प्राचीन काल में तिब्बत को त्रिविष्टप भी कहते थे ! यह अखंड भारत का ही हिस्सा हुआ करता था ! कालांतर में सोने के लालच में तिब्बत को चीन ने अपने कब्जे में ले लिया है ! तिब्बत में दारचेन से 30 मिनट की दूरी पर है यमराज के राज्य का प्रवेश स्थल यम द्वार है !
यम का द्वार पवित्र कैलाश पर्वत के रास्ते में पड़ता है ! हिंदू मान्यता अनुसार, इसे मृत्यु के देवता यमराज के घर का प्रवेश द्वार माना जाता है ! यह कैलाश पर्वत की परिक्रमा यात्रा के शुरुआती प्वाइंट पर है ! तिब्बती लोग इसे चोरटेन कांग नग्यी के नाम से जानते हैं ! जिसका मतलब होता है दो पैर वाले स्तूप !
ऐसा कहा जाता है कि यहां रात में रुकने वाला जीवित नहीं रह पाता है ! ऐसी कई घटनायें भी हो चुकी हैं लेकिन इसके पीछे के कारणों का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है ! साथ ही यह मंदिरनुमा द्वार किसने और कब बनाया ! इसका कोई प्रमाण नहीं है ! ढेरों शोध हुये लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका !
लेकिन तैतरीय ब्राह्मण, वराह पुराण, कठोपनिषद् और महाभारत के अनुसार वाजश्रवस पुत्र नचिकेता ने जाकर यम देव से मृत्यु के रहस्य को जाना था !
गरुड़ पुराण में यमलोक का वर्णन विस्तार से दिया गया है ! प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार जब तक जीव शरीर में रहता है ! तब तक उसके कर्मों के अनुसार उसे दंड देने का अधिकार शनि देव को है और जब व्यक्ति मृत्यु के उपरांत शरीर को छोड़ देता है तो उसके कर्मों के अनुसार उस को दंड देने का अधिकार यमदेव को है ! दोनों ही सूर्य के पुत्र हैं इसलिये सूर्य जीव के आत्मकारक राजा होने के कारण उसके दोनों पुत्रों को जीव को दंडित करने का अधिकार है !
राणों के अनुसार यमराज का रंग हरा है और वे लाल वस्त्र पहनते हैं ! यमराज भैंसे की सवारी करते हैं और उनके हाथ में गदा होती है ! यमराज के मुंशी ‘चित्रगुप्त’ हैं जिनके माध्यम से वे सभी प्राणियों के कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं ! चित्रगुप्त की बही ‘अग्रसन्धानी’ में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब है !
गरुड़ पुराण के अनुसार यमराज के महल को कालित्री महल कहते हैं और उनके सिंहासन को विचार-भू भी कहा जाता हैं। वहीं, पद्म पुराण में यह उल्लेख मिलता है कि यमलोक पृथ्वी से 86,000 योजन यानि करीब 12 लाख किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यमलोक बहुत ही डरावना है और यहां जीवों को तरह-तरह की यातनाएं दी जाती हैं।
स्मृतियों के अनुसार 14 यम माने गए हैं- यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दध्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त ! ‘स्कन्द पुराण’ में कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को दीये जलाकर यम को प्रसन्न किया जाता है !
यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुभ्बर, दघ्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त – इन चौदह नामों से यमराज की आराधना होती है ! इन्हीं नामों से इनका तर्पण किया जाता है ! यमराज की पत्नी देवी धुमोरना थी ! कतिला यमराज व धुमोरना का पुत्र था ! विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से भगवान सूर्य के पुत्र यमराज, श्राद्धदेव मनु और यमुना उत्पन्न हुईं ! ‘यमुना’ इनकी बहन हैं !
दीपावली से पूर्व दिन यमदीप देकर तथा दूसरे पर्वो पर यमराज की आराधना करके मनुष्य उनकी कृपा का सम्पादन करता है ! ये निर्णेता हम से सदा शुभकर्म की आशा करते हैं ! दण्ड के द्वारा जीव को शुद्ध करना ही इनके लोक का मुख्य कार्य है !
यमलोक का मूल पशु भैस है ! महर्षि विश्वामित्र गाय के विकल्प में यमलोक से भैस को भारत में लाये थे !