजी होने के नाते वह नई चीज़े खोजने का शौक़ीन था !

होमर के महाकाव्य “इलियड” में एक प्राचीन शहर का ज़िक्र है “ट्रॉय” ! आप लोगों ने इसी नाम की शायद एक हॉलीवुड फिल्म भी देखी होगी ! हैनरिच ने ट्रॉय शहर को ढूंढने के मन बनाया !

हैनरिच ने होमर की सारी बातों को गौर से पढ़ा और वहाँ के स्थानीय रीति रिवाजों को समझने का प्रयास किया !

3 साल भटकने के बाद जब वह तुर्की के “एजियन तट” पर पहुंचता है ! यहाँ उसे वह मिलता है जिसकी उसने कल्पना तक नहीं की थी ! यहाँ पर उसे “ट्रॉय शहर” मिला ! जो अब एक विश्व प्रसिद्ध यूनेस्को विश्व धरोहर है !

हैनरिच ने उसकी खुदाई शुरू की तो वहाँ से मिट्टी के घड़े, कलाकृतियां बरामद हुई ! जिन घड़ो पर विचित्र चिन्ह बना हुआ था और वह चिन्ह था स्वस्तिक ! हैनरिच ने बताया है कि उसे इसके कम से कम 1800 अलग-अलग रूप मिले थे !

इसके बाद यह “स्वस्तिक चिन्ह” संसार के अन्य भागों में भी देखे जाने लगा ! इस तरह इसे पूर्व के विश्व शासक रहे एक जाति विशेष “आर्यों” से जोड़ कर देखा जाने लगा और माना गया कि कभी यह एक बहुत ही शक्तिशाली नस्ल थी ! जिसने विश्व के कई भू-भागों पर अपना आधिपत्य जमाया था ! इन्हें योरोप में “आर्यन” कहा गया !

आर्यन शब्द का अर्थ उस समय किसी नस्ल के लिये प्रयोग नहीं किया जाता था ! बल्कि इसे एक भारतीय-यूरोपीय भाषा के रूप में देखा जाता था !

समय गुजरता गया और आर्यन नस्ल की कहानियां प्रचलित होती गई ! इन्हें कालांतर में एक विशुद्ध देव पुत्रों की नस्ल माना गया ! इसे सत्य भी कह सकते हैं ! पर इसी के सहारे हिटलर ने जर्मनी में एक नये प्रकार के राजनीति की नींव रखी और जर्मन के मूल निवासियों को देव पुत्र विश्व की सर्वश्रेष्ठ नश्ल घोषित किया !

वैसे तो भारत में हर शुभ कार्य के मौके पर देव चिन्ह स्वस्तिक का प्रयोग होता है ! पर भारत के बाहर बवेरिया प्रांत के लोगो ने सबसे पहले स्वस्तिक को अपनाया था ! पहले इसे झंडे आदि में स्थान दिया ! धीरे-धीरे इसे क्रांति का चिन्ह बना दिया गया ! तब तक नाज़ी पार्टी का अस्तित्व नहीं था !

प्रथम विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद 1920 में स्वस्तिक ने हिटलर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया ! यह वह दौर था जब जर्मनी में साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा लोकतंत्र स्थापित हो चुका था और कम्युनिज्म भी एक विकल्प के तौर पर लोकप्रिय हो रहा था ! ज़रूरत थी कम्युनिस्ट के हँसिया हथौड़ी के चिन्ह को बदले की ! अत: हिटलर ने स्वस्तिक अपनाया ! क्योंकि हिटलर की कल्पना जिसमे साम्यवाद के प्रतीक के बदले नाज़ीवाद को देखता था !

नाज़ीवाद जर्मन के चांसलर एडोल्फ़ हिटलर की साम्राज्यवाद के विपरीत विचारधारा थी ! साम्राज्यवाद में शासक नीति का निरधारण करता है और जनता मात्र उसका पालन करती है पर नाजीवाद में सरकार मात्र हर नीति की पहल करती है परंतु फिर वह योजना जनता-समाज की भागिदारी से चलती है और सरकार मात्र ओबजर्व करती है ! कट्टर राष्ट्रवाद, देशप्रेम, विदेशी हस्तक्षेप का विरोध, आर्य और जर्मन हित आदि आदि सभी कुछ इस नाजी विचार धारा के मूल अंग हैं !

इस तरह स्वस्तिक नाज़ी साम्राजय का प्रतीक बना ! हिटलर के समय में झंडे, यूनिफार्म, कपड़े, सरकारी दफ्तर आदि सब जगह स्वास्तिक देखा जा सकता था ! प्रोपेगैंडा इस स्तर पर फैलाया गया कि जब हिटलर ऑफिस में नहीं होता तो स्वस्तिक हिटलर के प्रतिनिधि के रूप में विराजमान होगा ! अर्थात नाजी राज्य में स्वस्तिक का वही सम्मान होगा जो हिटलर का है !

इस तरह स्वस्तिक जर्मन लोगो के मन मे आर्यन जैसी एक शुद्ध नस्ल और देव पुत्र बनने की प्रेरणा देने के काम आता था ! इससे यहूदी बहुत चिढ़ते थे ! जिससे हिटलर के लिये यहूदियों को समाज से अलग करना आसान हुआ और यहूदियों ने स्वास्तिक के प्रति अपनी इस चिढ के कारण जर्मन में अपना सम्मान खो दिया !

द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद जर्मनी में इस प्रतीक चिह्न पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और 2007 में साम्राज्यवादियों ने यूरोप भर में इस पर प्रतिबंध लगवाने की नाकाम पहल की थी ! यूरोप में इस प्रतीक चिह्न का सकारात्मक इस्तेमाल फिर से शुरू हो गया है ! कोपनहेगन में पिछले साल 13 नवंबर को ‘स्वास्तिक डे’ के तौर पर मनाया गया ! इस मौक़े पर दुनिया भर के टैटू कलाकार इकट्ठा हुये थे !

उन्होंने मुफ़्त में स्वास्तिक का चिह्न बनाने की पेशकश भी की थी ! उनकी कोशिश भोगवाद के विरुद्ध सनातन सांस्कृतिक के अतीत को लेकर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने की थी !

पर हिटलर के स्वस्तिक को भारतीय स्वस्तिक न समझिये ! इन दोनों में अंतर है और इनके सांकेतिक अर्थ भी अलग-अलग हैं !

सनातन संस्कृत में स्वास्तिक का अर्थ है सौभाग्य ! प्राचीन समय में पश्चिमी देशों से आ रहे यात्रियों ने इस सौभाग्य के सनातन भारतीय चिह्न को अपना लिया था और उसे अपनी संस्कृति तक लेकर गये ! दुनिया के एकदम अलग कोनों पर बसे देशों और एकदम अलग संस्कृति में भी यह सौभाग्य का प्रतीक चिह्न देखा जाता है !

पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार खुदाई में यह चीन, मंगोलिया से लेकर जापान, ब्रिटेन और यहां तक कि अमेरिका में भी मिल चुका है ! यह केवल एक ज्यामिति नहीं है बल्कि इसकी सकारात्मकता की वजह से कई देश इसे कहीं युद्ध में तो कहीं विज्ञापनों में भी इस्तेमाल करते रहे हैं !

यह अलग-अलग देशों में अलग अलग नाम से पुकारा जाता है ! जैसे चीन में वान, जापान में मंजी, ब्रिटेन में फिलफिट, ग्रीस में टेट्रागैमेडिअन और जर्मनी में हेकेनक्रुएज़ आदि आदि !

पहले विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी सेना ने भी इसे प्रतीक अपना बनाया था ! जो 1939 तक उनके लड़ाकू जहाजों पर भी दिखता रहा है ! बाद में नाजियों द्वारा इसे पार्टी प्रतीक बनाये जाने के बाद से अमेरिका ने सेना में इसका प्रयोग बंद कर दिया था !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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