हम सभी जानते हैं कि यह संसार सामान्यतया तीन आयाम में चलता है ! लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई इसके अलावा एक आयाम और है जो बहुत महत्वपूर्ण होता है ! उसको कहते हैं समय अर्थात काल ! यह चौथा आयाम इतना शक्तिशाली होता है कि यह अकेले ही पिछले तीनों आयामों को नष्ट कर सकता है ! पर खुद कभी नष्ट नहीं होता है !
अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि संसार में आज जो भी चीज निर्मित है अर्थात जिस किसी भी वस्तु की कोई लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई है ! वह काल के आधीन ही निर्मित हुई है और काल के प्रभाव से एक न एक दिन नष्ट भी हो जायेगी ! लेकिन काल स्वयं कभी नष्ट नहीं होता है !
काल अविभाज्य है, अनंत है, सृष्टि के आरंभ के पहले ही नहीं था और सृष्टि के खत्म होने के बाद भी बना रहेगा ! इसे कभी कोई नष्ट नहीं कर सकता है ! ईश्वर भी नहीं ! इसकी आयु कभी पूर्ण नहीं होती है ! अर्थात यह कभी मरता नहीं है !
पर सनातन शिव साधकों ने इस काल को नियंत्रित अवश्य कर लिया था अर्थात वह काल जो त्रिआयामी संसार को नष्ट करने की अकेले क्षमता रखता है ! उसे शिव तंत्र पद्धति से नियंत्रित किया जा सकता है ! इसलिये शिव साधकों ने शिव को ही महाकाल कहा है !
महामृत्युंजय आदि मंत्र इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ! जैसे कि किसी भी व्यक्ति के मृत्यु का समय यदि निश्चित है तो यह माना जाना चाहिये कि उस व्यक्ति के शरीर का त्रिआयामी समय निर्धारित है ! समय आने पर उस व्यक्ति के तीनों आयाम काल के गाल में समा जायेंगे और वह व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होकर जलकर या गल कर नष्ट हो जायेगा !
किंतु यदि महामृत्युंजय मंत्र के द्वारा उसके जीवन काल की अवधि बढ़ा दी जाये तो उस व्यक्ति का त्रिआयामी स्वरूप अधिक समय तक इस पृथ्वी पर रह सकेगा ! जैसा मार्कंडेय ऋषि के साथ हुआ और भी इतिहास में धर्म ग्रंथों में सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं !
यह तो हुई चौथे आयाम की बात अब हम बात करते हैं दूसरी दुनिया की ! दुनिया को मुख्य रूप से दो हिस्सों में बंटी है ! एक दृश्य अर्थात रोज मर्रे की सामान्य दुनिया और दूसरी वह दुनिया जो हमारे आस पास तो होती है और मुझे अपने होने का एहसास भी कराती है ! लेकिन हमें दिखती नहीं है ! बल्कि उस दूसरी दुनिया को समझने के लिये तंत्र, साधना, एकाग्रता, दर्शन और तटस्थता की जरूरत होती है ! इसे हम दूसरी दुनियां कहते हैं !
अर्थात दूसरे सरल शब्दों में कहा जाये कि सामान्य संसार में एक व्यवस्था कार्य और कारण के अनुसार चलती है और दूसरी व्यवस्था कार्य कारण से परे तंत्र, मंत्र, यंत्र, जंत्र की शक्तियों से चलती है !
मुझे अभी तक कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, खुलकर या छिपकर, ईश्वर की ऊर्जाओं में आस्था न रखता हो अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि इस धरती पर बड़े से बड़ा आदमी भी ! दूसरी दुनिया की ऊर्जाओं में विश्वास रखता है ! भले ही वह इसे समाज में खुले रूप से स्वीकार करे या न करे ! फिर वह ऊर्जा चाहे देव उर्जा हो या पैशाची उर्जा !
आज तक इस पृथ्वी पर जितने भी महापुरुष हुये हैं ! उन सभी ने कर्म और पुरुषार्थ के सिद्धांत को जानने के साथ-साथ उस दूसरी दुनिया के कार्य पद्धतियों को भी समझा है, जाना है और अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये प्रयोग भी किया है ! फिर वह व्यक्ति चाहे भगवान राम हों, रावण, कृष्ण, कर्ण, अर्जुन, नेपोलियन बोनापार्ट हो या फिर एडोल्फ हिटलर !
इसका स्पष्ट तात्पर्य यह है कि व्यक्ति जो चौथे आयाम और दूसरी दुनिया के रहस्य को नहीं जानता है ! वह व्यक्ति जीवन भर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये बस सिर्फ इधर उधर भटकता रहता है ! इसीलिये व्यक्ति को जीवन में एक योग्य गुरु की आवश्यकता होती है ! जो उसे समय-समय पर सही मार्गदर्शन दे सके ! जिससे वह चौथे आयाम और दूसरी दुनिया की शक्तियों का सदुपयोग कर सके !!