व्यक्ति सुख, संतुष्टि और आनंद के लिए पूरे जीवन इधर-उधर भटकता रहता है ! कोई धन कमाने में आनंद ढूंढता है, तो कोई शारीरिक वासना की पूर्ति में ! कोई व्यक्ति यश में आनंद ढूंढता है तो कोई भक्ति में !
जबकि आनंद किसी को कभी कहीं नहीं मिलता है और इंसान पूरे जीवन भटक-भटक कर शरीर छोड़कर चला जाता है !
अब प्रश्न यह है कि क्या आनंद कहीं नहीं है या हमारे आनंद को ढूंढने का तरीका गलत है ?
इसका उत्तर सीधा सा है कि आनंद प्रकृति का अंश है, इसलिये यह अवश्य रूप से है ! बस हमारे ढूंढने का तरीका गलत है !
आपका आनंद आप से अलग कहीं नहीं है ! पर हम वास्तव में पूरे जीवन अपने आनंद की जगह दूसरे के आनंद को ढूंढते रहते हैं और जब वह हमें मिल जाता है तो क्योंकि वह आनंद दूसरे का होता है इसलिये हमें उस आनंद के मिलने पर संतुष्टि नहीं होती है !
इसलिए अपने आनंद को कहां ढूंढ़े यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है ?
आपका आनंद आपके जीवनी ऊर्जा के केंद्र में जन्म से ही स्थित है ! अपने केंद्र को खोजे बिना, यहां किसी प्रकार की संतुष्टि संभव नहीं है ! यह आनंद बहुत ही सहज खोजा जा सकता है ! बस खोजने का तरीका सही होना चाहिये !
आनंद के खोज की प्रक्रिया बस सिर्फ अपने केंद्र को पा कर रुकती है ! जो पहले से आप में ही विद्यमान है ! अपने आनंद के केंद्र में आ जाने से सारी वासनाएं विदा हो जाती है !
और तुम पूरी तरह से और हमेशा के लिए संतुष्ट हो जाते हो ! यह एक क्षणिक संतुष्टि नहीं होती ! यह संतोष है, परम संतोष ! इसके आगे कुछ भी नहीं है ! यह अपने भीतर अपने घर आ जाना है ! अब आनंद के लिये कहीं भटकने की जरुरत नहीं है !
जीवन के सभी वादे झूठे और अपूर्ण हैं ! इनसे कभी कुछ नहीं मिलता है ! सभी संसार के रिश्ते भ्रम पैदा करते हैं कि सब कुछ ठीक हो जायेगा ! पर यह मात्र एक सांत्वना है, आनंद नहीं है !
तुम्हारा सारा जीवन आनंदित हो इसके लिये तुम्हें कहीं भटकने की जरुरत नहीं है बल्कि अपने ऊर्जा केंद्र को पहचानने और उसे में स्थित हो जाओ क्योंकि आपका आनंद आपका वहीँ इंतजार कर रहा है ! अन्यत्र कहीं नहीं !!