मुझे अभी लेख लिखते एक महीना भी नहीं बीते हैं कि बीजेपी के अंधभक्तों ने मुझे “वामपंथी विचारक” घोषित कर दिया ! मैं इस आरोप को स्वीकार करता हूं ! मेरे ऊपर आरोप लगाने वालों को शायद यह नहीं पता कि “वामपंथ” होता क्या है ? यदि उन्हें यह मालूम होता, तो उन्हें यह भी पता होता कि उनकी “बीजेपी पार्टी” भी एक “राष्ट्रवादी वामपंथी राजनैतिक दल” ही थी ! किंतु दुर्भाग्य यह है कि सत्ता को प्राप्त करते ही बीजेपी ने अपनी “राष्ट्रवादी वामपंथी विचारधारा” को छोड़कर विश्व के दक्षिणपंथी साम्राज्यवादी “विश्व सत्ता” का दामन थाम लिया !
भारत की आजादी के समय भारतीयों के ऊपर ब्रिटिश राजनेताओं के इशारे पर “संविधान” के माध्यम से जो शोषणवादी शासन पद्धति थोपी गई थी ! उन्हीं कमियों को दूर करने के लिये “राष्ट्रप्रेमी विचारकों” द्वारा “भारतीय जनता पार्टी” (बीजेपी) नामक एक “राष्ट्रवादी वामपंथी राजनैतिक दल” का निर्माण किया गया था और वह दल जो कभी राष्ट्र के नागरिकों से “राष्ट्रवादी विचारधारा” के पुनः स्थापन का वादा करती थी, वह आज अपने उस “राष्ट्रवादी वामपंथी विचारधारा” से भटक गई है !
वह “राष्ट्रवादी वामपंथी राजनैतिक दल” “बीजेपी” आज “सनातन संस्कृति के पोषण” की विचारधारा छोड़ कर विश्व की “साम्राज्यवादी शक्तियों” के साथ मिलकर भारतीयों के ऊपर उनकी नई “शोषणवादी आर्थिक योजनाएं” लागू करने में लगी हुई है ! जिसे देश आज से 20 साल आगे भविष्य में समझ पाएगा ! किंतु जो व्यक्ति आज 20 साल आगे भविष्य में होने वाले दुष्परिणामों को जनता को बताने की चेष्टा कर रहा है, उसे बीजेपी के अंधभक्त “राष्ट्रद्रोही और वामपंथी” कहते हैं !
मुझे कोई सत्ता का सुख नहीं चाहिए और न ही सत्ता में बैठे हुए व्यक्तियों की मैं चाटुकारिता करना पसंद करता हूं ! यह राष्ट्र हमारा है और इस राष्ट्र के विनाश के लिए जो भी सत्तासीन राजनीतिक दल निर्णय लेगा ! उसका वैचारिक विरोध किया जाएगा ! “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” मनुष्य का “जन्मसिद्ध अधिकार” है और इसे किसी भी विधि व्यवस्था से या किसी राजनीतिक दल द्वारा नियंत्रण नहीं किया जा सकता ! यह बात अलग है कि आज सत्ता में बैठे हुए लोगों को अपने राजनैतिक स्वार्थ में “राष्ट्रवादी विचारधारा” घातक लग रही हो, इसलिए वह सत्ता की शक्तियों का दुरुपयोग कर राष्ट्रवादी चिंतकों को परेशान कर सकते हैं जैसे कांग्रेस ने आपातकाल में किया था !
किंतु जिस क्षण कोई भी सत्ता इस तरह का कोई निर्णय लेती है ! वह सीधे-सीधे लोकतांत्रिक व्यवस्था की हत्या कर देती है और नागरिकों के “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के जन्मसिद्ध अधिकार को भी खत्म कर देती है !
वामपंथ का तात्पर्य मेरे दृष्टिकोण से यह है कि वर्तमान शासन प्रणाली में जो कमियां हैं जिसके कारण राष्ट्र में असुरक्षा और भय का वातावरण पैदा होता है ! उन कमियों से “राष्ट्रवादी वामपंथी विचारकों” को सत्ता और राष्ट्र दोनों को राष्ट्रहित में पुनरावृत्त रूप से अवगत कराना चाहिये ! जब तक कि सत्तासीन अपने अंदर उन कमियों पर विशलेषण और विचार कर उसका निवारण कर लें !
दुसरे शब्दों में सत्ता के चाटुकारों से अलग हट कर राष्ट्र हित में सत्ताधीशों को सही सलाह देना ही “राष्ट्रवादी वामपंथ” है ! और यदि सत्ताधीश उन कमियों का निवारण नहीं करते तो लोकतंत्र में उस शासक के स्थान पर दूसरे “राष्ट्रवादी वामपंथी शासक” को चुनने का विकल्प जनता के लिये सदैव खुला रहता है !