संस्कारों की ऊर्जा सतत व अनंत चिरजीवी होती है ! : Yogesh Mishra

हम सभी जानते हैं कि हमारे जीवन की 99% दिनचर्या संस्कारों के प्रभाव से स्वत: संचालित होती है ! अब प्रश्न यह है कि यह संस्कार विकसित कैसे होते हैं ! इस संदर्भ को मैं एक उदाहरण से समझता हूँ ! जैसे कोई व्यक्ति जब खिचड़ी खाता है तो खिचड़ी को खाते समय उसके दिमाग के अंदर न्यूरॉन्स का एक समूह सक्रिय हो जाता है !

वह समूह उस खिचड़ी के अंदर पड़ी हुई सभी चीजें को तरंगों के रूप में अपने अंदर संग्रहित करना आरंभ कर देता है ! जैसे खिचड़ी का स्वाद, रंग, मसाले, लॉन्ग, जीरा, मिर्च आदि ! इसके अलावा खिचड़ी के साथ में यदि आप पापड़ खा रहे हैं, अचार ले रहे हैं, दही ले रहे हैं या जो भी आप अन्य वस्तु का सेवन कर रहे हैं ! उन सारी चीजों से संबंधित न्यूरॉन्स का एक समूह उनको तरंगों के रूप में अपने अन्दर रिकॉर्ड करना शुरू कर देता है !

अर्थात जब कभी भी आप दोबारा खिचड़ी खाते हैं तो न्यूरॉन्स का वह समूह पुनः सक्रिय हो जाता है और आपको पिछली बार खाई गई खिचड़ी की तुलना में वर्तमान में जो खिचड़ी खा रहे हैं ! उसमें क्या फर्क है, इसको बतलाना शुरू करता है ! अर्थात पिछली बार खिचड़ी में लॉन्ग डाली गई थी लेकिन इस बार नहीं पड़ी है या पिछली बार खिचड़ी में नमक तेज था ! अबकी बार नमक हल्का है या फिर पिछली बार खिचड़ी में हल्दी नहीं डाली गई थी ! अब इस बार हल्दी अतिरिक्त डाल दी गई है ! इस तरह की बहुत सी सूचनायें यह न्यूरॉन समूह आपको देना शुरू करता है !

इसी तरह की न्यूरॉन समूह द्वारा दी जाने वाली किसी एक घटना के संदर्भ में निरंतर सूचना की द्रणता से हमारे संस्कार विकसित हो जाते हैं ! जो करोड़ों की संख्या में होते हैं ! फिर हम उन संस्कारों के अनुरूप अपने जीवन की कार्य पद्धति का निर्धारण करते हैं अर्थात हमारा व्यक्तित्व जैसा भी है ! वह उन्हीं संस्कारों के द्वारा निर्मित व संचालित होता है !

कुछ लोग शांत स्वभाव के होते हैं ! कुछ लोग क्रोधी स्वभाव के होते हैं ! कुछ लोग कूटनीतिक दृष्टिकोण से वार्ता करने में विश्वास करते हैं ! कुछ लोग साफ-सुथरी बात करने में विश्वास करते हैं ! अर्थात यह सारे निर्णय हमारा मस्तिष्क संस्कारों के प्रभाव से लेता है ! फिर उसी संस्कारों का असर हमारे शरीर पर पड़ने लगता है !

हमारा शरीर उन संस्कारों से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा के अनुरूप आपके चेहरे की बनावट बदलने लगता है ! आपके हाथ पैर की अभिव्यक्ति, आपके वाणी का स्वर, आपके चलने फिरने का तरीका आदि आदि आपके संस्कार ही निर्धारित करने लगते हैं !

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि संस्कारों का प्रभाव व्यक्ति के मृत्यु के उपरांत भी उसका पीछा नहीं छोड़ते हैं अर्थात इस जन्म में आपने अपने अंदर जिस तरह के संस्कार विकसित कर लिये हैं ! वह संस्कारों का समूह मृत्यु के समय आपके बुद्धि के साथ ऊर्जा रूप में आपकी आत्मा में प्रवेश कर जाता है और जब आप नया शरीर धारण करते हैं ! तो आत्मा के साथ वह संस्कार भी आपकी बुद्धि के माध्यम से पुनः सक्रिय हो जाता है !

इसीलिये आपने पढ़ा या सुना होगा कि कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे जन्म में जाता है ! तो कुछ लोग जन्म से ही गंभीर होते हैं ! कुछ लोग झगड़ालू होते हैं ! कुछ अधिक बात करते हैं या कुछ कम बात करते हैं ! यह सारी आदतें उन्हें पूर्व जन्म से ही संस्कारों के रूप में प्राप्त होती हैं ! जिस स्थान पर उनका जन्म होता है ! वहां का परिवेश उसके संस्कारों के प्रभाव को कम या ज्यादा जरूर करता है लेकिन संस्कार में जो भी याददाश्त के रूप में हम ऊर्जा संग्रहित कर लेते हैं ! वह अनंत जीवन तक हमारे साथ चलती रहती है !

और हमें उन्हीं संस्कारों के अनुरूप कार्य करने के लिये प्रेरित करती रहती है ! जैसे कोई झूठ बोलता है तो उसके झूठ बोलने का जो संस्कार उसमें विकसित हो गया है ! वह जीवन भर तो उससे झूठ बुलवाता रहता है ! जो मृत्यु के उपरांत भी वह संस्कार उसकी बुद्धि के अंदर प्रवेश कर आत्मा के साथ नये शरीर में चला जाता है और जब वह व्यक्ति दूसरे स्थान पर जन्म ले लेता है तो वहां पर उसे यदि झूठ बोलने की आवश्यकता नहीं होती है फिर भी वह पूर्व जन्म के संचित संस्कारों के प्रभाव से निरंतर झूठ बोलना बचपन से शुरू कर देता है !

और जब वहां का परिवेश उसको झूठ बोलने से रोकता है ! तो धीरे-धीरे उसके झूठ बोलने का संस्कार कमजोर पड़ना शुरू हो जाता है और धीरे-धीरे वह संस्कार कमजोर होकर निष्क्रिय हो जाता है ! लेकिन नष्ट कभी नहीं होता है क्योंकि जैसे ही उस संस्कार को झूठ बोलने का परिवेश मिलता है वह पुनः झूठ बोलने का संस्कार जागृत हो जाता है और वह व्यक्ति पुनः निरंतर झूठ बोलना आरम्भ कर देता है !

इसीलिये विकृत संस्कारों को नियंत्रित के लिये ऋषियों-मुनियों, महात्माओं ने हमारे धर्म शास्त्रों में कठोर नियम बनाये हैं ! जिससे व्यक्ति वर्तमान जन्म में स्वयं तो सुखी रहे और उस व्यक्ति से जुड़े हुये सारे लोग भी वर्तमान में जन्म से सुखी रहें ! इसके उपरांत जब वह व्यक्ति शरीर छोड़कर किसी अन्य जन्म में जाता है तो वहां पर भी वह स्वयं और उसके आसपास के लोग सुखी रहे ! इसीलिये धर्म के पालन के लिये सदैव समाज में विभिन्न रूप में कठोर निर्देश जारी किये गये हैं !

क्योंकि मनुष्य के बुद्धि का मूल स्वभाव पतन की ओर जाना है ! अतः व्यक्ति की बुद्धि इस जन्म में जितना गिरकर अपने संस्कारों का निर्माण करती है ! अगले जन्म में वह उससे अधिक नीच कर्मों में लिप्त हो जाती है ! फिर उसके अगले जन्म में उससे भी अधिक नीच कर्मों में लिप्त हो जाती है ! उसी का परिणाम होता है कि किसी भी सभ्यता और संस्कृति का व्यक्ति के जन्म जन्मांतर तक नीच संस्कारों में लिप्त होने के कारण निरंतर प्रत्येक सभ्यता संस्कृति का पतन होता चला जाता है !

ऐसी स्थिति में जब कोई दिव्य पुरुष अवतरित होता है तो वह अपनी दिव्य ऊर्जा से आपके अंदर संग्रहित दूषित संस्कारों को जला कर नष्ट कर देता है या निष्क्रिय कर देता है ! जिससे समाज की पूरी की पूरी व्यवस्था बदल जाती है और समाज उत्थान की तरफ बढ़ने लगता है अर्थात कहने का तात्पर्य है कि संस्कारों की ऊर्जा सतत व अनंत चिरजीवी होती है ! इसी के प्रभाव से समाज का उत्थान या पतन व्यक्ति जन्म जन्मांतर तक करता रहता है ! इसलिये यदि आप समाज का उत्थान चाहते हैं तो अपने संस्कारों में उत्थान कीजिये ! अपने विचारों में उत्थान कीजिये और अपनी बुद्धि कौशल में उत्थान करिये तो समाज का उत्थान अपने आप हो जायेगा !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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