क्या वर्तमान में उपलब्ध श्रीमद्भागवत गीता सुरेश्वराचार्य जी द्वारा लिखी गयी थी : Yogesh Mishra

यह वह दौर था ! जब सनातन धर्म का पूरी तरह पतन हो चुका था ! वर्ण व्यवस्था पूरी नष्ट हो गई थी और समस्त सामाजिक मर्यादा खत्म हो चुकी थी ! इसका मूल कारण यह था कि गुरु परंपरा से विहीन, एक क्षत्रिय राजघराने का अनुभव और साधना विहीन व्यक्ति अचानक सन्यास के मार्ग पर निकल पड़ा था ! उसने एक बौद्ध वृक्ष के नीचे साधना की और कुछ ईश्वरी अनुभूतियों को प्राप्त करते ही बिना किसी परिवक्वता के उन ईश्वरी अनुभूतियों के प्रचार प्रसार के लिये एक संगठन बना दिया ! जिसका संचालन उसके ममेरे भाई आनंद किया करते थे ! जो कि स्वयं में एक साधना विहीन, मात्र संगठन संचालन विशेषज्ञ थे !

उसके दिशा निर्देश में स्थापित संगठन ने समाज और वर्ण की सभी मर्यादाओं को तोड़ते हुये हर वर्ग को भगवा धारण करने, वैराग्य लेकर बौद्ध पध्यती से ध्यान साधना करने का अधिकार प्रदान कर दिया ! उसका परिणाम यह हुआ कि समाज का बहुत बड़ा वर्ग जो अल्प ज्ञान के कारण सनातन धर्म के मर्यादाओं को नहीं मानता था ! वह उस स्वयंभू संत के संगठन के साथ जुड़ गया ! और कालांतर में उस स्वयंभू संत की विचारधारा का प्रचार प्रसार धीरे-धीरे पूरे आर्यावर्त अर्थात वर्तमान के एशिया में हुआ और सनातन धर्म का विलोप होने लगा !

जिससे समाज के आम जनमानस ने सनातन धर्म की मर्यादाओं का उल्लंघन करना शुरू कर दिया और सनातन धर्म का लोप होने लगा ! लगभग 500 वर्ष की अवधि में जब सनातन धर्म इस पृथ्वी पर लगभग पूरी तरह विलुप्त हो गया था ! तब एक दिव्य शक्ति ने पृथ्वी पर शरीर धारण किया ! जिन्हें हम आदि गुरु शंकराचार्य के रूप में जानते हैं !

उन्होंने अमर्यादित बौद्ध धर्म को भारत की धरा से उखाड़ फेंकने के लिये, भारत के चार कोने में चार पीठ की स्थापना की और आदिवासी नागा संतों के समूह का अखाड़े के रूप में निर्माण करके इस चार पीठ के मध्य से बौद्ध धर्म की ओट में चलने वाले अय्याशी के अड्डे बौद्ध विहारों को उखाड़ फेंका !

लेकिन उस समय सबसे बड़ी समस्या यह खड़ी हुई कि जब सनातन धर्म की उपासना पद्धति का पूरी तरह विलोप हो चुका है ! तो जो लोग पूर्व में बौद्ध धर्म की शरण में चले गये थे ! वह वापस जब सनातन जीवन शैली की ओर मुड़े तो उनकी पूजा उपासना पद्धति क्या होनी चाहिये !

इसको लेकर आदि गुरु शंकराचार्य ने एक ग्रन्थ की रचना की ! जिसमें समाज के नये वर्गीकृत वर्ण व्यवस्था के आधार पर राजधर्म का पालन करने वाले राजाओं के लिये राज योग, बुद्धिजीवी वर्ग के लिये ज्ञान योग और श्रमिक वर्ग के लिये कर्म योग की व्यवस्था की गई ! इसके बाद समाज का वह वर्ग जो न तो किसी राजघराने से संपर्क रखता था, न ही वह बुद्धिजीवी था और न ही शारीरिक रूप से इतना सक्षम था कि वह श्रम आदि का कार्य कर सके ! उस वर्ग के लिये भक्ति योग का मार्ग दिखलाया था !

यह संपूर्ण ग्रंथ मात्र बौद्ध धर्म के उपरांत सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने के लिये आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित ग्रंथ था ! किंतु कालांतर में जब आदि गुरु शंकराचार्य का शास्त्रार्थ मंडन मिश्र से हुआ और मंडन मिश्र उस शास्त्रार्थ में पराजित हो गये ! तब मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारती ने अर्धांगिनी होने के नाते आदि गुरु शंकराचार्य से शास्त्रार्थ में गृहस्थ दांपत्य जीवन संबंधी शास्त्र सम्मत प्रश्न किये ! तब शंकराचार्य उन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाये ! उन्होंने कुछ समय मांगा और परकाया प्रवेश के द्वारा एक मृत राजा अमरुक के शरीर में उसकी मृत्यु के उपरांत अपनी आत्मा के साथ सूक्ष्म रूप से प्रवेश कर गये ! उन्होंने जब वहां दांपत्य जीवन के सभी सिद्धांतों को समझ लिया तो पुनः अपने शरीर में वापस आकर उन्होंने मंडन मिश्र की पत्नी के प्रश्नों का उत्तर दिया ! तब पति पत्नी दोनों ही ने आदि गुरु शंकराचार्य को अपना गुरु मानते हुये अपना सम्पूर्ण जीवन संपूर्ण समर्पण के साथ उनके उद्देश्य में लगा दिया !

किन्तु दुर्भाग्य यह रहा कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 32 वर्ष की आयु में केदारनाथ, पाल साम्राज्य में अपना शरीर छोड़ दिया ! तब मंडन मिश्र जो कि आदि गुरु शंकराचार्य के शिष्य हो जाने के उपरांत एवं सामाजिक जीवन जीने के कारण जिनका नया नामकरण आदि गुरु शंकराचार्य ने सुरेश्वराचार्य कर दिया था ! उन्होंने आदि गुरु शंकराचार्य के सामाजिक सिद्धांत के ग्रन्थ को भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद के रूप में पुनः व्यवस्थित रूप में लिखित तथा स्थापित किया ! उसी ग्रन्थ को आज वर्तमान में हम लोग “श्रीमद्भागवत गीता” के रूप में जानते हैं !

महाभारत में वर्णित श्रीमद्भागवत गीता में महाभारत के अनुसार ही कुल 745 श्लोक है ! जबकि वर्तमान में जो श्रीमद्भगवद्गीता प्रचलन में है ! उस गीता के अंदर मात्र 700 श्लोक हैं ! श्रीमद्भगवद्गीता में 18 अध्याय हैं ! जिसमें 700 श्लोक हैं ! जिनमे से 574 श्रीकृष्ण द्वारा 84 अर्जुन द्वारा 41 संजय द्वारा और 1 धृतराष्ट्र द्वारा कहे गये हैं !

इसके अलावा महाभारत के भीष्म पर्व के अनुसार जो श्रीमद्भागवत गीता में 745 श्लोक हैं ! जिसमें धृतराष्ट्र द्वारा 1, संजय द्वारा 67, अर्जुन द्वारा 57 और भगवान श्री कृष्ण द्वारा 620 श्लोक कहे गये हैं ! यहाँ श्लोकों का क्रम और संख्या वर्तमान में उपलब्ध श्रीमद्भागवत गीता के अंदर उपलब्ध श्लोकों का क्रम और संख्या से एकदम अलग है !

इस पर बहुत शोध करने के बाद यह ज्ञात हुआ कि वर्तमान में 745 श्लोकों वाली जो श्रीमद्भगवद्गीता है वहीँ वास्तव में महाभारत का अंश है ! वह विश्व के 17 अलग-अलग संग्रहालयों में पांडुलिपि के तौर पर संग्रहित है और जिस गीता को हम वर्तमान में श्रीमद्भगवद्गीता मानते हुये उसका पाठ करते हैं ! जिसमें मात्र 700 श्लोक हैं ! वह गीता उस 745 श्लोकों वाली गीता से एकदम अलग है ! वर्तमान में उपलब्ध श्रीमद्भगवद्गीता में साधना पद्धति का वर्णन है और महाभारत के अंश के रूप में जो श्रीमद्भागवत गीता है ! उसमें सामाजिक संरचना की रक्षा धर्म द्वारा क्यों और कैसे की जानी चाहिये ! इसका वर्णन है !

अतः बहुत आवश्यक है कि वर्तमान में जिस श्रीमद्भगवद्गीता का हम पाठ करते हैं ! वह सनातन धर्म के पुनः स्थापना के लिये आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित उपासना सिद्धांतों का समूह है ! जिसका लेखन उनके प्रथम शिष्य मंडन मिश्र उर्फ़ सुरेश्वराचार्य ने किया था ! जो हमारे तथा समाज में ज्ञान और उपासना के लिये परम आवश्यक है ! लेकिन सामाजिक संरचना में धर्म की भूमिका और उसकी रक्षा कैसे की जाये आदि का ज्ञान यदि हमें प्राप्त करना है तो हमें वास्तव में महाभारत के अंदर वर्णित श्रीमद्भागवत गीता के उन 745 लोगों का अध्ययन करना पड़ेगा ! जो आज विभिन्न संग्रहालयों में मात्र पांडुलिपि के रूप में उपलब्ध है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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