जानिये अच्छे लोग भारतीय राजनीति में क्यों नहीं आते ? Yogesh Mishra

सभी चाहते हैं कि “अच्छे लोग” भारतीय राजनीति में आयें लेकिन यदि ध्यान से देखा जाए तो भारत में राजनीति है ही नहीं भारत में “धूर्त नीति” है ! क्योंकि भारतीय लोकतंत्र में जनमानस से लेकर संवैधानिक संस्थाओं तक हर जगह धूर्तता के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिखाई देता ! आइए थोड़ी चर्चा करते हैं चुनाव आयोग के व्यवस्था की !

चुनाव आयोग यह कहता है कि भारत में राजनीतिक दलों का पंजीकरण और नियंत्रण “मैं” करूंगा जबकि भारत के संविधान में कहीं भी राजनीतिक दलों को पंजीकृत कराने की न तो कोई कल्पना है और न ही कोई व्यवस्था है ! चुनाव आयोग का कार्य मात्र निष्पक्ष चुनाव करवाना है ! इस गलत पंजीकरण प्रक्रिया का परिणाम यह है कि जब कोई एक ईमानदार व्यक्ति अपने राजनितिक दल का पंजीकरण करवाना चाहता है तो उसे प्रक्रिया के तहत 100 लोगों का समर्थन प्राप्त करना आवश्यक है !

जिसमें अधिकांश बेईमान होते हैं ! इसके बाद इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि नियंत्रण के नाम पर जो ईमानदारी से कार्य करने वाले राजनीतिक दल हैं ! उनका चुनाव आयोग “वित्तीय जांच-पड़ताल” के नाम पर बस सिर्फ शोषण करता है ! जिससे अच्छे व्यक्ति परेशान हो जाते हैं !

मैं एक और प्रश्न इस चुनाव आयोग से करता हूं कि चुनाव आयोग हर चुनाव के पूर्ण हो जाने के बाद यह घोषणा करता है कि “यह चुनाव निष्पक्ष रुप से विधि अनुसार संपन्न हुआ है !” मेरा चुनाव आयोग से यह आग्रह है कि इस भारत के अंदर कोई भी एक चुनावी क्षेत्र की “मतदाता सूची” चुनाव आयोग इस दावे के साथ प्रस्तुत करे कि यह “मतदाता सूची शत प्रतिशत सही है” ! मेरा यह पूरा विश्वास है कि इतने बड़े देश में चुनाव आयोग एक भी क्षेत्र की “शत प्रतिशत सही मतदाता सूची” प्रस्तुत नहीं कर पायेगा ! तो चुनाव आयोग “अपूर्ण व गलत मतदाता सूची” के आधार पर “निष्पक्ष रुप से विधि अनुसार” चुनाव कैसे संपन्न करा देता है ? इसी वजह से अच्छे लोग चुनाव हार जाते हैं !

आइए अब चर्चा करते हैं थोड़ा संसदीय प्रक्रिया की ! हमारी “कार्यपालिका” द्वारा राष्ट्र हित में जो निर्णय लिए जाते हैं ! उन पर हमारे “सांसद” (विधायिका द्वारा) सदन में वार्ता और समीक्षा करके क़ानून व जन-नीतियाँ बनाने, बदलने व हटाने का कार्य करते हैं ! ऐसा जनता को बतलाया जाता है !

किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है ! सच्चाई यह है कि “कार्यपालिका” द्वारा राष्ट्रहित में जो अधिनियम / नियम बनाने का प्रस्ताव संसद (विधायिका) के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है ! वह “बहुमत प्राप्त राजनीतिक दलों” की इच्छा पर पास होता है, न की निष्पक्ष रुप से राष्ट्रहित में चर्चा करके ! परिणामत: अच्छे लोगों की संख्या सदन में कम होने के कारण राष्ट्रहित में निर्णय नहीं हो पाते हैं ! जिससे अच्छे लोग हतोत्साहित होते हैं !

इसके अलावा “संसदीय प्रक्रिया” के द्वारा जो एक और सबसे बड़ा अवरोध “लोक व्यवहार” में संविधान के विरुद्ध पैदा किया जाता है ! वह यह है कि मंत्रिमंडल के “मंत्रीगण” जो “कार्यपालिका” के सदस्य कहलाते हैं ! वह सांसदों “विधायिका” के साथ बैठकर उन्हीं प्रस्तावों को “मत” देकर पास करते कर देते हैं ! जिन्हें उनके द्वारा ही “सदन के समक्ष” प्रस्तुत किया गया था ! यह तो वही बात हुई कि “अपने मुकदमे का पक्ष मैं स्वयं रखूंगा और स्वयं ही न्यायाधीश के रूप में उसमें निर्णय भी कर दूंगा !”

यह स्थिति लोकतंत्र में अच्छे सांसद विचारकों को अपनी बात सदन के समक्ष रखने में हतोत्साहित करती है ! ऐसी स्थिति में जब अच्छे लोग यह देखते हैं कि उनके विचार रखने से सदन के “निर्णय” में कोई फर्क नहीं पड़ता और अनावश्यक रुप से सदन के स्वार्थी सदस्यों के साथ उनका मतभेद हो जाता है ! तो उस मतभेद को टालने के लिए यह अच्छे लोग सदन में मौन ही रहना पसंद करते हैं !

तीसरा हम चर्चा करते हैं लोकतंत्र के मूल आधार “मतदाताओं” की ! हमारे देश के अंदर “अशिक्षा और जागरूकता की कमी” के कारण मतदाताओं को अपने “मताधिकार के प्रयोग और उसकी शक्ति” का अंदाजा ही नहीं है ! वह लोग क्षणिक स्वार्थ के लिए धन, शराब या फर्जी आश्वासन के बहकावे में आकर “धूर्त और बेईमान लोगों” को चुन लेते हैं ! जिससे अच्छे लोग ईमानदारी से सारा प्रयास करने के बाद भी चुनाव में असफल हो जाते हैं !

आजकल चुनाव पूंजीपतियों और षड्यंत्रकारियों के “गुप्तधन” से लड़ा जाता है ! अच्छे लोगों की पहुंच अच्छे होने के कारण इन पूंजीपतियों और षडयंत्रकारियों तक प्रभावशाली तरीके से नहीं हो पाती है ! अतः “धन के अभाव में” अच्छे लोग प्रभावशाली चुनाव नहीं लड़ पाते हैं ! सिद्धान्तवादी, आडंबरविहीन अच्छे “चुनाव प्रत्याशीयों” को देश के मतदाता पसंद नहीं करता है और अच्छे लोगों राजनीति की मुख्य धारा से बाहर हो जाते हैं ! यह भी एक बहुत बड़ी व्यवहारिक समस्या है !

और अंत में चर्चा करते हैं राजनीतिक दलों की ! राजनीतिक दलों में चुनाव के समय प्रत्याशी के रूप में टिकट देने के लिये उन्हीं व्यक्तियों को चुना जाता है ! जो साधन संपन्न चुनाव का खर्चा उठा सकने के योग्य हों ! इसके लिए किसी व्यक्ति का अच्छा होना पर्याप्त योग्यता नहीं है !

इसके अलावा राजनीतिक दलों में टिकट बांटने के लिए जिन व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है ! वह लोग यह चाहते हैं कि चुनाव के पूर्व प्रत्याशी उनके उचित या अनुचित महेंगे खर्चे कई वर्षों से उठाते रहे ! जो एक अच्छे व्यक्तिय के लिए संभव नहीं है !

यही सब वह मूल कारण है जिस वजह से चुनाव में “अच्छे लोग” राजनीति में आगे नहीं बढ़ पाते और देश की सत्ता धूर्त, भ्रष्ट और बेईमानों के हाथ चली जाती है ! इसके लिए कुछ अति महत्वपूर्ण सुझाव मेरे पास है जिनकी चर्चा मैं भविष्य के लेख में करूंगा !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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