जिस तरह श्रीमद्भागवत गीता के अध्ययन के बिना कोई व्यक्ति आध्यात्मिक नहीं हो सकता हैं ! ठीक उसी तरह हिटलर द्वारा लिखी गई पुस्तक “मेरा संघर्ष” के अध्ययन के बिना कोई व्यक्ति सफल राजनीतिज्ञ नहीं बन सकता हैं !
लेकिन यह दोनों ही ग्रंथ आरंभिक अवस्था के मार्गदर्शक ग्रंथ हैं ! इनमें से किसी में भी विशेषज्ञता हासिल करने के लिये व्यक्ति को वर्तमान देश, काल, परिस्थिति, सामाजिक मनोविज्ञान, तकनीकी, संसाधन और आर्थिक क्षमता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है !
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूरे विश्व की तकनीक और विचारधारा दोनों में बहुत परिवर्तन हुआ है ! उसका परिणाम यह हैं कि आज के संदर्भ में हिटलर द्वारा लिखी गई पुस्तक “मेरा संघर्ष” व्यक्ति को आरंभिक राजनीतिज्ञ तो बना सकता है लेकिन मात्र इस पुस्तक में वर्णित सिद्धांत किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को वर्तमान समय में इतना विकसित नहीं कर सकते है कि वह वर्तमान परिवेश की राजनीति में लंबे समय तक टिका रहे और आने वाले समय में अपने व्यक्तित्व की छाप विश्व पर छोड़ सके !
संयोग यह हैं कि हमारे देश में बहुत से सफल राजनीतिज्ञों ने हिटलर के “मेरा संघर्ष” को पढ़ा और उसके दिखाये हुये मार्ग पर चलने का बहुत प्रयास भी किया है ! जो इन राजनीतिज्ञों की कार्यशैली और व्यक्तित्व से पता चलता है ! लेकिन आज के इस जागरूक समाज में हिटलर के वह सिद्धांत अब पूरी तरह से निष्प्रभावी और अनुपयोगी सिद्ध हो गये हैं !
क्योंकि आज की राजनीति किसी देश विशेष की आंतरिक स्थिति पर निर्भर नहीं करती हैं बल्कि हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े देश की राजनीति आज पूरे के पूरे विश्व को प्रभावित करती है ! दूसरी तरफ विश्व सत्ता जो हिटलर के समय में अस्तित्व में नहीं थी ! वह भी आज विश्व की राजनीति में इतना प्रभावी है कि उसके दिशानिर्देश के बाहर जाकर किसी भी देश के राजनीतिज्ञ के द्वारा उस देश की सत्ता को चलाना असंभव सा है !
आज लगभग हर देश में विश्व सत्ता के प्रतिनिधि के रूप में 100 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय संगठन कार्य कर रहे हैं ! जिनके प्रतिनिधि के रूप में विश्व के लगभग हर देश में लाखों की तादाद में एन.जी.ओ. के रूप में समाज में अपनी सक्रिय भागीदारी बनाये हुये हैं ! यह सभी एन.जी.ओ. विश्व सत्ता के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये निरंतर कार्य करती हैं ! जिनके संसाधनों और खर्चों की व्यवस्था विश्व सत्ता के अनुषांगिक संगठन पूरी करते हैं !
इस वजह से आज कोई भी चीज विश्व सत्ता के राजनीतिज्ञों की निगाह से छिपी हुई नहीं है ! यह संगठन इतने प्रभावी हैं कि किसी भी देश के राजनीतिज्ञ की यह स्थिति नहीं है कि वह अपने देश में इन संगठनों के हस्तक्षेप को रोक सके ! गिने-चुने कुछ देश जैसे उत्तर कोरिया, चीन, ईरान जैसे देश हैं ! जो इस विश्व सत्ता की निगाह से बचने का असफल प्रयास करते हैं !
ऐसी स्थिति में भारत ही नहीं विश्व के किसी भी देश की यह स्थिति नहीं हैं कि वह कोई ऐसी नीति का निर्धारण कर सके ! जिससे विश्व सत्ता का नियंत्रण उस देश के ऊपर कम होता हो ! बल्कि दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि आज विश्व की महाशक्ति कहे जाने वाले देश भी इसी विश्व सत्ता के मार्गदर्शन में अपने देश को संचालित कर रहे हैं !
अतः स्पष्ट हैं कि जब किसी भी देश की राजनीति में विश्व सत्ता का इतना स्पष्ट हस्तक्षेप हो ! तो वहां पर हिटलर द्वारा दिखाया गया रास्ता कोई भी राजनीतिज्ञ अपने देश के विकास और सुरक्षा के लिये कैसे अपना सकता है !
शायद यही वजह रही है कि विश्व के जिन-जिन राजनीतिज्ञों ने अपने देश के विकास और सुरक्षा के लिये हिटलर के मार्ग को अपनाया है ! उसे किसी न किसी अन्य राजनैतिक बहाने से विश्व सत्ता के नुमाइंदों ने खत्म कर दिया है !
वह चाहे उस राजनीतिज्ञ की व्यक्तिगत हत्या की गयी हो या उसके व्यक्तित्व की हत्या की गयी हो या फिर उस राष्ट्र की ही हत्या कर दी गयी हो ! लेकिन आज तकनीक, मीडिया, एन.जी.ओ. आदि के रहते विश्व सत्ता के प्रतिनिधियों के चलते किसी भी राष्ट्र को अपने देश चलाने का संप्रभु अधिकार नहीं है !
इसलिये मेरी निगाह में आज की राजनीति में हिटलर का दर्शन पूरी तरह से अनुपयोगी और अव्यावहारिक है ! क्योंकि विश्व सत्ता किसी भी राष्ट्र को इतना शक्तिशाली नहीं बनने देगी कि वह राष्ट्र कल के दिन पुनः विश्व सत्ता के लिये चुनौती बन सके ! इसलिये विश्व सत्ता कभी नहीं चाहती है कि कोई राष्ट्र हिटलर के राजनैतिक दर्शन पर चलकर शक्तिशाली बने !