सनातन सभ्यता के इतिहास में विश्व के पूर्व का सबसे बड़ा रहस्य शंग्रीला घाटी है ! इस घाटी का अनुमानित स्थान भारत के उत्तर में अमु-दरिया और सीर-दरिया नदियों के बीच है ! नवीं सदी में मुसलमानों के आक्रमण के बाद यह घाटी अपनी अपार सम्पदा के साथ अदृश्य हो गयी !
यदि आप फारसी भाषा के शब्द “शंग्रीला” का अनुवाद करते हैं, तो इसका मतलब सीरिया का शासन है ! इस तरह वर्तमान सीरिया से भी इस घाटी का सम्बन्ध जरुर रहा है ! यह घाटी तृतीय-द्वितीय शताब्दियों में अस्तित्व में था ! ईसा पूर्व इसके अन्य प्रमाण भी मिलते हैं कि शंग्रीला पश्चिमी अफगानिस्तान में कुन-लुन पहाड़ों से पश्चिमी चीन में गोबी रेगिस्तान के मध्य में कहीं स्थित है ! यहाँ केवल एक शुद्ध ह्रदय का व्यक्ति जा सकता है !
निकोलस और एलेना रोरिक ने इस घाटी का वर्णन इस प्रकार किया है कि “यह पहाड़ों में बड़ी संख्या में गुफाएँ हैं, जहाँ लामा समय-समय पर जाते हैं और फिर कभी नहीं लौटते ! प्राचीन किंवदंतियों में इन्हीं भूमिगत मार्ग का उल्लेख मिलता है, वह भूमिगत शहरों की ओर ले जाते हैं ! उन्होंने दुनिया के निर्माण की शुरुआत के बाद से आज तक का सारा ज्ञान पुस्तकालयों से लेकर प्रयोगशालाओं तक सब कुछ संरक्षित किया है ! ”
यहाँ के दिव्य ऋषिगण विश्व ही नहीं अन्तरिक्ष के भी अनेक ग्रहों से सम्पर्क रखते हैं और वहां के विज्ञान से बाकिफ हैं ! जो हमारे पृथ्वी के विज्ञान से बहुत विकसित है ! रावण ने भी यहाँ रह कर बहुत कुछ सीखा था ! तभी वह विश्व विजेता बन सका ! रावण के शंग्रीला घाटी यात्रा को वैष्णव साहित्यकारों ने कैलाश यात्रा से बार बार जोड़ कर देखा है ! सिकन्दर भी अपने गुरु अरस्तू के कहने पर इसी घाटी की खोज में अफगानिस्तान तक आया था ! किन्तु उसे कोई सफलता नहीं मिली !
शंग्रीला घाटी वह गुप्त स्थान है जिसमें महान शिक्षक स्थित हैं ! वह मानवता के विकास को नियंत्रित करते हैं ! शंग्रीला के निवासियों में कई उपयोगी क्षमतायें हैं ! वह मात्र आयुर्वेद से खुद को किसी भी बीमारी को ठीक कर सकते हैं ! वह अन्य लोगों के विचारों को पढ़ने की क्षमता रखते हैं ! दूर के भविष्य को देख सकते हैं ! इस घाटी में बहुत पहले से ही एक दर्पण है ! जो लंबी दूरी के दूसरे ग्रहों के देख सकते हैं ! उन ग्रहों के निवासियों से सम्पर्क कर सकते हैं ! इसके साथ आप अन्य ग्रहों पर जीवन का भी अध्ययन कर सकते हैं !
कुछ तिब्बतियों का दावा है कि इस घाटी के चारों ओर अति चुम्बकीय प्रकाश उत्सर्जक दीवारें हैं ! जिस तकनीकी से यह अपने को आधुनिक विज्ञान से भी गुप्त रखते हैं ! वह यह भी दावा करते हैं कि उनके पूर्वजों ने शंग्रीला घाटी के सन्तों से कैलेंडर, ज्योतिषीय प्रणाली, पेंटिंग, वास्तुकला, पवित्र संगीत, चिकित्सा आदि का ज्ञान लिया था !
20 वीं शताब्दी में हिटलर की शंग्रीला घाटी में दिलचस्पी हो गई ! शंग्रीला घाटी की शिक्षाओं के आधार पर नाजी विचारधारायें उत्पन्न हुईं ! हिटलर के समय में जर्मन में यह माना जाता था कि शंग्रीला घाटी शक्ति और आध्यात्म का केंद्र है ! जो प्राकृतिक तत्वों और विश्व के लोगों को नियंत्रित करता है ! सिद्धांत यह था कि जो शुद्ध आर्य नश्ल के हैं वह शंग्रीला घाटी के साथ रहस्यमय गठबंधन बना सकते हैं और मानवता के लिये बढ़ा कार्य कर सकते हैं !”
इसीलिये उस समय जर्मन में अभियान बना कर शुद्ध आर्य नश्ल के व्यक्तियों की खोज शुरू की गयी ! जिनको प्रशिक्षित करने के लिए 1000 तिब्बती स्थायी रूप से जर्मन में रहा करते थे ! जिन्हें हिटलर का व्यक्तिगत स्वयं सेवक समूह कहा गया ! जो हिमलर के ब्रिटिशर के साथ मिल कर धोका दे देने के बाद भी हिटलर के साथ रूस से आखिरी समय तक लड़ा और हिटलर को जर्मन से सुरक्षित निकाल कर अमेरिका पहुँचाया ! जहाँ हिटलर 1984 तक जीवित रहा !
सर्वप्रथम एक भारतीय सन्त के माध्यम से कार्ल होस होफर शंग्रीला घाटी के सम्पर्क में आये थे ! बाद में वह जर्मनी और शंग्रीला घाटी के बीच दोस्ती का प्रचारक बन गये ! उन्होंने 1918 बर्लिन में व्रिल सोसाइटी बनाई, जो जर्मन निवासियों का इस रहस्यमय घाटी के निवासियों के साथ संपर्क स्थापित करने वाली थी ! होस होफर के अनुसार, सच्चे आर्य लोग तिब्बत में शंग्रीला घाटी रहते हैं और जो मानव जाति के लिये अंतरिक्ष निवासियों से अद्भुद शक्तियां प्राप्त करती है !
1923 में उन्होंने हिटलर को अपने सिद्धांत के बारे में आश्वस्त किया ! हिटलर के सत्ता में आने के बाद उसने हौस होफर के दावे की सत्यता की जाँच करवाई और संतुष्ट होने पर हौस होफर को एननेरबे इंस्टीट्यूट के प्रमुख बना दिया ! जिसका लक्ष्य था “आर्यन जाति के उद्भव का अध्ययन करना” ! और योग्य आर्य जर्मन निवासियों को शंग्रीला घाटी ले जा कर प्रशिक्षित करवाना ! जिसके लिये जर्मन में 25,00,000 बच्चों की जाँच की गयी कि उनका रक्त शुद्ध आर्य है या नहीं !
हौस होफर ने 1926 से 1943 तक संस्थान के माध्यम से मध्य एशिया और तिब्बत में शंग्रीला घाटी अभियान भेजा ! जहाँ उसे बड़ी सफलता भी मिली ! युद्ध के बाद सोवियत सैनिकों को जर्मन सैनिकों के साथ 1 हजार से अधिक तिब्बती प्रशिक्षकों की भी लाशें जर्मन में मिलीं थी ! यह अजीब था कि वह सभी नाजी वर्दी में एशियाटिक थे और वह सभी दस्तावेजों के बिना जर्मन में रह रहे थे और खुद को हारा-किरी बनाते थे ! उनमें से एक कार्ल हौस होफर भी थे !
हिटलर विरोधी गठबंधन सेना के विरुद्ध यह सभी भयंकर युद्ध किये ! और कोई भी जीवित नहीं पकड़ा गया ! जो घायल हुआ ! उसने स्वयं को गोली मार ली ! और हिटलर को सुरक्षित निकाल कर अमेरिका पहुंचा दिया ! यह महान भक्तिपूर्ण युद्ध आज भी रूस की फाइलों में दर्ज है !
इस रहस्यमय घाटी के बारे में सभी रहस्यों को उजागर करने के लिये ब्रिटेन, अमेरिका और रूस ने कई अभियान चलाये पर कोई सफलता नहीं मिली ! तब चीन ने इन्हें स्वप्रेरणा से सैन्य संरक्षण दिया और ब्रिटेन, अमेरिका और रूस की सेना को उस रहस्यमय घाटी के क्षेत्र से दूर कर दिया ! जिसे इतिहासकारों ने चीन तिब्बत का युद्ध कहा !!