इस सृष्टि में शिव के अतिरिक्त काल से अधिक सामर्थवान कोई भी नहीं है ! काल को जीतना मनुष्य के पुरुषार्थ का विषय ही नहीं है ! फिर वह चाहे भगवान राम, कृष्ण, बुद्ध, सिकंदर, चाणक्य, सुकरात आदि कोई भी हों !
इसी में एक और नाम जोड़ा जा सकता है ! वह है भगवान रजनीश उर्फ़ ओशो का ! वैसे तो इनका वास्तविक नाम चंद्र मोहन जैन था ! इनका पालन-पोषण इनके नाना के यहां हुआ था और बेसिक शिक्षा भी कोई खास नहीं थी !
जीवन के आरंभिक दौर में आर्थिक संघर्ष से जूझने के कारण इन्होंने नौकरिया भी की ! किंतु वैचारिक स्वतंत्रता के कारण बहुत लंबे समय तक इनका अपने मालिकों और अधिकारियों के साथ तालमेल नहीं बन पाया !
इसी बीच इनके एक महिला मित्र की मृत्यु हो गई, जिसने इन्हें अंदर तक झकझोर के रख दिया और यह एकांतवास में चले गये, इसी एकांतवास के दौरान गहन आत्म चिंतन करते हुए इन्हें आत्मबोध हुआ !
वैसे भी पहले ही यह जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शन के छात्र और अध्यापक दोनों ही रह चुके थे इसलिए दर्शन विज्ञान पर इनकी गहरी रूचि थी ! इसी बीच एकांतवास में इन्होंने अपने अनुभव और आत्मबोध से धर्म, अध्यात्म, ईश्वर, समाज, व्यक्ति, व्यक्तियों के सामाजिक संबंध, शासन, सत्ता आदि अनेक विषयों पर गहन चिंतन किया !
और फिर भारत के विभिन्न क्षेत्र माउंट आबू, गोवा, पुणे, मुंबई, कोलकाता आदि विभिन्न जगहों पर घूम घूम कर इन्होंने 5000 से अधिक प्रवचन किये !
अति लोकप्रियता प्राप्त कर लेने के बाद अंततः इन्होंने पुणे महाराष्ट्र में रजनीश पुरम नाम का एक आश्रम भी स्थापित किया और अपने महिला शिष्य और मित्र शीला बहन के प्रयास से यह अमेरिका चले गये ! इसके बाद इनके शिष्यों की संख्या करोड़ों में हो गयी !
यह सभी सफलता इन्हों बृहस्पति की महादशा में प्राप्त हुई थी ! यह कर्क लग्न के व्यक्ति थे ! बृहस्पति के बाद शनि की महादशा आते हैं अमेरिका की शासन सत्ता इनसे इनके स्वतंत्र विचारों के कारण अनावश्यक नाराज हो गयी !
और इन्हें एक फर्जी प्रकरण में 12 दिन अमेरिका की जेल में बंद रहना पड़ा ! बताया जाता है कि इसी दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के निर्देश पर इनको थेलेनियम नामक स्लो प्वाइजन दे दिया गया और अमेरिका से निष्कासित कर दिया गया !
विश्व के 21 देशों ने इन्हें अपने यहां शरण देने से मना कर दिया और अंततः हार कर यह अपने पुणे स्थित आश्रम रजनीशपुरम में पुन: वापस आ गये और वही दिनांक 19 जनवरी 1990 को सायंकाल 5 बजे इनकी मृत्यु हो गयी !
इनकी मृत्यु भी बड़े रहस्यमय परिस्थितियों में हुई ! मुंबई हाईकोर्ट में पुणे स्थित रजनीशपुरम आश्रम के मुकदमे में ओशो के डॉक्टर द्वारा दिये गये एफिडेविट से यह पता चलता है कि ओशो की मृत्यु एक सुनियोजित हत्या थी ! जो उनके ही शिष्यों द्वारा की गयी थी !
इस पूरे लेख को लिखने का तात्पर्य है कि काल की गति को धन, दौलत, प्रभाव, राजनीति, अनुयायियों की संख्या आदि किसी भी शक्ति से नहीं रोका जा सकता है !
काल अपनी गति से चलता है ! इसलिए किसी भी व्यक्ति के कितना भी शक्तिशाली हो जाने के बाद भी उसे काल के प्रभाव का सम्मान करना चाहिए और काल क्योंकि ईश्वर की प्रतिनिधि उर्जा है ! इसलिए काल से कभी संघर्ष नहीं करना चाहिये बल्कि काल की गति को देखकर अपने अंदर परिवर्तन का अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए ! तभी आप काल के प्रकोप से बच सकते हैं !!