सदैव से राजाओं के पास मनोरंजन और भोग के लिये तीन तरह की स्त्रियाँ होती थी ! एक रानियों, दूसरी रखैलों और तीसरी दासियों ! जिनके लिए महल के अंदर ही एक अलग दुनिया बसा दी जाती थी !
भारतीय भाषा में इसे रनिवास कहा जाता था और अरबी भाषा में इसे रंग महल कहते थे ! यह समाज के लिये निषिद्ध क्षेत्र होता था ! इसकी सुरक्षा के लिये जबरदस्त व्यवस्था की जाती थी !
पृथ्वीराज चौहान जैसे राजा के पास 13 रानियां थीं ! पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पास 16 हजार 108 रानियां थीं ! इसी तरह इतिहास में अनेकों ऐसे राजा मिलेंगे, जिनके पत्नियों की संख्या दर्जनों या सैकड़ों में थी !
किंतु अकबर के समय से रनिवास के स्वरूप में परिवर्तन हो गया ! अब इसमें एक नाम और जोड़ दिया गया जिसे नाम दिया गया “हरम” ! अर्थात औरतों का वह समूह जो पैसे के लिये अपने आप को स्वेच्छा से अकबर के हरम में मनोरंजन के लिए पेश करती थी !
वैसे तो अबुल फज़ल के मुताबिक, अकबर के हरम में पांच हज़ार से ज़्यादा महिलाएं थीं ! इन महिलाओं को एक चारदीवारी के भीतर ऐसे बसाया गया था कि किसी को भी किसी भी तरह की कोई दिक्कत न हो !
पूरा हरम कई सेक्टर में बंटा था ! हर सेक्टर में थे अलग-अलग कक्ष ! रानियों के रहने की अलग जगह ! रखैलों की अलग जगह ! शहंशाह के चहेतियों की अलग जगह ! जिस औरतों को भोग के बाद यादों से मिटा दिया गया उनके लिए भी अलग जगह थी !
हरम के अंदर बाग-बागीचे, फव्वारे, चमकदार पर्दे, शमादार दीवारें हुआ करती थीं ! बागों में झाड़ियां न उगें, फव्वारे समय से चलें, साफ़-सफाई रहे और समय से शमा जलती रहें ! इन सब के लिये सैकड़ों दासियां थीं ! जो सामान्य नागरिकों को उपलब्ध नहीं थे !
इन दासियों से काम कराने के लिए दर्जनों महिला अफ़सर और उन अफ़सरों पर भी नज़र रखने के लिए एक बड़ी अफ़सर हुआ करती थी !
लेकिन इसमें सबसे अहम सुरक्षा व्यवस्था थी ! जो जगह मुग़लों की नज़र में पवित्र और छुपाने वाली थी, उसकी सुरक्षा के इंतज़ाम भी उसी तरह के किये गये थे ! हिंदुस्तान के बाहर से मजबूत कद-काठी की महिलाएं हरम के भीतर तैनात की जातीं थीं ! इनको न देसी बोली आती और न इनमें कोई मेल-मिलाप वाली भावना होती थी !
अब इतने बड़े हरम को इतने व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए चाहिए बेशुमार दौलत खर्च की जाती थी ! मुग़ल बादशाह के दरबार का रेकॉर्ड कहता है, कि इन महिलायों की तनख्वाह 1028 से लेकर 1610 दीनार तक महीना हुआ करती थी !
उस जमाने में एक तोला सोना मात्र 10 दीनार का था ! अर्थात एक बड़ी महिला अफ़सर हर महीने लगभग एक किलो 870 ग्राम सोना खरीद सकती थी ! लेकिन इनकी नौकरी में लापरवाही की कोई गुंजाइश नहीं होती थी हर छोटी बड़ी गलती की सजा एक होती थी वह है मौत !
काम सही से किया और राजा-रानी खुश हो गये, तो नज़राना या बोनस आदि की कोई सीमा नहीं थी ! कहते हैं कि रानियां एक बार जो कपड़े पहन लेतीं थीं, उसे दोबारा छूती नहीं थीं ! यह कपड़े दासियों में बांट दिये जाते थे ! अच्छे खाने-पीने का इंतज़ाम था ! कभी-कभार भेंट में गहने आदि भी मिल जाते थे !
हरम में काम करने वाली महिलाओं के पास इतना अधिकार था कि वे शहंशाह को छोड़कर किसी को भी देहरी पर रोक दें ! दरअसल, हरम का दस्तूर था कि उसके भीतर बेरोक-टोक केवल मुग़ल बादशाह ही घूम सकते थे ! बाहर के किसी पुरुष को अंदर झांकने की भी इजाज़त नहीं थी ! यहां तक कि शाही फरमान लेकर आने वाला भी दरवाजे पर ठिठक जाता ! वहां से आगे फरमान ले जाना काम था दासियों का !
इतनी मोटी तनख्वाह के बाद भी अगर किसी को अतिरिक्त खर्च के लिये अडवांस की ज़रूरत पड़ गई, तो इच्छा भी पूरी की जाती थी ! बस उसके लिये पूरी फाइल घूमती थी और कोष से रकम जारी की जाती थी !
इसी पैसे के लालच में बहुत से माता-पिता स्वेच्छा से अपनी सुंदर दिखने वाली बेटियों को राजाओं के हरम में भेज दिया करते थे ! जैसे आजकल पैसा कमाने के लिए माता-पिता स्वेच्छा से अपनी लड़कियों को परदेस भेज देते हैं या जो होशियार लड़कियां होती थी या जो देखने में थोड़ा सुंदर थी ! वह स्वेच्छा से राजा की हरम में चली जाती थी !
इसके अतिरिक्त यदि किसी विशेष लड़की के सुंदरता की चर्चा राजा तक पहुंच जाती थी तो राजा बलपूर्वक उस लड़की को अपने हरम में बुला लेता था या उसका अपहरण कर लेता था !
जैसे कन्नौज के राजा की बेटी संयोगिता का अपहरण पृथ्वीराज चौहान ने किया था और रुक्मणी का अपहरण भगवान श्री कृष्ण ने किया था !
अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि राजाओं के रनिवास या हरम में जरूरी नहीं कि हर औरत को बलपूर्वक रखा जाता था बल्कि राजा से पैसे प्राप्त करने के लिये भी लड़कियाँ वहां पर अपना सर्वस्व समर्पण किया करती थीं ! इसके इतिहास में सैकड़ों दृष्टांत मिलते हैं !!