मध्य युग में पूरे यूरोप पर राज करने वाला रोम ( इटली ) नष्ट होने के कगार पर आ गया है ! मध्य पूर्व को अपने कदमो से रौंदने वाला ओस्मानिया साम्राज्य (ईरान,सऊदी, टर्की) अब अपने घुटनो पर है ! जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था ! उस ब्रिटिश साम्राज्य के वारिस लन्दन के बर्मिंघम पैलेस में कैद हैं !
जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे ! उस रूस के बॉर्डर सील हैं ! जिनके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते हैं ! जो पूरी दुनिया के अघोषित चौधरी अमेरिका आज मौत की जंग लड़ रहा है ! जो कभी आने वाले समय में सब को निगल जाना चाहता था ! वह चीन जो पूरी दुनियां में व्यापार करता था ! वह आज दुनियां से मुँह छिपाता फिर रहा है और सब की गालियां खा रहा है !
एक जरा से परजीवी ने विश्व के महाशक्तियों को घुटनों के बल ला दिया ! न एटम बम काम आ रहे हैं, न परट्रो रिफाइनारी ! मानव का सारा विकास एक छोटे से जीवाणु के सामने व्यर्थ है ! सब की हेकड़ी निकल गयी है !
विकास के नाम पर पर्यावरण का सर्वनाश करके बस इतना ही कमाया था ! इतने वर्षों में, कि एक छोटे से विषाणु ने पूरे विश्व को घरो में कैद कर दिया !
अब सब देश आशा भरी नज़रो से देख रहे हैं हमारे देश की तरफ ! हमारे संस्कृति की तरफ ! उस भारत की ओर जिसका सदियों अपमान करते रहे हैं, जिसे अहंकार से रोंदते रहे हैं, लूटते रहे हैं बस ! एक मामूली से जीवाणु ने आपको आपकी औकात बता दी !
भारत जानता है कि युद्ध अभी शुरू हुआ है, जैसे जैसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी, ग्लेशियरो की बर्फ पिघलेगी, और आज़ाद होंगे लाखो वर्षो से बर्फ की चादर में कैद दानवीय विषाणु ! जिनका न आपको परिचय है और न लड़ने की कोई तैयारी, यह तो मात्र कोरोना एक झांकी है ! चेतावनी है, उस आने वाली विपदा की, जिसे आपने स्वयं अपने विकास के अहंकार में जन्म दिया है ! मेनचेस्टर की औद्योगिक क्रांति और हारवर्ड की इकोनॉमिक्स का संसार आज अपने अंतिम मुहाने पर खड़ा है !
क्या आप जानते हैं, इस आपदा से लड़ने का तरीका कहाँ छुपा है ? तक्षशिला के खंडहरो में, नालंदा की राख में, शारदा पीठ के अवशेषों में, मार्तण्डय के पत्थरो में जिन्हें कभी आपके पूर्वजों ने सत्ता के मद में नष्ट कर दिया था !
इस तरह के सूक्ष्म एवं परजीवियों से मनुष्य का युद्ध नया नहीं है ! यह तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चला आ रहा है और सदैव चलता रहेगा ! इस से शास्त्रों में राक्षस या असुर कहा गया है ! इनसे लड़ने के लिये हमने हर हथियार आज से हजारों साल पहले खोज लिये थे ! मगर आपके अहंकार, लालच और स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठ धर्मिता ने सब कुछ नष्ट कर दिया है ! कहाँ है आपका एलोपैथी विज्ञान !
हमारे विश्व बंधुत्व की बात का आपने अपमान किया है ! जिस बाबर का मन आया वही हांथ में तलवार लेकर भारत चला आया ! रौंदने, लूटने, मारने, जीव में शिव को देखने वाले समाज को नष्ट करने के लिये फिर कंपनी बनाकर आप जैसे लुटेरे आ गये और उन्होंने हमारी सभ्यता संस्कृति को नष्ट कर दिया ! अपनी पैशाची सभ्यता संस्कृति, शिक्षा पद्धति, शासन व्यवस्था को हमारे ऊपर जबरदस्ती थोप दिया और हमारे ज्ञान और धन से जो तत्कालीन विकास किया उसे औद्योगिक क्रांति का नाम दे दिया !
कोई विश्व विजेता बनने के लिये तक्ष शिला को तोड़ कर चला गया ! तो कोई सोने की चमक में अँधा होकर सोमनाथ लूट कर ले गया ! कोई किसी को खुद से नीचा दिखाने के लिये नालंदा की किताबो को जला गया ! तो कोई सनातन ज्ञान की शारदा पीठ के टुकड़े-टुकड़े कर गया ! किसी ने अपने झंडे को ऊंचा दिखाने के लिये विश्व कल्याण का केंद्र बने गुरुकुल परंपरा को ही नष्ट कर दिया ! तो किसी ने अपने व्यवसाय को चलने के लिये भारत के सनातन आयुर्वेद की जगह एलोपैथी को कानून बना कर लागू करावा लिया !
आज वही लोग करुण भरी निगाहों से भारत को देख रहे हैं ! अपनी जीवन रक्षा के लिये ! किन्तु हमने आज भी आपको अपना शत्रु नहीं माना है ! उसी पराजित, अपमानित, पद दलित, भारत भूमि की ओर, जिसने पुनः अभी-अभी अपके घावों को भरने के लिये प्रयास आरम्भ कर दिया है !
क्योंकि आप जैसे दानवों से हमारे वंशज सदियों से लड़ते चले आ रहे हैं ! हमें आपकी औकात पता है ! ऐसे ही नहीं हम “वसुधैव कुटुंबकम” कहते हैं !
किन्तु हम जानते हैं कि आपके जीवन रक्षा का मार्ग उन्ही नष्ट हुये हवन कुंडो से निकलेगा ! जिन्हे कभी आपने अपने पैरों की ठोकर से तोड़ा था ! आपको उसी नीम और पीपल की छाँव में आना होगा ! जिसके नीचे आपने कभी सत्ता के अहंकार में हमारे पूर्वजों को उल्टा लटका कर जिन्दा भून दिया था ! आपको उसी गाय की महिमा को स्वीकार करना होगा ! जिसका आप मांस खाते हो ! उन्ही मंदिरो में जा के घंटे की नाद करनी होगी ! जिनको कभी आपने तोड़ा था ! उन्ही वेदों को पढ़ना होगा ! जिनका कभी अपने उपहास किया था ! उसी चन्दन और तुलसी की माला को धारण करना होगा ! जिस पर आपने कभी प्रतिबन्ध लगाया था !
यही प्रकृति का न्याय है ! इसको जितना जल्दी स्वीकार लें ! आपकी जीवन रक्षा उतनी शीघ्र होगी ! और आज नहीं तो कल आपको इसे स्वीकारना करना ही होगा !
इसलिये बिना विलम्ब किये शीध्र अति शीध्र सनातन ज्ञान की शरण में आइये वही सबका कल्याण है !