मंत्र अनेक प्रकार के होते हैं ! वैदिक, तंत्रोक्त, पौराणिक, लौकिक, अलौकिक मंत्र आदि आदि ! इसी तरह देव, दानव, यक्ष, किन्नर, सुर, असुर, रक्ष, अरक्ष, भक्ष, दैत्य, दानव, पिशाच आदि हर जीवन शैली के भी मंत्र अलग-अलग होते हैं !
इन सभी पद्धति और संस्कृति में भी मनुष्य के स्वभाव, संस्कार, प्रवृत्ति, आवृत्ति, पुनरावृति, आहार, विहार, विचार, के अनुसार मंत्र अलग-अलग होते हैं !
इसी तरह तत्व और गुणों के अनुसार भी कामना के अनुरूप अलग-अलग उद्देश्य की प्राप्ति के लिये भी मंत्र अलग-अलग होते हैं ! जैसे सतोगुणी, रजोगुणी, तमोगुणी, पुत्र प्राप्ति, धन प्राप्ति, यश प्राप्ति, सफलता प्राप्ति, आदि आदि !
अर्थात कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य के जितने प्रकार के लोभ हैं ! उतने प्रकार के मंत्र उसने अपनी आवश्यकता और जीवन शैली के अनुरूप निर्मित कर लिये ! या दूसरे शब्दों में हर तरह के कामना की पूर्ति के लिये लाखों तरह के मंत्रों की उत्पत्ति मनुष्य ने की है !
जो हर व्यक्ति के स्वभाव, संस्कार, साधना के स्तर के आधार पर अलग-अलग होते हैं ! इसीलिए एक व्यक्ति को जिस मंत्र से लाभ होता है, कोई जरुरी नहीं कि दूसरे व्यक्ति को भी उसी मंत्र से वैसा ही लाभ होगा !
इसीलिए मंत्र दीक्षा किसी विशेषज्ञ से लेना चाहिये ! लेकिन भारत का दुर्भाग्य है कि इतने संपन्न ज्ञान की धरोहर होने के बाद भी व्यक्ति मात्र भगवा रंग, त्रिपुंड, तिलक या रुद्राक्ष की माला देख कर किसी से भी मंत्र लेने पहुंच जाता है !
पर व्यक्ति ऐसा करता क्यों है ? क्योंकि वह लोभी है ! वह सदैव अपने प्रारब्ध से अलग हटकर कुछ पाना चाहता है !
जिसे दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि वह ईश्वर द्वारा निर्मित कार्यकारणी की व्यवस्था को अपने लोभ में धोखा देना चाहता है !
और मजे की बात यह है कि व्यक्ति ईश्वर के कार्य कारण की व्यवस्था को धोखा, ईश्वर की मदद से ही देना चाहता है !
ऐसे मंत्र जपने की कामना रखने वाले व्यक्ति में अपने पूर्व के किये गये अपराधों को लेकर कोई प्रायश्चित नहीं होता है ! जिसके कारण उसका प्रारब्ध दूषित हुआ है !
बल्कि वह व्यक्ति मंत्र की शक्ति से अपने पूर्व में किये गये अपराधों से उत्पन्न प्रारब्ध की नकारात्मक ऊर्जा को ईश्वर को धोखा देकर नष्ट कर देना चाहता है ! जोकि ईश्वर की सत्ता और व्यवस्था को चुनौती देने वाला दुष्कर कार्य है !
जिस दुष्साहस के परिणाम भी व्यक्ति को जन्म जन्मांतर तक भुगतने पड़ते हैं ! इसीलिए प्रारब्ध के नकारात्मक अंश को जो व्यक्ति वर्तमान में अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये मंत्र की शक्ति से नष्ट कर देना चाहता है, वह निश्चित रूप से उस प्रारब्ध के नकारात्मक अंश को भोगने के लिए बार-बार जन्म लेता रहता है !
व्यक्ति संसार में रहकर धन और पुरुषार्थ की सफलता की कामना से मंत्र जाप करता है ! वही व्यक्ति जब सन्यासी हो जाता है, तो धन के स्थान पर ध्यान और पुरुषार्थ के स्थान पर परमात्मा को प्राप्त करने की कामना से मंत्र जप करने लगता है !
लेकिन वह व्यक्ति यह भूल जाता है कि जहां भी कामना है, वह लोभ का ही बदला हुआ स्वरूप है ! इसीलिए मैं कहता हूं किसी भी कामना से किया गया कोई भी मंत्र जप, व्यक्ति के लोभी होने की सूचना देता है !!